मानव सभ्यता की शुरुआत से ही अंतरिक्ष को जानने की उत्सुकता रही है। प्राचीन काल में लोग रात के समय तारों को निहारते हुए यह सोचते थे कि इन चमकते बिंदुओं के पार क्या होगा। यही जिज्ञासा समय के साथ बढ़ती गई और मनुष्य को अंतरिक्ष की गहराइयों को समझने के प्रयासों की ओर प्रेरित किया।
आज विज्ञान और तकनीक के विकास के कारण हम अंतरिक्ष के बारे में पहले की तुलना में कहीं अधिक जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। पृथ्वी से परे ग्रहों, तारों और आकाशगंगा के रहस्यों का अध्ययन लगातार किया जा रहा है। लेकिन वास्तव में अंतरिक्ष क्या है? चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
अंतरिक्ष किसे कहते है
ब्रह्मांड में मौजूद विशाल खाली क्षेत्र को ही अंतरिक्ष कहा जाता है। अंतरिक्ष का अर्थ होता है - खाली स्थान। यह बहुत ही विरल होता है। हालाँकि, अंतरिक्ष पूरी तरह खाली नहीं होता इसमें गैस, धूल, ऊर्जा, और कण मौजूद होते हैं।
हमारा वायुमंडल भी अंतरिक्ष का ही एक हिस्सा है, लेकिन जैसे-जैसे हम ऊँचाई पर जाते हैं, वायुमंडल धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है और शून्य अंतरिक्ष की शुरुआत होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर कार्मन रेखा के बाद अंतरिक्ष की सीमा मानी जाती है।
हमें रात्रि को आकाश में जो कुछ भी आकर्षक दिखायी देते हैं वे तो मात्र विशाल अन्तरिक्ष की एक बूंद से भी छोटा भाग है। इस ब्रह्माण्ड की सैकड़ों निहारिकाओं में करोड़ों तारे पाये जाते हैं। इनमें से अधिकांश हमारे सूर्य से भी विशाल हैं।
भारतीय ज्योतिष में जो नक्षत्र गिनाये गये हैं वे भी वास्तव में ऐसे ही तारों के ही नाम हैं। हमारा सौरमण्डल गैलेक्सी का सदस्य है, उनका नाम एन्ड्रोमेडा (देवयानी) है। इसमें दो करोड़ से भी अधिक तारे है।
इसी आधार पर आज के वैज्ञानिकों का दृढ़ विश्वास है कि अन्तरिक्ष में कहीं न कहीं हमारे जैसा या हमसे भी विकसित सभ्यता होना चाहिए। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक भी उडनतश्तरियों को इसका महत्वपूर्ण प्रमाण मानते हैं।
हमारी देवयानी आकाशगंगा को रात्रि के अंधेरे में स्वच्छ आकाश में स्पष्टता से अवलोकन किया जा सकता है। इसकी आकृति कुम्हार के चाक की भांति है।
प्रकाश वर्ष
प्रकाशवर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश एक वर्ष में तय करता है। प्रकाश की गति 2,99,792 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। इस तरह एक वर्ष में प्रकाश लगभग 9.461 × 10¹² किलोमीटर की दूरी तय करता है।
वर्तमान में, प्रकाशवर्ष का उपयोग तारों और आकाशगंगाओं के बीच की दूरी मापने के लिए किया जाता है। सौरमंडल के भीतर की दूरियाँ मापने के लिए खगोलीय इकाई (Astronomical Unit - AU) का उपयोग किया जाता है, जो पृथ्वी और सूर्य के बीच की औसत दूरी लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर के बराबर होती है।
उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् भी यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि अंतरिक्ष और आकाश के बीच अन्तर यह है कि आकाश सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सूचक है जिसमें पृथ्वी भी सम्मिलित है जबकि अंतरिक्ष का अर्थ पृथ्वी को छोड़कर शेष सभी स्थान है।
अन्तरिक्ष अनन्त है। इसके आयामों को हमारी पृथ्वी के पैमानों से मापना कठीन हैं। इसीलिए प्रकाश वर्ष और खगोलीय इकाई जैसे नए पैमानों को अपनाया गया है।
अंतरिक्ष का रहस्य
अंतरिक्ष विज्ञान के विकाश के बावजूद आज भी ऐसे रहस्य है जिसे सुलझाया नहीं गया है। जिसे समझने और जानने के लिए विश्व के प्रसिद्ध अंतरिक्ष संस्था लगातार अंतरिक्ष का अध्ययन कर रहे है।
अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह है जहा से गुजरने से अंतरिक्ष यात्रियों को अजीब लाइट दिखयी देती है और इलेक्टिक मशीन भी काम करना बंद कर देते है।
अंतरिक्ष में अनगिनत ग्रह और तारे है जिसके बारे में हमें कुछ भी मालूम नहीं है। वैज्ञानिक सदियों से जीवन की तलाश कर रहे है। ये भी रहस्य है की ब्रम्हांड में जीवन है या नहीं आज तक हमें जीवन का कही प्रमाण नहीं मिला है। लेकिन वैज्ञानिको का मत है की ब्रम्हांड में जीवन है लेकिन दुरी इतनी है की हम उससे सम्पर्क नहीं कर पा रहे है।
नासा अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र
नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी है, जिसकी स्थापना 1958 में अंतरिक्ष अन्वेषण, वैज्ञानिक खोज के लिए की गई थी। इसने अपोलो कार्यक्रम, अंतरिक्ष शटल मिशन और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन सहित चंद्रमा, मंगल पर उपग्रह भेजा है।
यह अमेरिका की अंतरिक्ष केंद्र संस्था है जहा पर अंतरिक्ष से जुड़े विषयों पर अध्ययन किया जाता है। नासा ने चाँद पर मानव भेजाकर इतिहास रचा है, हाल ही में दो एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष स्टेशन तक कम समय में पहुंचने का रिकॉड बनाया है। नासा अंतरिक्ष की दुनिया में पहले स्थान रखता है। नासा ने कई सेटेलाइट भेजे है। जिन्होंने ग्रह, तारे और उल्का पिंड के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान किया है।
अंतरिक्ष में मानव
मानव ने हमेशा से अंतरिक्ष को नज़दीक से देखना चाहता है। इसके लिए वैज्ञानिको ने लोगो को दूसरे ग्रहो पर बसाने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया है। जिसमे स्पेक्स एक्स ने 2024 तक लोगो को मंगल ग्रह पर बसाने की बात की है। साथ ही नासा भी इस पर योजना बना रहा है की 2030 तक लोगो को मंगल पर बसा सके।
वही भारत के इसरो ने 2021 तक मानव मिसन भेजेगा। उसके बाद आगे दूसरे ग्रहो पर बस्ती बसने के लिए प्रोग्राम बनाये जायेंगे। मानव दे तो चाँद पर अपना कदम रख लिया है अब वह मंगल ग्रह पर रखना चाहता है। देखने होगा की ये स्पेस एजेंसिया कब तक मंगल में बस्ती बसाने में सफल होगा।
अंतरिक्ष में क्या है
मानव की हमेश से उत्सुकता रही है की धरती के बहार क्या है। वैज्ञानिको शोध से पता चला है की ब्रम्हांड में लाखो करोडो तारे है और उसके चककर लगते है ग्रह है। इसके अलावा ब्लैक होल पुच्छलतारा और कई एस्ट्रोइड है। इसके अलावा और बहुत कुछ हो सकता है। क्योकि इंसान ने अभी ब्रम्हांड के कुछ ही भाग को जान पाए है यह हमारे कल्पना से भी बड़ा हो सकता है।
अंतरिक्ष उड़ान
मानव ने अंतरिक्ष को पहले दूरबीन से निहारकर ग्रहो तारो का अध्ययन किया। 20 सदी में टेक्नोलॉजी के विकास से रॉकेट और कई उपकरण के विकास के कारण इंसान ने अंतरिक्ष में रॉकेट की सहायता से मानव निर्मित उपग्रह भेजा जिसकी सहायता से पृथ्वी के मौसम और बनावट का अध्ययन किया जा रहा है।
अंतरिक्ष पर पहले जाने वाले मानव यूरी गागरिन थे। जिन्हे 12 अप्रैल 1961 में सोवियत संघ द्वारा वोस्तोक कार्यक्रम की सहायता से स्पेस में बेजा गया था। अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने 1968 में पहली बार मानव को चाँद पर भेजा था। जिसके बाद अमेरिका ने 1972 तक 8 और कार्यक्रम बनाने जिसमे इंसान को चाँद पर भेजा गया।
2015 से पहले सभी मानव को अंतरिक्ष में भेजने वाले रॉकेट को एस्ट्रोनॉट द्वारा संचालन किया जाता था लेकिन 2015 में स्वचालित अंतरिक्ष यान बनाये जाने के बाद से एस्ट्रोनॉट को और समय मिलेगा रिसर्च करने के लिए। भारत के अंतरिक्ष संस्थान इसरो ने 2024 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बनाई है।
भारतीय अंतरिक्ष संगठन इसरो
भारत का पहला उपग्रह आर्यभट था जिसको 19 अप्रैल 1975 को रूस की सहायता से अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। भारतीय गणितज्ञ आर्यभट ने नाम पर इस उपग्रह को रखा गया था। दूसरा उपग्रह भास्कर था जिसको 1979 में स्थापित किया गया था।1980 में भारत द्वारा निर्मित यान SLV-3 की सहायता से रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।
इसके बाद भारत के दो और रॉकेट PSLVऔर GSLV का निर्माण किया। जनवरी 2014 को भारत ने क्रायोजनिक इंजन द्वारा जीएसएलवी-डी 5 रॉकेट का निर्माण किया।
भारत आज अपनी अंतरिक्ष यानो को ले जाने में सक्षम है बल्कि वे अन्य देशो के उपग्रहों को स्थापित करने में सहायता कर रहा है। 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 भेजा गया जिसने चाँद की परिक्रमा कर महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र किया। उसके बाद मंगल मिशन के माध्यम से पहली ही बार में भारत ने उपग्रह को मंगल के कक्षा में स्थापित करने में सफलता पायी।
अंतरिक्ष पर जाने वाले पहला भारतीय राकेश शर्मा थे। जो वायुसेना में थे। उसे विज्ञानं में बहुत रूचि था और आकाश में उड़ना बहुत पसंद था। 1971 के युद्ध में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 3 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा ने तीन एस्ट्रोनॉट के साथ उड़ान भरी। जो भारत और सोवियत संघ का एक मिशन था।
इसरो का गगन यान
यह भारत का मानव को अंतरिक्ष में भेजने का कार्यक्रम है। यह एक कैप्सूल होगा जिसमे तीन अंतरिक्ष यात्री को भेजा जायेगा। यह 3.4 टन का है। जिसने 2014 में मानव रहित उड़ान भरा था। गगन यान का निर्माण 2006 से शुरु कर दिया था। इसरो ने कहा है की 2022 के पहले इस मिशन को लांच लिया जायेगा। दिसंबर 2020 और 2021 को मानवरहित प्रक्षेपण किया जायेगा।
यह मिशन पूरी तरह से भारत द्वारा तैयार किया जा रहा है। आत्मनिर्भरत भारत की और या एक कदम है जिसमे भारत सभी उपकरण को देश में ही निर्माण कर रहा है। जिससे की दूसरे देशो पर निर्भरता कम किया जा सके।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र
यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का प्रक्षेपण केंद्र है यही से अंतरिक्ष में उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। यह आन्ध्रप्रदेश के श्रीहरि कोटा में स्थित है, 2002 में वैज्ञानिक सतीश धवन के मरणोपरांत सम्मान में इसे सतीश धवन के नाम से पुकारा जाने लगा।
सौरमंडल क्या है
सौरमंडल हमारे चारों ओर दूर-दूर तक फैला स्वच्छ विस्तृत बाहरी आकाश, एक महासमुद्र की भांति है, इसको ही अंतरिक्ष कहते हैं। प्राचीन काल से ही वैज्ञानिकों द्वारा इसके गूढ रहस्यों का पता लगाने का प्रयास किया जाता रहा है।
आज तो मानव निर्मित उपग्रहों, रॉकेटों, विशालकाय स्वयं-नियन्त्रित इलेक्ट्रॉनिक दूर्बीनों एवं वेधशालाओं से इसका निरन्तर अध्ययन किया जा रहा है। यह बाहरी आकाश या अन्तरिक्ष आश्चर्य भरे अनेकानेक स्वरूपों एवं तथ्यों का अनन्त भण्डार है। अभी तक जो भी खोज हो पायी है उसके आधार पर इसके विस्तार को अनन्त ही कहा जा सकता है।
क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा विशेष शक्तिशाली अति संवेदनशील एवं इलेक्ट्रॉनिक दूरबीन, उपग्रहों के टेलीविजन कैमरों तथा दूरबीनों से अब तक इसके सौ प्रकाश वर्षों से भी अधिक गहराई तक की इसको विशेषताओं एवं इसके विस्तार को ही नापकर देखा जा सका है। अब तक इसकी जो खोज की गयी है
उसके अनुसार इस अनन्त अन्तरिक्ष में अनेक निहारिकाएं, काले छिद्र (Black Holes), स्वयं विस्फोट करती निहारिकाएँ, गेलेक्सी (आकाश गंगा), अति ज्वलनशील एवं प्रकाशशील विशेष आकार की अनेक प्रकार की निहारिकाएँ, आद्य पदार्थों या ब्रह्माण्डीय धूल (Cosmic Dust) का संघटन, आदि का हा अब तक कित किया जा सका है। ब्रह्माण्ड के इस स्वरूप में निचले स्तर पर तारे,ग्रह, अवान्तर प्रह, उल्का, पुच्छल तारे (धूमकेतु), उपमह (चन्द्रमा), आदि पाये जाते हैं।