दोहा की परिभाषा - दोहा किसे कहते हैं

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आज मैं आप लोगो को हिंदी जनरल का फोर्थ पार्ट में Doha ki paribhasha के बारे में बताने वाला हूं तो इस ब्लॉग को पूरा पढ़िए अगर आप 10 वी या 12वी में  है तो आप के लिए यह ब्लॉग बहुत फायदे का हो सकता है।

दोहा की परिभाषा क्या है ?

दोहा एक मात्रिक छंद है जिसके प्रथम और तृतीय चरण में 13,13 मात्राएं होती है। और दूसरे और अंतिम चरण में 11,11 मात्राएं होती है। इसमें 24 ,24 मात्रा की दो पंक्तियां होती है।

प्रसिद्ध दोहाकार कबीर दास, मीराबाई, रहीम, तुलसीदास और सूरदास हैं। सबसे लोकप्रिय तुलसीदास की रामचरितमानस है। जिसे दोहा में लिखा गया है, जो संस्कृत महाकाव्य रामायण का प्रतिपादन है।

 

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दोहा को कैसे पहचाने

दोहा में 24,24 मात्रा की दो पंक्ति होती है तथा अंतिम में एक गुरु और ( ऽ की तरह ) एक लघु (। की तरह ) होता है।

दोहा किसे कहते हैं उदाहरण सहित

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1. बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा अपना , मुझसे बुरा न कोय

अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।


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2. पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ , पंडित भय न कोय।
ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय॥

अर्थ: इस दोहा में बताया गया है की बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़े हुए लोग भी मृत्यु के द्वार पहुँच जाते है, पर सभी विद्वान नही बन पते। कबीर कहते हैं कि यदि कोई प्रेम के केवल ढाई अक्षर को अच्छी तरह से समझ जाये तो उससे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं होता, अर्थात प्यार को वास्तविक रूप में पहचान ले वही सच्चा ज्ञानी होगा।


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3. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

अर्थ - इस दोहे में कबीर दास जी भगवान से विनती करते हुए कहते हैं। "हे ईश्वर! मेरे ऊपर इतनी कृपा बनाए रखना कि मेरे परिवार का भरण-पोषण अच्छे से होता रहे। मैं ज्यादा धन की इच्छा नहीं रखताा। बस इतनी नजर रखना कि मेरा परिवार और मैं भूखा ना सोए और मेरे दरवाजे पर आने वाला कोई भी जीव भूखा ना जाए।


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4. मन मनोरथ छड़ी दे , तेरा किया कोई।
पानी में घीव निकसे , तो रुखा खाये न कोई

अर्थ: मनुष्य को समझाते हुए कबीर जी कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो, उन्हें तुम अपने बल बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई नहीं खाएगा।

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5. जाती न पूछो साधु की , पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का , पड़ा रहन दो म्यार

अर्थ: कबीर जी कहते है, की सज्जन की जाती नहीं पूछनी चाहिए उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का।


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6. पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत।
सब सखिया में यो दिपै ज्यों सूरज की जोट

अर्थ: पतिव्रता स्त्री यदि तन से मैली भी हो अच्छी है। चाहे उसके गले में केवल कांच के मोती की माला ही क्यों न हो, फिर भी वह अपनी सब सखियों के बीच सूर्य के तेज के समान चमकती है।


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7. प्रेम न बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाई।
राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि ले जाई

अर्थ: प्रेम खेत में नहीं उपजता प्रेम बाज़ार में नहीं बिकता चाहे कोई राजा हो या साधारण प्रजा – यदि प्यार पाना चाहते हैं तो वह आत्म बलिदान से ही मिलेेगा। त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं।

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8. हाड़ जले लकड़ी जले जलवान हर।
कौतिकहरा भी जले कासों करू पुकार

अर्थ: दाह क्रिया में हड्डियां जलती हैं उन्हें जलाने वाली लकड़ी जलती है उनमें आग लगाने वाला भी एक दिन जल जाता है। समय आने पर उस दृश्य को देखने वाला दर्शक भी जल जाता हैै। जब सब का अंत यही होना हैं तो गुहार किससेे करूं। सभी तो एक नियति से बंधे हैं। सभी का अंत एक है।

9. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

अर्थ: किसी का बड़ा होना तभी सार्थक है जब वह दूसरों के लिए उपयोगी हो। खजूर के पेड़ की तरह बड़ा होना व्यर्थ है, जो ना छाया देता है और ना आसानी से फल।

10. निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

अर्थ: आलोचक को अपने पास रखना चाहिए क्योंकि वह हमारी गलतियों को दिखाकर हमें सुधारने का मौका देता है। उसकी बातें आत्मा को शुद्ध करती हैं।

11. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

अर्थ: हर चीज समय पर होती है। जैसे पौधे को सौ घड़ा पानी देने से भी फल तुरंत नहीं लगते, वैसे ही जीवन में धैर्य जरूरी है।

12. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।

अर्थ: काम को कल पर टालने की बजाय उसे आज ही पूरा करना चाहिए क्योंकि समय का पता नहीं चलता।

13. रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानस, चून।

अर्थ: जीवन में विनम्रता (पानी) बहुत जरूरी है। जैसे पानी के बिना मोती, इंसान और आटा सब कुछ बेकार हो जाते हैं।

14. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए।

अर्थ: प्रेम और विश्वास का धागा बहुत नाजुक होता है। इसे तोड़ने से बचना चाहिए क्योंकि टूटने पर इसे जोड़ना मुश्किल हो जाता है।

15. संत तुलसीदास के दोहे
जाकी रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

अर्थ: हर व्यक्ति भगवान को अपनी भावना और दृष्टिकोण से देखता है।

16. धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।

अर्थ: संकट के समय धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी की असली परीक्षा होती है।

17. चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, वह शहंशाह।

अर्थ: इच्छाएं और चिंताएं खत्म होने से मन शांत होता है और ऐसा व्यक्ति सच्चा राजा बन जाता है।

18. संतन के संग रहिए, जो लावे गुण लीन।
पानी के संग सीप है, जनम लेत मणि बीन।

अर्थ: संतों का साथ हमेशा लाभकारी होता है, जैसे सीप में पानी मोती में बदल जाता है।

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