अंतरिक्ष को जानने की उत्सुकता मानव को पहले से रही है। इसलिए रात के समय लोग तारो को देख कर सोचते थे की बहार क्या होगा। यही जानने की इच्छा ने मानव को अंतरिक्ष की ओर जाने पर मजबूर किया। आज मनुष्य को पहले के मुकाबले अंतरिक्ष के बारे में बहुत सी जानकारी मालूम है। पृथ्वी के बाहर ग्रह और तारे के बारे में अध्ययन किया जा रहा है। अंतरिक्ष के बारे में तो सुना ही होगा लेकिन मैं असल में अंतरिक्ष क्या है इसके बारे में बनाते वाला हूँ।
अंतरिक्ष किसे कहते है
ब्रम्हांड में मौजूद खली जगह को ही अंतरिक्ष कहा जाता है। अंग्रेजी में स्पेस कहते है जिसका मतलब खली स्थान होता है। वायुमंडल भी अंतरिक्ष का भाग होता है। जहा पर कुछ नहीं होता वह अंतरिक्ष का हिस्सा होता है।
हमें रात्रि को आकाश में जो कुछ भी आकर्षक दिखायी देते हैं वे तो मात्र विशाल अन्तरिक्ष की एक बूंद से भी छोटा भाग ही है। इस ब्रह्माण्ड की सैकड़ों निहारिकाओं में से प्रत्येक में करोड़ों सूर्य पाये जाते हैं। इनमें से अधिकांश तो हमारे सूर्य से भी विशाल एवं बहुत विशाल हैं।
भारतीय ज्योतिष में जो नक्षत्र गिनाये गये हैं वे भी वास्तव में ऐसे ही तारों या सूर्यों के ही नाम हैं। हमारा सौरमण्डल एवं सूर्य जिस गैलेक्सी का सदस्य है, उनका नाम एन्ड्रोमेडा (देवयानी) निहारिका है। इसमें हमारे सूर्य जैसे दो करोड़ से भी अधिक तारे है। इनमें से अधिकांश में हमारे सूर्य की भांति ही प्रह-उपग्रहों का अपना सौरमण्डल भी है।
इसी आधार पर आज के वैज्ञानिकों का दृढ़ विश्वास है कि अन्तरिक्ष में कहीं न कहीं हमारे जैसा या हमसे भी विकसित वैज्ञानिक संसार एक या अधिक आकाशीय पिण्डों में अवश्य होना चाहिए। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक भी उडनतश्तरियों को इसका महत्वपूर्ण प्रमा इसके अतिरिक्त, अति संवेदनशील दूर्वानों को फिल्म पर प्राप्त विशेष सांकेतिक चिह्न भी इसी से सम्बन्धित हो सकते।
हमारी देवयानी आकाशगंगा का रात्रि के अंधेरे में स्वच्छ आकाश में स्पष्टता से अवलोकन किया। जा सकता है। इसकी आकृति कुम्हार के चाक की भांति है।
1 प्रकाशवर्ष वह दूरी है जिसे प्रकार शून्य में 2,99,7125 किमी प्रति सेकेंड 186.282 मील प्रति किलोमीटर गति के आधार पर सूर्य और पृथ्वी के बीच की औसत दूरी को तय करता है। वर्तमान में यह दूरी सौरमण्डल की दूरियों को मापने के लिए मुख्या इकाई बन गई है।
उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् भी यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि अंतरिक्ष और आकाश के बीच अन्तर यह है कि आकाश सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सूचक है जिसमें पृथ्वी भी सम्मिलित है जबकि अंतरिक्ष का अर्थ पृथ्वी को छोड़कर शेष सभी स्थान है। वस्ततः अन्तरिक्ष वहाँ से रोकर शेष सभी स्थान है।
वस्तुतः अन्तरिक्ष वहां से शुरू होता है जहाँ पृथ्वी का वाताव के पैमानों से मापना सम्भव नहीं है। समाप्त होता है। अन्तरिक्ष अनन्त है। इसके आयामों को हमारी पृथ्वी के पैमानों से मापना मामा इसीलिए प्रकाश वर्ष और खगोलीय इकाई जैसे नए पैमानों को अपनाया गया है।
अंतरिक्ष का रहस्य
अंतरिक्ष विज्ञान के विकाश के बावजूद आज भी ऐसे रहस्य है जिसे सुलझाया नहीं गया है। जिसे समझने और जानने के लिए वैज्ञानिक लगातार अंतरिक्ष ग्रह तारे का अध्ययन कर रहे है। विश्व के प्रसिद्ध अंतरिक्ष संस्था उपग्रह की सहायता से ग्रहो और तारो का अध्ययन कर रहे है।
आपने तो बाड़मुड़ा ट्रैंगल के बारे में सुना ही होगा। कहा जा रहा है की अंतरिक्ष में भी एक ऐसी जगह है जहा से गुजरने से अंतरिक्ष यात्रियों को अजीब लाइट दिखयी देती है और मशीन भी काम करना बंद कर देते है।
इसके अलावा कितने ग्रह तारे है जिसके बारे में हमें मालूम नहीं है। वैज्ञानिक सदियों से जीवन की तलाश कर रहा है। ये भी रहस्य है की ब्रम्हांड में जीवन है या नहीं आज तक हमें जीवन का कही प्रमाण नहीं मिला है। लेकिन वैज्ञानिको का मत है की ब्रम्हांड में जीवन है लेकिन दुरी इतनी है की हम उससे सम्पर्क नहीं कर पा रहे है।
नासा अंतरिक्ष अनुसन्धान केंद्र
नासा का गठन नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस अधिनियम के अंतर्गत 19 जुलाई 1948 में किया गया था। यह अमेरिका की अंतरिक्ष केंद्र संस्था है जहा पर स्पेस से जुड़े अध्ययन किये जाते है। नासा ने चाँद पर मानव भेजा है हाल ही में दो एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष स्टेशन तक कम समय में पहुंचने का रिकॉड बनाया है। नासा की बात करे तो अभी अंतरिक्ष की दुनिया में पहले स्थान पर है। नासा ने कई सेटेलाइट भेजे है। जिन्होंने महत्वपूर्ण जानकारी वैज्ञानिको को प्रदान किया है।
नासा ने कहा कि इसके अलावा दो और एस्टेरॉयड के रविवार 24 जुलाई 2020 को पृथ्वी के नजदीक से गुजरेगा। जिनका नाम नासा ने 2016 डीवाई-30 और 2020 एमई-3 नाम दिया है।
अंतरिक्ष में मानव
मानव ने हमेशा से अंतरिक्ष को नज़दीक से देखना चाहता है। इसके लिए वैज्ञानिको ने लोगो को दूसरे ग्रहो पर बसाने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया है। जिसमे स्पेक्स एक्स ने 2024 तक लोगो को मंगल ग्रह पर बसाने की बात की है। साथ ही नासा भी इस पर योजना बना रहा है की 2030 तक लोगो को मंगल पर बसा सके।
वही भारत के इसरो ने 2021 तक मानव मिसन भेजेगा। उसके बाद आगे दूसरे ग्रहो पर बस्ती बसने के लिए प्रोग्राम बनाये जायेंगे। मानव दे तो चाँद पर अपना कदम रख लिया है अब वह मंगल ग्रह पर रखना चाहता है। देखने होगा की ये स्पेस एजेंसिया कब तक मंगल में बस्ती बसाने में सफल होगा।
अंतरिक्ष में क्या है
मानव की हमेश से उत्सुकता रही है की धरती के बहार क्या है। वैज्ञानिको शोध से पता चला है की ब्रम्हांड में लाखो करोडो तारे है और उसके चककर लगते है ग्रह है। इसके अलावा ब्लैक होल पुच्छलतारा और कई एस्ट्रोइड है। इसके अलावा और बहुत कुछ हो सकता है। क्योकि इंसान ने अभी ब्रम्हांड के कुछ ही भाग को जान पाए है यह हमारे कल्पना से भी बड़ा हो सकता है।
अंतरिक्ष उड़ान
मानव ने अंतरिक्ष को पहले दूरबीन से निहारकर ग्रहो तारो का अध्ययन किया। 20 सदी में टेक्नोलॉजी के विकास से रॉकेट और कई उपकरण के विकास के कारण इंसान ने अंतरिक्ष में रॉकेट की सहायता से मानव निर्मित उपग्रह भेजा जिसकी सहायता से पृथ्वी के मौसम और बनावट का अध्ययन किया जा रहा है।
अंतरिक्ष पर पहले जाने वाले मानव यूरी गागरिन थे। जिन्हे 12 अप्रैल 1961 में सोवियत संघ द्वारा वोस्तोक कार्यक्रम की सहायता से स्पेस में बेजा गया था। अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने 1968 में पहली बार मानव को चाँद पर भेजा था। जिसके बाद अमेरिका ने 1972 तक 8 और कार्यक्रम बनाने जिसमे इंसान को चाँद पर भेजा गया।
2015 से पहले सभी मानव को अंतरिक्ष में भेजने वाले रॉकेट को एस्ट्रोनॉट द्वारा संचालन किया जाता था लेकिन 2015 में स्वचालित अंतरिक्ष यान बनाये जाने के बाद से एस्ट्रोनॉट को और समय मिलेगा रिसर्च करने के लिए। भारत के अंतरिक्ष संस्थान इसरो ने 2024 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बनाई है।
भारतीय अंतरिक्ष संगठन इसरो
भारत का पहला उपग्रह आर्यभट था जिसको 19 अप्रैल 1975 को रूस की सहायता से अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। भारतीय गणितज्ञ आर्यभट ने नाम पर इस उपग्रह को रखा गया था। दूसरा उपग्रह भास्कर था जिसको 1979 में स्थापित किया गया था।1980 में भारत द्वारा निर्मित यान SLV-3 की सहायता से रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।
इसके बाद भारत के दो और रॉकेट PSLVऔर GSLV का निर्माण किया। जनवरी 2014 को भारत ने क्रायोजनिक इंजन द्वारा जीएसएलवी-डी 5 रॉकेट का निर्माण किया। भारत आज अपनी अंतरिक्ष यानो को ले जाने में सक्षम है बल्कि वे अन्य देशो के उपग्रहों को स्थापित करने में सहायता कर रहा है। 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 भेजा गया जिसने चाँद की परिक्रमा कर महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र किया। उसके बाद मंगल मिशन के माध्यम से पहली ही बार में भारत ने उपग्रह को मंगल के कक्षा में स्थापित करने में सफलता पायी।
अंतरिक्ष पर जाने वाले पहला भारतीय राकेश शर्मा थे। जो वायुसेना में थे। उसे विज्ञानं में बहुत रूचि था और आकाश में उड़ना बहुत पसंद था। 1971 के युद्ध में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 3 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा ने तीन एस्ट्रोनॉट के साथ उड़ान भरी। जो भारत और सोवियत संघ का एक मिशन था।
इसरो का गगन यान
यह भारत का मानव को अंतरिक्ष में भेजने का कार्यक्रम है। यह एक कैप्सूल होगा जिसमे तीन अंतरिक्ष यात्री को भेजा जायेगा। यह 3.4 टन का है। जिसने 2014 में मानव रहित उड़ान भरा था। गगन यान का निर्माण 2006 से शुरु कर दिया था। इसरो ने कहा है की 2022 के पहले इस मिशन को लांच लिया जायेगा। दिसंबर 2020 और 2021 को मानवरहित प्रक्षेपण किया जायेगा।
यह मिशन पूरी तरह से भारत द्वारा तैयार किया जा रहा है। आत्मनिर्भरत भारत की और या एक कदम है जिसमे भारत सभी उपकरण को देश में ही निर्माण कर रहा है। जिससे की दूसरे देशो पर निर्भरता कम किया जा सके।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र
यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का प्रक्षेपण केंद्र है यही से अंतरिक्ष में उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। यह आन्ध्रप्रदेश के श्रीहरि कोटा में स्थित है, 2002 में वैज्ञानिक सतीश धवन के मरणोपरांत सम्मान में इसे सतीश धवन के नाम से पुकारा जाने लगा।
सौरमंडल क्या है
सौरमंडल हमारे चारों ओर दूर-दूर तक फैला स्वच्छ विस्तृत बाहरी आकाश, एक महासमुद्र की भांति है, इसको ही अंतरिक्ष कहते हैं। प्राचीन काल से ही वैज्ञानिकों द्वारा इसके गूढ रहस्यों का पता लगाने का प्रयास किया जाता रहा है।
आज तो मानव निर्मित उपग्रहों, रॉकेटों, विशालकाय स्वयं-नियन्त्रित इलेक्ट्रॉनिक दूर्बीनों एवं वेधशालाओं से इसका निरन्तर अध्ययन किया जा रहा है। यह बाहरी आकाश या अन्तरिक्ष आश्चर्य भरे अनेकानेक स्वरूपों एवं तथ्यों का अनन्त भण्डार है। अभी तक जो भी खोज हो पायी है उसके आधार पर इसके विस्तार को अनन्त ही कहा जा सकता है।
क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा विशेष शक्तिशाली अति संवेदनशील एवं इलेक्ट्रॉनिक दूरबीन, उपग्रहों के टेलीविजन कैमरों तथा दूरबीनों से अब तक इसके सौ प्रकाश वर्षों से भी अधिक गहराई तक की इसको विशेषताओं एवं इसके विस्तार को ही नापकर देखा जा सका है। अब तक इसकी जो खोज की गयी है
उसके अनुसार इस अनन्त अन्तरिक्ष में अनेक निहारिकाएं, काले छिद्र (Black Holes), स्वयं विस्फोट करती निहारिकाएँ, गेलेक्सी (आकाश गंगा), अति ज्वलनशील एवं प्रकाशशील विशेष आकार की अनेक प्रकार की निहारिकाएँ, आद्य पदार्थों या ब्रह्माण्डीय धूल (Cosmic Dust) का संघटन, आदि का हा अब तक कित किया जा सका है। ब्रह्माण्ड के इस स्वरूप में निचले स्तर पर तारे,ग्रह, अवान्तर प्रह, उल्का, पुच्छल तारे (धूमकेतु), उपमह (चन्द्रमा), आदि पाये जाते हैं।
सौरमंडल में कितने ग्रह है
सौरमण्डल या सौर परिवार के अन्तर्गत सूर्य एवं उसके प्रभाव क्षेत्र में आने वाले आकाशीय पिण्ड अर्थात सभी नौ ग्रह ( अब दस है, उनके उपग्रह पुच्छल तारे व उल्का पिण्ड सम्मिलित गर्व से दरी के अनुसार ग्रहों का क्रम-बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, यम व कारला आदि हैं जबकि आकार के आधार पर इनका क्रम बृहस्पति, शनि, अरुण वरुण पृथ्वी,शुक्र, मंगल,बुध और यम है। जैसाकि उपर्युक्त विवेचन में उल्लेख किया गया है कि इस विचित्र ब्रह्माण्ड में अनगिनत सौरमण्डल हैं। सौरमण्डल का केन्द्र या जनक सूर्य है । सूर्य एवं उसके ग्रहों-उपग्रहों का परिचय निम्नांकित है:
सर्य (Sun) सूर्य आग का धधकता हुआ एक चमकीला गोला है। यह स्वयं अपनी क्रियाओं से प्रकाश एवं ऊर्जा बिखेरने वाला बना रहता है। इसके धरातल पर निरन्तर अणु-परमाणु के व अन्य विस्फोट होते रहते हैं। इसी कारण सूर्य की सतह पर बहुत ऊँचा तापमान बना रहता है। इसकी सतह का तापमान 6 से 7 हजार डिग्री सेण्टीग्रेड रहता है। इसके आन्तरिक एवं केन्द्रीय भाग के तापमान कुछ करोड़ डिमी सेण्टीमेड तक पहुंच जाते हैं । वाल्कोव के अनुसार, यह तापमान 2,00,00,000 सेण्टीमेड तक हो सकता है। सूर्य के काले धब्बों का तापमान 1.500 सेण्टीग्रेड होता है।
सूर्य के इन धब्बों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे तापमान की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। सूर्य का आकार (आयतन) पृथ्वी से 13 लाख गुना अधिक है एवं इसका व्यास पृथ्वी के व्यास से 109 गुना है। इतना विशाल होते हुए भी यह अरुण: पिण्ड पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से मात्र 28 गुना ही अधिक भारी है, अर्थात् पृथ्वी का एक किलोग्राम सूर्य पर 28 किया होगा। इसका दूसरा शुक्र पृथ्वी मंगल कुबेर बुद्ध अर्थ है कि अति उत्तप्त एवं गैसीय दशा में होने से यह विशेष हल्के तत्त्वों से बना है। सूर्य का व्यास 13,93,000 किलोमीटर है। इसे अपनी कीली पर एक चक्कर पूरा करने में 25 दिन 5 घण्टे लगते हैं।
इसका निर्णय सौर कलंकों की स्थिति से किया गया है। सूर्य का पृथ्वी से औसत दूरी 14. 96 करोड किलोमीटर है। प्रकाश द्वारा एक सेकण्ड में लगभग 3 लाख किलोमीटर दूरी तय की जाती है। इसे मानक मानकर पृथ्वी सूर्य से 8 मिनट 22 सेकण्ड दूर है। हमारी पृथ्वी से सूर्य आकृति में अन्य नक्षत्रों की तुलना में सबसे बडा दिखायी देता है, क्योंकि यह पृथ्वी से सबसे निकट का तारा है अन्यथा अनेक नक्षत्र सूर्य से भी बहत बड़े हैं। आर्दा ज्येष्ठा घनिष्टा आदि ऐसे ही नक्षत्र सूर्य से सैकड़ों गुना बड़े हैं।
ये नक्षत्र पृथ्वी से कुछ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। इसी भांति सबसे छोटा दिखायी देने वाला धुव तारा भी सूर्य से हजारों गुना बड़ा है,किन्तु यह सूर्य के सौरमण्डल से 400 प्रकाश वर्ष दूर है। सूर्य के चारों ओर दिखायी देने वाली एक पट्टी सर्य का मकट (Corona) कहलाता है। यह सूर्य को लाखों किलोमीटर के घेरे में घेरे हुए है। जब सूर्य घूमता है तो यह मुकट नहीं घूमता है। क्योंकि इसकी सतह सूर्य की सतह से बाहर है। ऐसा अनुमान है कि यह सूर्य की ज्वाला द्वारा निकाले गये परमाणु एवं विद्युत कणों के सूर्य की सतह के चारों ओर जमने से इसकी ( मुकुट को ) रचना हुई है।
सौरमण्डल के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों की संख्या सूर्य के पश्चात एवं अब तक भली प्रकार से ज्ञात नौ ग्रह हैं। दसवें ग्रह के बारे में प्रारंभिक सूचनाएं एकत्रित की जा रही हैं। यह नौ ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी मंगल बृहस्पति शनि अरुण वरुण एवं कुवेर हैं। मंगल एवं बृहस्पति के मध्य बहुत अधिक दूरी है। इसका कारण यहां पाये जाने वाले आवान्तर ग्रह या क्षुद्र ग्रहो का समूह है। ग्रहों का परिचय निम्न प्रकार से है।
(1) बुध (Mercury)- यह सूर्य से सबसे निकट का प्रह और नौ ग्रहों में से सबसे छोटा ग्रह है, किंतु यह पृथ्वी के चन्द्रमा से थोड़ा बड़ा है। इसका व्यास 488 किलोमीटर है। यह सर्य से मात्र 576 लाख किलोमीटर की दूरी पर हैं। बुध ग्रह को सूर्य की परिक्रमा पुरी करने में 88 दिन का समय लगता है। अर्थात समय लगता है अर्थात इस ग्रह का एक दिवस एवं एक रात दोनों ही पृथ्वी के 88 दिन के बराबर होते हैं।
बुध का कोई उपग्रह नहीं है। इस ग्रह का आधिकतम तापमान 350 सेण्टीग्रेट रहता है। अत: यहाँ पर किसी भी प्रकार के जीवन-स्वरूप की कल्पना नहीं की जा सकती। बुध अपनी दीर्घवृत्तीय कक्षा में 1.76,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूमता है। यह गति इसे सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की पकड़ से सुरक्षित रखती है। बुध पर वायुमंडल नहीं है। अतः यहाँ दिन बहुत अधिक गर्म और रातें बर्फीली होती हैं। इसका द्रव्यमान पृथ्वी का 5.5% है।
(2) शुक्र (Venus)- यह ग्रह बुध,मंगल एवं कुबेर से बड़ा एवं अन्य ग्रहों से छोटा है। इसका व्यास 12,104 किलोमीटर है। इसकी सूर्य से दूरी 10 करोड 2 लाख किलोमीटर है। यहाँ का एक दिन पृथ्वी का लगभग 3/4 होता है एवं इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में पच्ची के 225 दिन लगते हैं। यह ग्रह तेज चमकने वाला है। लगभग पृथ्वी के आकार और भार वाला शुक्र ग्रह गर्म और तपता हुआ ग्रह है। इसका सूर्य के सम्मुख अधिकतम तापमान 100 सेण्टीग्रेट है। अतः यहाँ भी जीवन के विकास की सम्भावना नहीं पाई जाता।
सूर्य के विपरीत भाग में तापमान -23 डिग्री सेण्टीग्रेट रहता है। इस ग्रह के चारों ओर सल्फ्यूरिक एसिड के जमे हुए बादल हैं। अनुसंधान और राडार मैपिंग द्वारा इसके बादलों को भेदने से पता चला है कि शुक्र की सतह चट्टानों और ज्वालामुखियों से भरी है। प्रातः पूर्व एवं सायं पश्चिम में दिखाई पड़ने के कारण इसे भोर का तारा (Morning Star) एवं संध्या तारा (Evening Star) कहा जाता है। यह आकार एवं द्रव्यमान में पृथ्वी से थोड़ा छोटा है अतः कुछ खगोलशास्त्री इसे पृथ्वी की बहन भी कहते हैं।
(3) पृथ्वी (Earth)- यह सौरमण्डल का सबसे अधिक ज्ञात एवं मानव व जैव जगत के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। यह बुध, शुक्र, मंगल एवं कुबेर से बड़ा और शेष ग्रहों से छोटा है। इसका व्यास 12.756 किलोमीटर है। इसकी सूर्य से दूरी 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है। पृथ्वी अपनी स्थिति की दृष्टि से सूर्य से तीसरे स्थान पर है।
इसे अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में लगभग चौबीस घण्टे लगते हैं एवं सूर्य की परिक्रमा पूरा करने में 365 दिन 6 घण्टे का समय (एक वर्ष) लगता है। यह यह अपनी कीली पर 30.1/2 झुका हुआ है। इससे पृथ्वी पर सौर ताप प्राप्ति, वर्षा एवं अन्य अनेक क्रियाओं तथा ऋतुओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
पृथ्वी पर औसत तापमान, नमी एवं विशेष वायुमण्डल की दशाएं आदि सभी मिलकर यहाँ के जीवन के विकास में विशेष सहायक रहे हैं। ऐसा या इससे मिलता वायुमंडल केवल मंगल ग्रह पर ही है जहाँ संभवतः कभी भिन्न प्रकार का जीवन-स्वरूप रहा होगा। यहां का अधिकतम तापमान 58.4 सेण्टीग्रेट है।इसका एक उपग्रह चंद्रमा है । यह उपग्रह पृथ्वी से मात्र चार लाख किलोमीटर दूर है। मध्य तापमान, ऑक्सीजन और अधिक मात्रा में जल की उपस्थिति के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां पर जीवन हैं। लेकिन जिस तरह से मनुष्य स्वयं इसकी सतह और वातावरण को नष्ट कर रहा है.सम्भवतः भविष्य में ऐसा ग्रह बन जायेगा, जिसे यहीं के निवासियों ने नष्ट किया हो।
(4) मंगल (Mars)- यह यह बुध एवं कुबेर से बड़ा है एवं सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित है। इसका व्यास 6787 किलोमीटर है। सूर्य से इसकी दरी 22 करोड़ 79 लाख किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 687 दिन का समय लगता है। इसके फोबोस (Phobos) तथा डिमोस (Diemos) नामक दो उपग्रह हैं। यहाँ का तापमान 30 सेण्टीग्रेट है। अतः यहाँ पर जीवन होने की सम्भावना की जाती रही है।
जब सन 1909 में यह ग्रह पृथ्वी के समीप था, तब अमेरिकी विद्वान
लोवेल ने इसे एरिजोना में दूरबीन की सहायता से देखा तथा महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे जिनके सम्बन्ध मे सभी विद्वान एकमत नहीं थे। NASA (संयुक्त राज्य अमेरिका) द्वारा प्रस्तुत सन 1992 की खोज एवं रिपोट के अनुसार आज से लगभग 100 करोड वर्ष पूर्व यहाँ पर विशाल सागर या जल भंडार या तब संभवतः यहाँ विशेष प्रकार का जैव-विकसित रहा होगा। मंगल की बंजर भूमि का रंग गुलाबी है। अतः इसे लाल ग्रह (Red Planet) भी कहा जाता है। यहाँ पर चट्टानें और शिलाखंड हैं। इसकी सतह पर गहरे गड्ढे,
ज्वालामुखी और घाटियाँ हैं।
(5) वहस्पति (Jupiter) यह सौर मण्डल का सबसे बड़ा मह है। स्थिति के हिसाब से यह सूर्य से पांचवें स्थान पर है। इसकी सूर्य से दूरी 77 करोड़ 83 लाख किलोमीटर है। इसका व्यास 1,42,800 किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 11 वर्ष 9 माह का समय लग जाता है। इसका तापमान बहुत नीचा -132" सेण्टीग्रेट रहता है। अतः यहाँ किसी भी प्रकार का जीवन संभव नहीं है।
इसके 16 उपग्रह हैं, इनमें से एक उपमह तो बुध, मंगल व कुबेर से भी बड़ा है। यह ग्रह गैनिमीड है। अन्य उपग्रहों में यूरोपा, कैलिस्टो एवं आलमथिया आदि हैं। इसके चौदहवें उपग्रह की खोज सन् 1917 में हुई थी। बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान सौरमण्डल के सभी ग्रहों का 71% एवं आयतन डेढ़ गुना हैं। दूर के उपग्रहों में से दो विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं। यहाँ विचित्र विशेषता वाले उपग्रह भी है। पायनियर ने अन्तरिक्ष अभियान प्राप्त चित्रों से पृथ्वी के विशाल लाल धब्बे की खोज की है। वोयजर-1 ने बाद में बतलाया कि वास्तव में विशाल लाल धब्बा अशान्त बादलों के घेरे में विशाल चक्रवात है। यहाँ पर धूल भरे बादल और ज्वालामुखी भी हैं।
(6) शनि (Saturn) -यह बृहस्पति के पश्चात् सबसे बड़ा ग्रह है । इसका व्यास 1,20,000 किलोमीटर है। यह सूर्य से 142.7 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 29.5 वर्ष लग जाते हैं। यहाँ पर भीषण शीत पड़ती है और अधिकतम तापमान भी -151° सेण्टीग्रेट रहते हैं। इसके 21 उपग्रह हैं । इसका सबसे बड़ा उपग्रह टिटॉन है। यह आकार में बुध ग्रह के बराबर है। अन्य उपग्रहों में मीमास, एनसीलाहु, टेथिस, डीऑन, रीया, हाइपेरियन, झ्यापेट्स तथा फोबे हैं। फोबे उपग्रह शनि की कक्षा में, विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है। शनि ग्रह के चारों ओर एक सुन्दर अंगूठी (वलय) बनी हुई है।
इस वलय की उत्पत्ति भीतरी उपग्रहों के विखण्डित होकर धूल कणों में बदलने एवं उन पर जमी हई गैसों के साथ बलय के आकार में (अंगूठी) संगठित होने से हुई है। यह वलय या अंगूठी अथवा कुण्डली शनि की सतह से मात्र 13 हजार किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। वोयजर-1 ने जानकारी दी है कि शनि ग्रह के वलय हजारों तरंगों की पट्टी है । इस पट्टी की मोटाई 100 फीट है। इसके चन्द्रमा टिटॉन पर नाइट्रोजनीय वातावरण और हाइड्रोकार्बन मिले हैं।
इन दोनों की उपस्थिति से जीवन के लक्षण का पता चलता है, लेकिन यहाँ पर जीवन का अस्तित्व नहीं मिला है। शनि ग्रह पर हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस पायी जाती हैं तथा कुछ मात्रा में मीथेन एवं अमोनिया भी मिलती हैं। शनि ग्रह की प्रमख विशेषता उसके चारों ओर गैस हिमकण एवं छोटे-छोटे ठोस चट्टानों के मलवे का पाया जाना है। इस ग्रह पर सूर्य का केवल 1/100 वाँ भाग ही पड़ता है ।
(7) अरुण (Naptune) - यह ग्रह बृहस्पति व शनि से छोटा है। इसका व्यास 51.800 किलोमीटर है। यह सौर मण्डल की बाहरी सीमा के निकट सूर्य से 286.96 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आकार में यह वरुण से कुछ बड़ा है। इसमें 15 उपग्रह हैं। इनमें एरियल, अम्बिरयल,टिटेनिया, ओबेरान तथा मिराण्डा आदि प्रमुख है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 84 वर्ष का समय लगता है। यहाँ के तापमान -200° सेण्टीग्रेड से भी नीचे रहते हैं। वोयजर-2 ने नेपच्यून की 5 वलयों का पता लगाया है।
इसके नाम क्रमशः अल्फा, बीटा,गामा, डेल्टा और इपसिलॉन आदि हैं। अरुण ग्रह की खोज सन् 1781 में सर विलियम हरशल नामक विद्वान ने की थी। प्रथम उपग्रह टाइटन है जो पृथ्वी के चन्द्रमा से बड़ा है तथा वरुण की सतह के समीप है। दूसरा उपग्रह मेरीड है। इसमें से तीन वलय इतनी हल्की थीं कि उनका पता एक सप्ताह बाद लगा। खगोलविदों का अनुमान है कि इसकी बाहरी वलय बर्फ चन्द्रिकाओं से भरी है. और आंतरिक वलय पतली और कठोर है। यह विपरीत दिशा में घूमता है।
(8) वरुण (Uranus)- इस ग्रह की खोज सन 1846 में जर्मन खगोलज जोहान गाले ने की। यह ग्रह बृहस्पति, शनि, एवं अरुण से छोटा तथा अन्य ग्रहो से बड़ा है। इसका व्यास 49,500 किलोमीटर ह. इसकी सूर्य से दूरी 449.66 करोड़ किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 164 वर्ष का समय लगता है। इसके 8 उपग्रह है। यहाँ का तापमान -185 सेण्टीग्रेड रहता है। युरेनस एकमात्र ऐसा है जो एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक अपनी प्रदक्षिणा कक्ष में सूर्य के सम्मख रहता है। वोयजर-2 ने 9 गहरी कसी हई व्लय और कार्क स्क्रू के आकार का 40 लाख वर्ग किलोमीटर से बड़े चम्बकीय क्षेत्र का पता लगाया।
(9) यम या कुबेर (Pluto)- प्लूटो यूनानी संस्कृति व (सौरमण्डल के) दर्शन के अनुसार पाताल का देवता कहलाता है। अतः अंतरिक्ष में सबसे अधिक गहराई पर होने से इसका नाम प्लटो (Pluto) पड़ा। इसका उपमह एक है। यह ग्रह बुध के पश्चात् सबसे छोटा है एवं सौरमण्डल की बाहरी सीमा पर सूर्य से 590 करोड किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे सूर्य का एक चक्कर पुरा करने में पृथ्वी के 248 वर्ष लगते यही। इसका व्यास 3,040 किलोमीटर है। यह सबसे ठंडा ग्रह है एवं यहाँ के तापमान -220 सेण्टीग्रेड से भी निचे रहते है। आधुनिक वञनि को ने इस गृह को अब ग्रह की श्रेणी से बहार कर दिया है।
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