मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवी मैथिलीशरण गुप्त ने कई रचनाये की है। जो आज भी अपनी महत्व बनाये रखा है। साकेत, प्रतिमा, और जयभारत इनके प्रमुख लेखो में से हैं। गुप्त जी ने कई रचनाये की है।
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को चिरगांव, जिला झांसी में हुआ। इनके पिता का नाम रामचरण और मां का सरयूदेवी था। सेठ रामचरण जी कविता के बड़े प्रेमी थे और 'कनकलता' नाम से छंद-रचना करते थे। सेठ जी के पाँच पुत्र हुए- महरामदास, रामकिशोर, मैथिलीशरण, सियारामशरण और चारुशिलाशरण।
इनमें मैथिलीशरण और सियारामशरण ने साहित्य रचना के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। काव्य के संस्कार तो गुप्त जी में जन्मजात थे, पर सृजन के लिए विशेष प्रेरणा आचार्य महावीर प्रसाद दुवेदी से मिली। सन 1906 से ही इनकी रचनाएँ 'सरस्वती' में प्रकाशित होने लगी थी। 'रंग में भंग' इनका प्रथम काव्य-ग्रंथ है, जो सन 1909 में प्रकाशित हुआ।
प्रारंभ में मुंशी अजमेरी से, जिन्हें ये अपने भाई के समान मानते थे, इन्हें बहुत प्रोत्साहन मिला। द्वेदी जी को तो गुप्त जी ने अपना काव्य-गुरु ही स्वीकार किया है, अजमेरी जी के प्रति भी अपनी कृतज्ञता 'साकेत' के 'निवेदन' में व्यक्त की है। उनकी मृत्यु पर 'समाधि' शीर्षक से एक कविता भी इन्होंने लिखी, जो 'उच्छ्वास' नामक काव्य-संग्रह में संकलित है।
मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु कब हुई थी
मैथिलीशरण ह्रदय से भक्त थे और स्वभाव से उदार, विनम्र और मिलनसार। साहित्य-साधना के पवित्र कर्म में वे निरंतर संलग्न रहे। अपने जीवन के आदर्श मूल्य उन्होंने राम, बुद्ध और गांधी से ग्रहण किए थे। 12 दिसंबर 1964 को हृदय की गति बंद हो जाने से इनकी मृत्यु हो गयी।
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ -
साकेत, जयभारत, यशोधरा, कुणालगीत, द्वापर, सिद्धराज, रत्नावली, विष्णुप्रिया, जयद्रथ वध, पंचवटी, नहुष, वन वैभव, वक संहार, सैरंध्री, मंगलघट, झंकार, उच्छ्वास, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, अंजलि और अर्ध्य, भारत भारती, स्वदेश संगीत, वैतलिक शक्ति गुरुकुल, हिंदू, रंग में भंग, विकट भट, पद्द प्रबंध, पत्रावली, शकुंतला, हिडिंबा, विश्ववेदना, किसान, पृथ्वीपुत्र, राजा प्रजा, अजीत, तिलोत्तमा, चंद्रहास, अनध, लीला, भूमि भाग, युद्ध। स्वप्नवासवदत्ता, प्रतिमा, अभिषेक, अविमारक, मेघनाद वध, पलासी का युद्ध, वृत्रसंहार, वीरांगना, विरहिणी ब्रजजङ्ग्ना और रूबाइयत उमरखैयाम।
गुप्त जी की प्रमुख रचनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि आप राम के अनन्य भक्त और कट्टर हिंदू हैं। 'साकेत' में तो राम का स्तवन है ही, पर जो ग्रंथ कृष्ण के चरित्र या महाभारत की घटनाओं से संबंधित है, वहां भी मंगलाचरण में राम ही की वंदना है जैसे वक संहार में, परंतु मैथिलीशरण गुप्त जी की यह खासियत है कि उन जैसा उदार और विशाल हृदय व्यक्ति चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगा।
जिस लेखनी ने पंचवटी, और 'साकेत' का निर्माण किया, उसी ने बौद्धों की करुणा का उद्घोष करने के लिए 'अनघ', 'यशोधरा' और 'कुणाल गीत' की रचना की, उसी ने मुसलमानों के चरित्र की महानता और सहन-शीलता को अंकित करने के लिए हृदय को हिलाने वाली 'कर्बला' की कहानी हमें सुनायी। दरअसल वे मानवता के गायक थे। धर्म निरपेक्षता और सहिष्णुता का मूल्य उनकी रग रग में समाहित था। 'विश्व वेदना' की रचना उन्होंने धर्म और राष्ट्रीय-भावना से ऊपर उठकर विश्व-बंधुत्व का गीत गाने के लिए की।
गुप्त जी हमारे देश और युग के प्रतिनिधि कवि हैं। हमारा देश अखंड है और उसे अखंडता की भावना मैथिलीशरण गुप्त ने दी। उनके राजनीतिक विचार अनेक ग्रंथों-विशेष रूप से 'भारत-भारती' और स्वदेश संगीत में बिखरे पड़े हैं। राजनीति में मैथलीशरण गुप्त ने महात्मा गांधी के सिद्धांतों का प्रचार किया है। सन 1921 से 1947 तक महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जिस मार्ग पर चली है, उन समस्त आंदोलनों की ध्वनि उनके काव्य में पाई जाती है।
मैंथलीशरण गुप्त ने बीस से ऊपर सफल प्रबंध काव्य रचें हैं। उनके 'जयभारत' और 'साकेत' दोनों हिंदी महाकाव्यों की परंपरा में बहुत ऊंचा स्थान रखते हैं। 'यशोधरा' भी उनकी बड़ी ही लोकप्रिय रचना है।
ऐसी ही मार्मिक कृतियां 'विष्णुप्रिया' और रत्नावली हैं। उनके खंड काव्यो में 'जयद्रथ वध', 'पंचवटी' और 'नहुष' की गणना निश्चित ही सफल कृतियों में होगी। इन सभी काव्य-ग्रंथों में कुल मिलाकर कई ऐसे मार्मिक स्थल हैं जहां पाठकों का ह्रदय बार-बार अभिभूत होता है।
यही पर इस साकेत का आलोचना खंड समाप्त होता है, आपको जानकारी कैसे लेगी मेरे साथ जरूर शेयर करें। किस प्रकार की जानकारी अगले पोस्ट में आपको चाहिए जरूर लिखें।
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