रस काव्य की आत्मा कहलाती है। जिस प्रकार शरीर का महत्व आत्मा के बिना कुछ नहीं है। उसी प्रकार बिना रस के कोई भी काव्य अधूरा होता है। अर्थात शब्द को हम शरीर मान सकते है और रस को आत्मा।
रस किसे कहते हैं
रस का शाब्दिक अर्थ आनंद होता है। काव्य को पढ़ने से हमें जो आनंद की अनुभूति होती है। उसे रस कहते है। रस काव्य का मूल तत्व या उसका प्राण होता है। जिसके बिना काव्य मात्र एक पद्य बनकर रह जाता है। रस किसी भी उत्तम काव्य का अनिवार्य गुण है।
रस कितने प्रकार के होते हैं
रस के दस प्रकार होते है जो निम्नलिखित है - यहाँ पर रस के नाम और उनका स्थायी भाव दिया गया है।
- शृंगार रस - रती
- हास्य रस - हास
- शान्त रस - निर्वेद
- करुण रस - शोक
- रौद्र रस - क्रोध
- वीर रस - उत्साह
- अद्भुत रस - आश्चर्य
- वीभत्स रस - घृणा
- भयानक रस - भय
- वात्सल्य रस - स्नेह
सहृदय के ह्रदय में स्थित रति नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, उसे श्रृंगार रस कहते हैं।
उदाहरण:
यातै सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही, पल टारत नाही।।
भरे भौन में करत हैं, नैनन ही सौं बात।।
शृंगार रस दो प्रकार के होते हैं।
- संयोग श्रृंगार जहां पर नायक नायिका के संयोग या मिलन का वर्णन हो वहां संयोग श्रृंगार होता है।
- वियोग श्रृंगार जहां पर नायक नायिका के वियोग का वर्णन हो वहां वियोग श्रृंगार होता है।
सहृदय के हृदय में स्थाई हास नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव से संयोग होता है। उसे हास्य रस कहते हैं।
बच्चों को छोड़ेंगे घर में, होने दो हुड़दंगा।।
होले-लोहे पूछ ले, तेरी कैसे गई है फूट।।
सहृदय के हृदय में स्थित अशोक नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे करुण रस कहते हैं।
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले भी न चुंबन शून्य कपोल।
हाय! रुक गया यहीं संसार, बना सिंदूर अंगार।
करहिं विलाप अनेक प्रकाश, परहिं भूमि तल बारहिं बारा।।
सहृदय के हृदय में स्थित उत्साह नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, उसे वीर रस कहते हैं।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी।
यमराज से युद्ध में, प्रस्तुत सदा जानों मुझे।।
हे सारथे! है द्रोण क्या? आवे स्वयं देवेंद्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में, आज क्या मुझसे कभी।।
सहृदय के हृदय में स्थित क्रोध नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव से संयोग होता है उसे रौद्र रस कहते हैं।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।।
संसार देखे अब हमारे शत्रु , रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा, वे हो गए उठकर खड़े।।
सहृदय के हृदय में स्थित बैनामा की स्थाई भाव का जब भी भाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे भयानक रस कहते हैं।
चली आ रही फेन उगलती, फन फैलाये व्यालों सी।।
सहृदय के हृदय में स्थित आश्चर्य नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे अद्भुत रस कहते हैं।
चकित भई गदगद वचन, विकसित दृग पुलकातु।।
सहृदय के हृदय में स्थित जुगुप्सा याद रहना नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे वीभत्स रस कहते हैं।
ते नर सरगै जात है, नाती पूत समेत।।
सहृदय के हृदय में स्थित निर्वेद नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभाव संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो उसे शांत रस कहते हैं।
मो संपत्ति जदुपति सदा, बिपति विदारन हार।।
सहृदय के हृदय में स्थित वात्सल्य नामा के स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे वात्सल्य रस कहते हैं।
कबहुँ करताल बजाय कै नाचत, मातु सबै मन मोद भरै।।
रस की परिभाषा क्या है
काव्य के आस्वाद से जो अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त होता है , उसे रस कहते है। या काव्य के पठन अथवा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है। वही काव्य रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है।
सामान्य भाषा में बोलू तो कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि पढ़ने सुनने से हमें जो आनन्द खुसी दुःख प्रेम आदि भाव की अनुभूति होती है। उसे रस कहते हैं।
विलक्षण आंनद और अनिर्वचनीय आनंद क्या है
विलक्षण जिज्ञासा उतपन्न करने वाला होता है। रस किसी काव्य का वह अंग है जो आपके अंदर जिज्ञासा या जानने की इक्षा को उतपन्न कर देता है।
अनिर्वचनीय आनंद जिसको वाणी से नहीं कहा जा सकता वह अनिर्वचनीय आनंद होता है। रस के प्रयोग के कारण इस आनन्द का अनुभव होता है। कई बार हम अपने भाव को शब्दो से बया नहीं कर पते है। बस महसूस करते है। वही अनिर्वचनीय आनंद होता है।
इसके सन्दर्भ में -
दर्शक का जब हर लेता मन।
अलौकिक आनन्द से जब हो जाये तन्मय मन,
मन का यह रूप काव्य में रस कहलाये।
रस के अंग कितने होते हैं
रास के चार अंग होते है जो निम्नलिखित है -
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
- स्थायी भाव
1. विभाव का अर्थ क्या है - स्थायी भाव के होने के कारण को विभाव कहते है। जब कोई व्यक्ति अन्य व्यक्ति के ह्रदय के भावों को जगाता हैं। तो उन्हें विभाव कहते हैं। विशेष रूप से भावों को प्रकट करने वाले तत्व को विभाव कहते हैं। सौंदर्य भी इस रस के जगृत होने के कारण हो सकते हैं।
इसके दो प्रकार होते है - आलंबन विभाव और उद्दीपन विभाव।
2. अनुभाव का शाब्दिक अर्थ है - वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा अर्थ प्रकट हो वह अनुभाव होता हैं। अनुभवों की कोई संख्या निश्चित नहीं होती है। लेकिन पठान की दृस्टि से इसे आठ बताया गया है। अनुभाव सरल और सात्विक रूप में आते हैं उन्हें सात्विक भाव कहते हैं। ये अनायास सहज रूप से प्रकट होते हैं।
इनकी संख्या आठ होती है।
- स्तम्भ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वरभंग
- कंप
- विवर्णता
- अश्रु
- प्रलय।
3. संचारी भाव की परिभाषा - जो भाव सहृदय के ह्रदय में अस्थायी रूप से विधमान होते है, उन्हें संचारी भाव कहते है। जो स्थानीय भावों के साथ संचरण करते हैं वे संचारी भावहोते हैं। इससे स्थिति और भाव की पुष्टि होती है। एक संचारी किसी स्थायी भाव के साथ नहीं रहता है इसलिए इसे व्यभिचारी भाव भी कहते हैं।
Note - संचारी भाव की संख्या 33 होती है।
4. स्थाई भाव किसे कहते हैं - सहृदय के ह्रदय में जो भाव स्थायी रूप से विधमान होते है, उसे स्थायी भाव कहते है। किसी मनुष्य के हृदय में कोई भी भाव स्थाई रूप से निवास करती है वही स्थाई भाव होते है यह चाद भर के लिए न रहकर स्थाई रूप से रहता है।
प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. रस की परिभाषा लिखिए।
उत्तर - परिभाषा - रस काव्य की आत्मा है। काव्य के आस्वाद से जो अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं, अर्थात कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि देखने, पढ़ने और सुनने में विलक्षण आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं।
"रसात्मकं वाक्यं काव्यं" - रसमय वाक्य ही काव्य है।
प्रश्न 2. रस के प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर - रस के प्रमुख अंग चार हैं -
- स्थायी भाव
- संचारी भाव
- अनुभव
- विभव
प्रश्न 3. स्थायी भाव किसे कहते हैं?
उत्तर - स्थायी भाव ऐसे भाव जो मानव मन में सुप्तावस्था में पाये जाते हैं। अनुकूल वातावरण पाकर जाग्रत हो उठते हैं, ऐसे भावों को स्थायी भाव कहते हैं। प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है। इनकी संख्या दस है।
- श्रृंगार रस - रति
- हास्य रस - हास
- रौद्र रस - क्रोध
- भयानक रस - भय
- वीर रस - उत्साह
- अद्भूत रस - आश्चर्य
- करुण रस - शोक
- वीभत्स रस - घृणा
- शांत रस - निर्वेद, वैराग्य
- वात्सल्य रस - स्नेह
प्रश्न 4. विभाव किसे कहते हैं?
उत्तर - स्थायी भाव जिन कारणों से उत्पन्न होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। जैसे - घृणा करना, काँपना आदि।
प्रश्न 5. अनुभाव किसे कहते हैं?
उत्तर - आश्रय की बाहरी चेष्टाओं को अनुभाव कहते हैं। जैसे - चीखना, भागने की चेष्टा करना आदि।
प्रश्न 6. संचारी भाव किसे कहते हैं?
उत्तर - संचारी भाव - मानव के मन में जल्दी-जल्दी उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। एक रस के एक से अधिक स्थायी भाव हो सकते हैं। इनकी संख्या तैंतीस है। जैसे - शंका, मोह, गर्व, हर्ष, चिंता, ग्लानि, आलस्य आदि।
प्रश्न 7. स्थायी भाव और संचारी भाव में क्या अंतर है?
उत्तर - स्थायी भाव और संचारी भाव में अंतर् -
- स्थायी भाव उत्पन्न होकर शीघ्र नष्ट नहीं होते, किन्तु संचारी भाव पानी के बुलबुले की तरह क्षण-क्षण में बनते बिगड़ते रहते हैं।
- प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है, किन्तु एक ही रस से अनेक संचारी भाव हो सकते हैं।
- स्थायी भावों की तुलना सरोवर में स्थित जल के साथ की जाती है, संचारी भावों की तुलना पानी में उठने वाली लहरों के साथ की जा सकती है।
- संचारी भाव, स्थायी भाव को पुष्टि करने में सहायक होते हैं, स्थायी भाव इसकी पूर्ण अवस्था है।
- स्थायी भावों की संख्या 10 है। संचारी भावों की संख्या 33 है।
प्रश्न 8. रस निष्पत्ति कैसे होती है?
उत्तर - सहृदय के ह्रदय में स्थित स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के साथ संयोग होता है। तब रस की निष्पत्ति होती है।
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