पिछली आधी सदी में पानी की हमारी मांग तीन गुना हो गई है। जल संरक्षण महत्वपूर्ण है। क्योकि पृथ्वी पर पिने लायक पानी मात्र 2.5 % हैं। गर्मी के मौसम में देश के बड़े शहरों में पानी की भारी कमी देखने को मिलती हैं। इसका मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग और नदी तालाबों का प्रदूषण हैं। आज भारत के अधिकर नदियों में गंदे पामी और सीवेज को डाला जाता हैं। जिसके कारण नदियों का पानी दुसित होता है।
जल संरक्षण क्या है
जल संरक्षण का मतलब है पानी की बर्बादी को कम करना और प्रदूषण को रोकना हैं। ताजा पानी सीमित और महंगा संसाधन है। पानी का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि पैसे बचाने के लिए भी आवश्यक है। पानी का घरेलू उपयोग शौचालय, वाशिंग मशीन, स्नान और कपडा धोने में किया जाता है। यदि पानी का उपयोग जितना आवश्यक है उतना ही करे।
एक रिपोर्ट के अनुसार, जल संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि ताजा पानी एक सीमित संसाधन है। इस प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण पर्यावरण और हमारे लिए महत्वपूर्ण है। देश के लगभग प्रत्येक बड़े शहर में भूमिगत जल का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण शहर में पानी की समुचित आपूर्ति की सुविधा नहीं है। इन परिस्थितियों में जल का संरक्षण हमारा प्राथमिक उद्देश्य बन जाता है।
जल संरक्षण के उपाय
पृथ्वी पर सीमित मात्रा में ताजा पानी है। सौभाग्य से जल चक्र के माध्यम से पानी स्वच्छ होकर बारिश के रूप में गिरता है। हालांकि, विविध कारकों सूखा, बाढ़, जनसंख्या वृद्धि, प्रदुषण आदि के कारण जल आपूर्ति समुदाय की जरूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा नहीं कर सकती है। जल संरक्षण यह सुनिश्चित करता है कि सभी के लिए स्वच्छ जल की आपूर्ति उपलब्ध हो सके।
जल संरक्षण के लिए दैनिक आदतों में बदलाव की आवश्यकता होती है, जो चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बहुत से लोग बिना सोचे-समझे नल खुला छोड़ देते हैं। घर पर हम छोटे-छोटे बदलाव करके पानी बचा सकते हैं।
जब पानी की ज़रूरत न हो तो नल बंद कर देना चाहिए। कई लोगो की आदत होती हैं वे बर्तन साफ करते रहते और नल से पानी बहता रहता हैं। बर्तन धोने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी का इस्तेमाल पौधों को पानी देने के लिए किया जा सकता है। दाँत साफ करते समय नल बंद करना भी एक अच्छी आदत है। इसके अलावा, कार या बाइक धोने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी का इस्तेमाल दूसरे सफाई कार्यों के लिए किया जा सकता है।
1. वर्षा जल का संचय
वर्षा जल संचयन में वर्षा जल को बहने देने के बजाय उसे इकट्ठा करके संग्रहीत करना शामिल है। बारिश के पानी को छतों से इकट्ठा किया जाता है और भूजल को फिर से भरने में मदद करने के लिए टैंकों, गड्ढों या जलाशयों में संग्रहीत किया जाता है। इसके अलवा गावों और शहरों में छोटे छोटे तालाब का निर्माण किया जा सकता हैं। जिसमे वर्षा के पानी को एकत्र किया जा सकता हैं।
2. जल दोहन प्रबंधन
धरातल पर जल को अधिक देर रोके रखने के उपाय किए जाने चाहिए जिससे जल भू-गर्भ में संचित हो सके। वनों की भूमि अधिक पानी सोखती है। अतः वर्षा के जल का बहाव वनों की ओर मोड़ना लाभप्रद होता है।
पानी हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है। यह संभावना है कि चल रहे जलवायु परिवर्तन से पानी की भारी कमी हो सकती हैं क्योकि तापमान लगातर बढ़ता जा रहा हैं। ऐसे ही तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो बारिश में कमी स्वभाविक हैं। इससे बचने के लिए जल का दोहन नियंत्रित रूप से करना चाहिए।
3. जल का दुरुपयोग
जल संसाधनों का उपयोग आज मानव के सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों में से एक है। शहरों में पानी की बर्बादी एक बड़ी समस्या है। पानी प्रकृति द्वारा मानवता को दिए गए सबसे अनमोल उपहारों में से एक है। पृथ्वी पर जीवन जल के कारण ही संभव है। पृथ्वी की तीन-चौथाई सतह पानी से ढकी हुई है, फिर भी भारत और अन्य देशों के कई क्षेत्रों में लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
पानी की कमी के कारण विभिन्न क्षेत्रों से लोगों को पलायन करना पड़ रहा हैं। पानी की कमी दुनिया की 40% से अधिक आबादी को प्रभावित करती है। शहरों में पानी की बर्बादी का मुख्य कारण अक्सर खराब बुनियादी ढांचा होता है, हालांकि कई अन्य कारक भी हैं।
4. कृषि क्षेत्र में पानी का दुरुपयोग
जल के उपयोग से फल और सब्जियां उगाया जाता है, जो हमारे आहार का एक मुख्य हिस्सा है। कृषि में जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। किस भूमि में एवं किस फसल को कितने पानी की आवश्यकता होती है। इसकी जानकारी कृषक को होनी चाहिए जिससे पानी का दुरूपयोग न हो।
5. भू-गर्भ जल का सीमित उपयोग
सभी प्राकृतिक संसाधनों में से भूजल दुनिया में सबसे अधिक निकाला जाने वाला संसाधन है। 2010 तक, भूजल निष्कर्षण की मात्रा के आधार पर शीर्ष पांच देश भारत, चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और ईरान है। निकाले गए भूजल का 70%, कृषि के लिए उपयोग किया जाता है।
भूजल दुनिया भर में मीठे पानी का सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला स्रोत है, जिसमें पेयजल, सिंचाई और विनिर्माण कार्य शामिल हैं। भूजल दुनिया के पीने के पानी का लगभग आधा प्रतिशत है। दुनिया के कई हिस्सों में, विशेष रूप से जहां सतही जल आपूर्ति उपलब्ध नहीं है, घरेलू, कृषि और औद्योगिक पानी की जरूरतों को केवल जमीन के नीचे पानी का उपयोग करके ही पूरा किया जा सकता है।
6. ड्रिप सिंचाई
ड्रिप सिंचाई प्रणाली सीधे पौधे की जड़ों तक पानी पहुंचाती है, जिससे स्प्रे वॉटरिंग सिस्टम से होने वाले वाष्पीकरण को कम किया जा सकता है। इससे पानी के नुकसान को कम किया जा सकता है। पारंपरिक सिंचाई की तुलना में ड्रिप सिंचाई में 80 प्रतिशत से अधिक पानी की बचत होती है।
फसलों को उगाने के लिए ड्रिप सिंचाई सबसे अच्छा प्रणाली है। यह पानी और पोषक तत्वों को सीधे पौधे के जड़ में पहुँचाता है। इसलिए प्रत्येक पौधे को सही मात्रा में पोषण मिलता है। ड्रिप सिंचाई का उपयोग करके किसान पानी के साथ-साथ उर्वरकों और ऊर्जा की बचत कर सकते हैं।
7. जल का शुद्धिकरण
जल शुद्धिकरण, पानी से हानिकारक रसायनों, कीटाणुओं और गैसों को हटाने की प्रक्रिया है। जबकि अधिकांश पानी पीने के लिए शुद्ध किया जाता है, इसे चिकित्सा, दवा और औद्योगिक उपयोगों के लिए भी साफ किया जाता है।
शुद्धिकरण बैक्टीरिया, वायरस, शैवाल और कवक जैसे कणों को कम करने में मदद करता है, जिससे पानी पीने के लिए सुरक्षित हो जाता है। सरकारें या अंतर्राष्ट्रीय संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए मानक निर्धारित करते हैं कि पानी सुरक्षा स्तरों को पूरा करता है, जिसमें पानी के उपयोग के आधार पर अनुमत दूषित पदार्थों की मात्रा की सीमाएँ होती हैं।
जल संरक्षण की विधि
हम में से बहुत से लोग जो बड़े शहरों में रहते हैं, 24 घंटे चलने वाले नल, स्विमिंग पूल और सजावटी फव्वारे के साथ लापरवाह जीवन शैली का आनंद लेते हैं। तेजी से शहरीकरण और जल प्रदूषण ने भारत में सतह और भूजल की गुणवत्ता पर भारी दबाव डाला हैं। अगर आम जनता को पानी के भंडारण, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के महत्व के बारे में शिक्षित नहीं किया जाता है, तो स्वच्छ पानी जल्द ही दुर्लभ वस्तुओं में से एक बन जाएगा।
शहरों में जल संरक्षण की विधि
- शॉवर का उपयोग करना पसंद करें, हमेशा स्नान नहीं।
- अपने दाँत ब्रश करते समय, नल को बंद कर दें!
- पौधों को पानी देने के लिए वाटरिंग कैन का उपयोग करें।
- फर्श को साफ करने के लिए बाल्टी का प्रयोग करें।
- शावर में साबुन लगाते समय, शावर नल बंद कर दें।
- वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल पूरी तरह से लोड करके करें, आधा भरा नहीं।
- हाथ से बर्तन साफ करते समय नल से पानी न बहने दें।
- कार को साफ करने के लिए बाल्टी और स्पंज का इस्तेमाल करें।
- शौचालय पर सही पानी बचाने वाले बटन का प्रयोग करें।
- खेल के मैदान में पौधों को वाटरिंग कैन से पानी दें।
गांवों में जल संरक्षण की विधि
- बांधों का निर्माण करके गैर मानसून महिनों में भूमिगत जल को नदी में जाने से रोका जा सकता है।
- छोटे और बड़े पोखरों या तालाबों का निर्माण करके अधिक से अधिक जल का भंडारण किया जा सकता हैं।
- विस्तृत क्षेत्रों में सतही रिसने वाले तालाबों का निर्माण किया जाना चाहिए।
- नदियों के पानी को पम्प करके किनारे से दूर गहरे कुओं में डाला जा सकता हैं।
- जहाँ बड़ी नदी किनारे अनेक तालाबों और कओं निर्माण कर जल को संरक्षित किया जा सकता हैं।
- किसान वर्षा के जल को खेतों से बाहर जाने से रोकने के उपाय निजी तौर परकर सकते हैं।
जल का संरक्षण क्यों आवश्यक हैं
ताजा पानी एक सीमित संसाधन है। पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है। इसके दूषित पानी से बहुत से लोग बीमार पड़ सकते है।जबकि पृथ्वी का लगभग 70% हिस्सा पानी से भरा है, दुनिया के कई हिस्से साफ पानी की कमी से जूझ रहे हैं। जल का संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पर्यावरण के लिए आवशयक है।
हर व्यक्ति पानी पर निर्भर करता है, इसलिए हमें सीखना चाहिए कि पानी का सीमित उपयोग कैसे करे यह जानना आवश्यक हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि जल अनंत है। हालांकि वह पिने योग्य नहीं है। हम पानी को प्रदूषित होने से रोक कर पानी का संरक्षण कर सकते है।
इसके लिए रणनीतियों के उपयोग की आवश्यकता होती है, पानी की गुणवत्ता को नुकसान न पहुंचाना और जल प्रबंधन में सुधार करना शामिल है। हमें मौजूद पानी को बचाना चाहिए।
जल संरक्षण का महत्व
दैनिक जीवन में उपयोग
हम अपने जीवन में प्रतिदिन पानी का उपयोग करते हैं। हम जो कुछ भी करते हैं उसमें पानी आवश्यकता होती है। हमें पीने, नहाने, खाना पकाने, धोने और अन्य अनगिनत गतिविधियों के लिए पानी की आवश्यकता होती है।
हमें नियमित रूप से उपयोग की जाने वाली गतिविधियों और आदतों के लिए पानी की आवश्यकता होती है। यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ, स्वच्छ रखना चाहते हैं तो हमें जल का संरक्षण करना चाहिए।
पौधों के लिए आवश्यक
फलों और सब्जियों के साथ-साथ अन्य उत्पादों को भी उगाने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। लेकिन अगर क्षेत्र सूखे से पीड़ित है, तो भोजन कैसे बढ़ेगा? यह स्थायी जीवन को एक कठिन चुनौती बना सकता है क्योंकि सूखे से पीड़ित क्षेत्र बेकार हो जाएंगे क्योंकि किसी भी प्रकार के पौधे विकसित नहीं हो पाएंगे। पानी के बिना, आबादी भूख से मर जाएगी।
पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा
पृथ्वी पर केवल मनुष्य ही ऐसी प्रजाति नहीं है जिसे जीवित रहने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। वास्तव में, इस ग्रह पर प्रत्येक प्रजाति को जीने और जीवित रहने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। जल के बिना जलीय जीवों के जीवित रहने की कोई संभावना नहीं रहेगी। यह बेहद जरूरी है कि हम पानी बचाएं जो हमारी स्थिरता के लिए जरूरी है।
पानी की आपूर्ति सीमित है
वर्तमान में, ताजा पानी पहले से ही सीमित है। 70 % पानी जो उपलब्ध है, उसमें से केवल 0.03 % ताजा पानी है। हर दिन, आबादी में वृद्धि हो रही है, जिससे पहले से ही सीमित मात्रा में पानी बहुत कम हो गया है। जल संरक्षण के अपने भविष्य को बचाने के लिए, हमें अपने सीमित संसाधनों का संरक्षण करना सीखना चाहिए।
भारत में जल प्रबंधन
भारत में लगभग 30% लोग शहरों में रहते हैं जिनकी 2050 तक जनसंख्या दोगुनी होने की उम्मीद है। बढ़ती अर्थव्यवस्था और बदलती जीवन शैली के साथ पहले से ही तनावपूर्ण जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। सरकार ने राष्ट्र के लिए एक नए ढांचे और दृष्टिकोण के रूप में एकीकृत शहरी जल प्रबंधन (IUWM) में रुचि दिखाई है।
भारत के अधिकांश शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं, किसी भी शहर में 24/7 पानी की आपूर्ति नहीं है। शहरी विकास मंत्रालय (MOUD) के अनुसार, 182 शहरों को उचित जल और अपशिष्ट जल प्रबंधन के संबंध में तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, स्वच्छता का दायरा बढ़ा है लेकिन उस कवरेज में संसाधन स्थिरता बहुत आम है।
भारत में जल संसाधन प्रबंध हेतु विभिन्न प्रयास किए गए जो इस प्रकार हैं -
1. जल संसाधन प्रबंध एवं प्रशिक्षण परियोजना : सन् 1984 में केन्द्रीय जल आयोग ने सिंचाई अनुसंधान एवं प्रबंध संगठन स्थापित किया। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य सिंचाई प्रणालियों की कुशलता और अनुरक्षण के लिए संस्थागत क्षमताओं को मजबूत बनाना था।
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सिंचाई प्रणालियों के सभी चरणों में व्यावसायिक दक्षता को उन्नत बनाने और किसानों की आवश्यकताएं पूरी करने तथा खेती की पैदावार बढ़ाने लिए संगठन का निर्माण किया गया था।
2. राष्ट्रीय जल प्रबंध परियोजना - सन् 1986 में विश्व बैंक की सहायता से राष्ट्रीय जल प्रबंध परियोजना प्रारंभ की गई। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य खेती की पैदावर और खेती से होने वाली आय में वृद्धि करना था।
3. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण - केन्द्रीय जल आयोग ने विभिन्न राज्यों से भाग लेने वाले व्यक्तियों को प्रौद्योगिकी से सम्बंधित जानकारी एवं सेमीनार, श्रम इंजीनियर आदान-प्रदान कार्यक्रम, सलाहकारों और जल एवं भूमि प्रबंध संसाधनों के माध्यम से आयोजित करवाए हैं।
जल अनुसंधान प्रबंध एवं प्रशिक्षण परियोजना के अंतर्गत सलाहकारों और केन्द्रीय जल आयोग के मध्य परस्पर विचार विनियम के माध्यम से सिंचाई प्रबंध से सम्बन्धित प्रकाशन, मार्गदर्शी सिद्धांत, नियमावलियों, पुस्तिकाएँ प्रकाशित की गई है।
4.भू-जल संसाधनों के लिए योजना - जल संसाधन मंत्रालय के केन्द्रीय भू-जल बोर्ड ने देश के पूर्वी राज्यों में, जहाँ भू-जल संसाधनों का अधिक विकास नहीं हो पाया है, नलकूपों के निर्माण और उन्हें क्रियाशील बनाने के लिए केन्द्रीय योजना तैयार की है। इस योजना के अन्तर्गत हल्की एवं मध्यम क्षमता वाले नलकूपों का निर्माण कर उन्हें छोटे एवं सीमांत कृषकों के लाभ के लिए पंचायतों या सहकारी संस्थाओं को सौंपा जाएगा।
5. नवीन जल नीति - नवीन जल नीति 31 मार्च 2002 से लागू हो चुकी है। जल संरक्षण के मुख्य विषय को अगली पंचवर्षीय योजना में सम्मिलित किया गया है।
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