भूकंप कितने प्रकार के होते है - bhukamp ke prakar

भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक घटना है जिस पर मानव का कोई वश नहीं है। अनेक क्षेत्रों में विकास की ऊंची उड़ान भरने वाला मानव आज भी भूकम्प व ज्वालामुखी की घटना को भगवान भरोसे ही मानता रहा है। फिर भी भूकंप आने की घटनाओं और भूकंपतरंगों का अध्ययन किया जा रहा है जिससे की भूकंप क्या है इसके प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है इसकी जानकारी प्राप्त हो सके।

भूकंप क्या है

सामान्य भाषा में भूंकप पृथ्वी पर अचानक आने वाले हलचल को कहा जाता है। ये पृथ्वी के केंद्र से धरातल की और बढ़ते है। इसके कारण हर साल जान माल का नुकसान होता है। भूकंप को उसके तरंगो के माध्यम से नापा जाता है। भूकंप आने के कई कारण हो सकते है जिसमे प्राकृतिक और मानवीय दोनों के कारण आयें हलचल को भूकंप कहा जाता है। ये मानव के लिए विनाश लेकर आते है। विश्व में ऐसे कई उदाहरण है।

भूकंप कितने प्रकार के होते है

भूकंप दो प्रकार के होते है
प्राकृतिक भूकंप
मानवीय भूकंप


मानवीय कारण से उत्पन्न भूकंप इन्हें कृत्रिम भूकंप भी कहते हैं। ऐसे भूकंप हल्के प्रभाव वाले होते हैं। भवनों के समीप स्थित रेल की पटरी से गुज़र रही एक्सप्रेस से जो तंरगे उत्पन्न होती है वे भी एक प्रकार का भूकंप होता है। कुओं या चट्टान खोदते समय भारी विस्फोट का उपयोग करने पर निकटवर्ती भाग में कुछ क्षणों के लिए हल्का कम्पन महसूस होता है। वे भी भूकंप होते है।

वर्तमान में आणविक विस्फोट भी भूकंप के अंतर्गत आते है। यह मानव द्वारा बनाया गया घातक हथियार है। जिसे साधारण भाषा में परमाणु बंम कहा जाता है। इसमें काँच की खिड़कियों में कम्पन की आवाज सुनाई देती है एवं रखा हुआ सामान हिलने लगता है। मानव का यह खोज भी काफी महत्वपूर्ण किन्तु विनाशकारी होती है।

प्राकृतिक भूकंप के प्रकार

विविध प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं से भू - तल पर कम्पन होने लगता है। इस आधार पर पर भूकंप चार प्रकार के होते है - 

1. ज्वालामुखी भूकंप - जब किसी स्थान पर ज्वालामुखी उत्त्पन होता है तो कई घटनाये होते है जिसमे मैग्मा तेजी से बहार निकता है साथ में गैस और धूल भी निकलता है। जिसके कारण भूकंप भी उत्त्पन होता है।

इसी प्रकारमेग्मा एवं उससे सम्बन्धित गैसें जब तेज गति से दौड़ते हुए चट्टानों पर विशेष दबाव डालती है तो इसके प्रभाव से भूकंप आ सकता है। सन् 1969 का एटना का भूकंप भी ज्वालामुखी भूकंप था।

2. विवर्तनिक प्लेट भूकंप इसे - पृथ्वी के अन्दर टेक्टोनिक प्लेट इधर उधर तैरते रहते है। तथा इसके आपस में टकराने से भूगर्भ पर दरार लगती है तथा इसके कारण भूकंप उत्पन्न होने लगते है। यह बहुत विनाशकरी भूकंप का निर्माण करता है।

इससे कई बार भू-गर्भ के पदार्थ रेत, चट्टानें, गैसें आदि अनियमित रूप से निकलने लगती हैं। भारत में असम का 15 अगस्त, 1950 का भूकंप ऐसा ही था। पेरू में क्वीचेस 1946 जापान में सगामी की खाड़ी एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में कैलिफ्रेनिया 1986 में आने वाले भूकम्प ऐसे ही थे।

3. पातालीय भूकंप -जब भूकंप की उत्पत्ति पृथ्वी के अधिक गहराई पर हो तो इसे पातालीय भूकम्प कहते हैं। सामान्यतः ऐसे भूकंप का मूल (Focus) 250 से 680 किलोमीटर के मध्य रहता है। ऐसे भूकंप की उत्पत्ति एवं विशेष शक्तियों के बारे में बहुत कम ज्ञान है। क्योंकि अधिक गहराई में होने वाली क्रियाओं का अनुमान लगाना आज भी कठिन है अधिक गहराई से उत्पन्न भूकंप की तरंगें भू-तल पर अपनी गति व फैलने के स्वरूप आदि विशेषताओं में अन्य भूकम्पों से भिन्न होती हैं।

4. भू-सन्तुलन से सम्बन्धित भूकंप - पृथ्वी के कमजोर भागों में जैसे पर्वतीय प्रदेशों में भूमि असंतुलन सेअचानक विविध प्रकार की गतियाँ होने लगतीहैं। इससे चट्टानें टूटती व पुनः व्यवस्था में आने का प्रयास करती हैं। इस कारण से पर्वतीय भगो में अधिक भूकंप आते है।

प्राकृतिक स्थिति के अनुशार भूकंप दो प्रकार के होते हैं -

इस आधार पर भूकंप को दो भागों में बांटा गया हैं 
स्थलीय भूकंप
सामुद्रिक भूकंप


स्थलीय भूकंप 

महाद्वीप एवं बड़े द्वीपों पर आने वाले भूकंप को स्थलीय भूकंप कहते हैं। ऐसे भूकंप जो कि प्रायः अल्पाइन पर्वतीय भागों में बार-बार आते रहे है। अधिक घातक एवं विशेष हानिकारक होते हैं।

12 जून 1897 एवं 15 अगस्त 1950 को आये असम के भूकंप विनाशकारी एवं विशाल क्षेत्र को प्रभावित करने वाला भूकंप था। अनेक नगर एवं हजारों वर्ग किलोमीटर पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा था।

सामुद्रिक भूकंप 

ऐसे भूकम्पों की उत्पत्ति महासागरीय क्षेत्र में होती है। जिसका केंद्र तटीय भागों के आस-पास होता है। ऐसे भूकम्पों का सीधा प्रभाव द्वीपीय देशों पर होता है। विशेषकर प्रशान्त महासागर के पश्चिमी तट पर इस प्रकार के भूकंप से द्वीपीय देशों पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

प्रशान्त महासागर तट के आस-पास व द्वीपों के निकट प्रतिदिन 150 से 200 भूकंप के झटके महसूस किये जाते हैं। अकेले जापान में ही 10 से 12 भूकंप प्रतिदिन अंकित किये जाते हैं। कई विद्वानों का विश्वास है कि महासागरों के विशेष भागों में जो दरारें एवं गहरे गर्त पाई जाती हैं। असन्तुलन के कारण वहाँ भूकंप आते रहते हैं।

भूकंप के कारणयहाँ लहरें उठती है। ऐसी घातक लहरों कोजापान में सुनामी कहा जाता है। टोकियो में सन् 1925 के भूकम्प से 25 हजार व्यक्ति मारे गये।

भूकंप किससे मापा जाता है

भूकंप से सम्बन्धित सभी तथ्यों का अध्ययन जिस यन्त्र द्वारा किया जाता है उसे भूकम्पमापी यंत्र कहते हैं। इस यन्त्र में लगे हल्के तारों वाले लटकते पदार्थों पर जो क्रिया होती है वह विशेष रोशनी की सहायता से ग्राफ पर अंकित होती जाती है। वहाँ बने कम्पन की रेखाओं से भूकम्प की दिशा और प्रभावित क्षेत्र काज्ञान प्राप्त किया जाता है। सभी बड़े नगरों में इस यंत्र कोस्थापित किये जाते हैं।

भूकंप तरंगों का अध्ययन भी इसी यन्त्र से किया जाता है। आजकल अधिक विकसित यन्त्र में फोटो फिल्म की विशेष उच्च स्तर की व्यवस्था होती है। इससे आस-पास के हल्के झटकोंका भी आसानी से अध्ययन किया जा सकता है।

भूकंप केंद्र किसे कहते है

धरती के अंदरजिस स्थान से चट्टानों में होने वाली परिवर्तन से हलचल की शुरूआत होती है। उसे भूकम्प उत्पत्ति केन्द्र कहते हैं।

उत्पत्ति केन्द्र से सभी दिशाओं में जो तरंगें फैलती हैं वही अभिकेन्द्र के चारों ओर वृताकार घेरा बनाती है। इनसे भूकंप से होन वाली हानि का ज्ञान होता है। भूकंप का मूल केन्द्र से हमेशा समान गहराई पर नहीं होता। यह कुछ किलोमीटर से लेकर सौ से अधिक किलोमीटर की गहराई पर हो सकता है। वैसे अधिकांश भूकम्पों के उत्पत्ति केन्द्र की गहराई पृथ्वी से 5 से 8 किलोमीटर के मध्य रहती है।

भारत में भूकंप प्रभावित क्षेत्र

भारत में भूकंप क्षेत्र को चार भागो में बंटा गया है जोन-2, जोन-3, जोन-4 औरजोन-5 इसमें जोन- 5सबसे खतरनाक क्षेत्र है जहां पर अधिक तीव्र गति की भूकंप आता है। जिसमे उत्तर-पूर्व भारत के हिस्से आते है। जम्मू कश्मीर उत्तराखंड, हिमाचल और असम आते है। दिल्ली और उत्तरप्रदेश के ज्यादातर क्षेत्र जोन-4 में आते है। मध्यभारत जॉन-3 में आता है तथा दक्षिण भारत जोन-2 में आता है।

भूकंप तरंग किसे कहते है

भूकंप केन्द्र केचारों ओर चलने वाली लहरों या कम्पन कोभूकम्प तरंग कहते हैं। इनकी गति समान नहीं रहती। यह रुक-रुककर आगे बढ़ती रहती है। अतः भूकम्प तरंगें कई प्रकार से प्रभावी होती हैं।

1. प्राथमिक या 'P' तरंगें - ये तरंगें सबसे अधिक तेज गति से चलती हैं। इनकी गति 8 से 14 किलोमीटर प्रति सेकण्ड तक रहती है। ये तरंगें ठोस एवं तरल पदार्थों में समान रूप से गतिशील होती हैं। इसे संक्षेप में 'P' तरंगें भी कहा जाता है।

2. द्वितीयक या 'S' तरंगें - इन लहरों की गति जल में उठने वाली लहरों जैसी होती है। इनकी गति 5 से 7 किलोमीटर प्रति सेकण्ड रहती। तेज भूकम्प के झटकों से इन लहरों के कारण पृथ्वी पर दरारें पड़ जाती हैं।

Rajesh patel
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