भूकंप किसे कहते हैं - earthquake in hindi

भूकंप एक प्राकृतिक आपदा हैं जो पृथ्वी की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने के कारण होती हैं। वे जान-माल का बहुत बड़ा नुकसान कर सकते हैं, और उनकी गंभीरता रिक्टर पैमाने पर मापी जाती है। कोलकाता में 1737 में आया भूकंप भारत के इतिहास में सबसे दुखद उदाहरणों में से एक है।

भूकंप किसे कहते हैं

भूकंप एक प्राकृतिक घटना है जो तब होती है जब पृथ्वी के अंदर टेक्टोनिक प्लेट आपस में टकराने लगती हैं। भूकंप के कारण होने वाले झटकों से इमारतें, सड़कें, पुल और अन्य संरचनाएं ढह सकती हैं। इससे खासकर अधिक आबादी वाले इलाकों में जान-माल का बहुत नुकसान होता है। विनाश केवल भौतिक संरचनाओं तक ही सीमित नहीं होती है, बल्कि यह भूस्खलन, सुनामी और आग का कारण भी बन सकती है।

जिस प्रकार पानी में पत्थर फेंकने से वहाँ से चारों दिशाओं में लहरें फैलने लगती हैं। उसी प्रकार पृथ्वी के अंदर चट्टानों के टकराने से भूकंपीय तंरगे चारों दिशाओं में फैल जाती हैं। इन तंरगों की सघनता के अनुसार ही भूकंप की शक्ति का पता चल जाता है।

भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल का उपयोग करके मापी जाती है, जो भूकंप की तीव्रता को इंगित करने के लिए 1 से 10 के बीच एक संख्या प्रदान करता है। रिक्टर स्केल पर उच्च संख्या वाले भूकंप अधिक शक्तिशाली होते हैं और अधिक विनाश का कारण बनते हैं।

भूकंप किसे कहते हैं - earthquake in hindi

7 या उससे अधिक तीव्रता वाले भूकंप को एक बड़ा भूकंप माना जाता है जो व्यापक विनाश का कारण बन सकता है। भारत के इतिहास में सबसे विनाशकारी भूकंपों में से एक 1737 में कोलकाता में आया था। जिसकी तीव्रता 7.5 से अधिक थी। इस भूकंप ने व्यापक विनाश किया जिसके कारण लगभग 300,000 लोगों की जान चली गई।

परिभाषा - भूकंप पृथ्वी के आन्तरिक भाग से सम्बन्धित वे धरातलीय कंपन हैं। जो प्रकृति द्वारा उत्पन्न होते हैं। जब भी प्राकृतिक कारणों से पृथ्वी के अंदर चट्टानों में किसी प्रकार की विसंगति पैदा होने लगती है तो धरती पर भूकंप आने लगता है।

भूकंप की उत्पत्ति कैसे होती है

प्राचीन मान्यता के अनुसार इसे देवीय शक्ति माना जाता था। बहुत पहले ये धारणा बनी कि जब पृथ्वी पर पाप अधिक होने लगते हैं। तो उनके भार से पृथ्वी हिलने लगती है। बाद में लोगों ने माना कि पृथ्वी नाग सर्प के फन के ऊपर है। जब नाग हिलता है तो पृथ्वी में भी कंपन होने लगती है। टर्की में पृथ्वी को भैंसे के सींग पर टिकी मानी जाती है। जबकि उत्तरी अमेरिका में इसे कछुए पर रखा माना जाता था।

आधुनिक समय में प्राचीन विचारधारा को असत्य साबित किया गया है क्योंकि ये सभी बातें विज्ञान से बहुत दूर है। इसमें रखी गई बातों को मानना सम्भव नहीं है। भूकंप की उत्पत्ति के निम्न कारण हैं। 

1. क्रियाशील जल-वाष्प - पृथ्वी की गहराइयो में दरारों से पानी काफी नीचे पहंचने लगता है। तो पानी तेजी से गर्म होकर वाष्प में बदलता जाता है। साथ ही अनेको प्रकार की गैसें भी वाष्प के साथ मिल जाती है। ऐसी गैस मिश्रित उच्च दबाव वाली वाष्प गतिशील होती है। यह मिश्रित वाष्प पृथ्वी की सतह की ओर आने का प्रयास करती है। 

कभी-कभी ये जल वाष्प और गैस कमजोर पृथ्वी की पपड़ी से बाहर आने लगती हैं। इन क्रियाओं से पृथ्वी में कम्पन उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण भूकंप आता है।

2. ज्वालामुखी क्रिया - पृथ्वी के असन्तुलित भागों में जहाँ धरती की परत काफी काम होती है। वहाँ ज्वालामुखी क्रिया अधिक होती हैं। ज्वालामुखी विस्फोट के साथ ही भूकंपीय लहरें उत्पन्न होती हैं। इसका प्रभाव निकटवर्ती क्षेत्रों में अधिक देखा जाता हैं।

ज्वालामुखी और भूकंप एक दूसरे से संबधित होते हैं। मैग्मा तीव्र गति से ऊपर की और बढ़ता हैं और धरती को चीर कर बहार आ जाता हैं। जिसके कारण भूकंपीय तरंगे उत्पन्न होती हैं।

3. संपीडन की क्रिया - पृथ्वी की सतह पर अनेक कारणों से संपीडन की क्रियाएं होती है। ऐसी क्रियाओं के प्रभाव से पृथ्वी की चट्टानें टूटती और सतह पर दरार घाटी या पर्वत विकसित होते हैं। जब ऐसी क्रियाएँ पृथ्वी की गहराई में होती हैं तो विस्तृत क्षेत्र में भूकंप आते हैं।

4. भू-संतुलन की व्यवस्था - पृथ्वी के अधिकांश भागों में भू-संतुलन सम्बन्धी थोड़ी बहुत अव्यवस्था पाई जाती है। किन्तु कुछ भाग ऐसे भी हैं जहाँ कि ऊंचे ऊचे पर्वत एवं गहरे सागर पास पास में स्थित होते है। ऐसे भागों में संतुलन की अव्यवस्था सबसे अधिक पाई जाती है। 

इसी कारण वहाँ संतुलन स्थापित करने के लिए प्राकृतिक शक्तियां कार्य करने लगती हैं। जिसके कारण भूकंप आते है। जापान में आने वाले विनाशकारी भूकंप इसी प्रकार की होती हैं। फिलीपीन्स एवं अफगानिस्तान में 4 मार्च 1949 को आया भूकंप भू-संतुलन की अव्यवस्था के कारण था।

5. प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धांत - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन डॉ. एच. एफ. रीड द्वारा किया गया था। इसके अनुसार प्रत्येक चट्टान में थोड़ी मात्रा में दबाव को सहन करने की क्षमता होती है। इसी आधार पर डॉ. रीड ने अपना सिद्धान्त चट्टानों में प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त प्रस्तुत किया। 

जब चट्टानों पर क्षमता से अधिक दबाव की स्थिति आ जाती है। तो ऐसी स्थिति में चट्टानें सहन नहीं कर पाती तथा टूट जाती हैं। टूटी हुई चट्टानें फिर से खिंचकर अपनी पुरानी स्थिति में आने लगती हैं। जिसके कारण वहाँ कुछ स्थान खाली हो जाती है। इससे पृथ्वी की सतह पर भूकंप आते हैं।

भूकंप के प्रभाव का वर्णन कीजिए

भूकंप सबसे अधिक विनाशकारी एवं आकस्मिक घटना है जिसके आगे मानव पूरी तरह असहाय होता है। जहाँ ज्वालामुखी का प्रभाव एक स्थान विशेष के आस-पास ही रहता है। वहीं भूकंप का घातक प्रभाव कुछ सौ वर्ग किलोमीटर से लाखों वर्ग किलोमीटर तक होता है। इसके अनेक प्रकार से घातक प्रभाव होते हैं। 

1. मानव निर्मित वस्तुओं का नाश - भूकंप आते ही  ईमारत नष्ट हो जाते हैं। बृज तथा खेत-खलिहानों में दरार आ सकती है। सन् 1923 के टोकियो क्षेत्र के भूकंप से 5 लाख भवन नष्ट हो गये थे। हजारों व्यक्ति मारे गये और अरबों की सम्पत्ति को नुकसानहुआ था। इससे उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ था।

2. नगरों का नष्ट होना - कभी-कभी भयंकर भूकंप के कारण पुरे शहर को नुकसान होता है। इससे कुछ ही सेकण्ड में बड़े शहर नष्ट हो जाते है। जैसे - यूगोस्लाविया का स्कोपजी शहर, जापान के टोकियो शहर का अधिकांश भाग, टर्की के टेन्जियर्स शहर कुछ ही सेकण्ड में नष्ट हो गया था।

3. बाढ़ की समस्या - भूकंप के प्रभाव से जब नदी का मार्ग ही बदल जाता है या उनके मार्ग में भू-स्खलन के कारण नदी अपना मार्ग बदल लेती है अथवा वहाँ अस्थायी झील बन जाती है। दोनों ही दशाओं में निचले क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ आती हैं। वर्तमान काल में सन् 1950 में असम के भूकंप से दिहांग एवं ब्रहापुत्र के मार्ग बदल गया था। और सुबंसिरी नदी का बाँध टूट गया था। जिससे इन क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो गयी थी।

4. भू-तल पर दरार - विनाशकारी भूकंपों से धरती पर दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों में गाँव, भवन, सड़कें आदि समा जाते हैं। असम में सन् 1897 एवं 1950 के भूकंप से इसी प्रकार की कई किलोमीटर लंबी दरारें पड़ गयी थी।

सन् 1819 के सिन्धु डेल्टा के भूकंप से समुद्र में 80 किलोमीटर लंबा व 26 किलोमीटर चौड़ा द्वीप बन गया था। कच्छ की खाड़ी में सन् 1890 के भूकंप से समुद्र का तटीय भाग सागर तल नीचे धंस गया। इस प्रकार के परिवर्तन से सम्पूर्ण प्रदेश के संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

5. सागर में भयंकर लहरें उठना - महासागर या समुद्र में भूकंप आने पर पानी की विशाल लहरें उत्पन्न होती हैं। इससे समुद्र तट पर बने सभी प्रकार की भवन, सडकें, रेलमार्ग, उद्योग कुछ ही सेकण्डों में नष्ट हो जाते हैं। इससे अपार जन-धन की हानि होती है। 

सन् 1819 के कच्छ की खाड़ी में आये भूकंप से अधिकांश तटीय कस्बे व नगर नष्ट हो गया था। 26 दिसम्बर 2004 को हिन्द महासागर में आये भूकंप से उत्पन्न शक्तिशाली सुनामी भारत, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड, मलेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका व मालदीव में आया था।

भूकंप के लाभ और हानि

भूकंप से लाभ - भूकंप के कारण धरातल पर नए द्वीप पठार और झीलों का निर्माण होता है। छिपी हुई बहुमूल्य धातुएं तथा उस से युक्त चट्टाने धरातल के समीप आ जाते हैं जो बाद में आसानी से खोदी जा सकती है। कभी-कभी समुद्र तट के समीप की भूमि धंसने से वहां पर खड़िया बन जाती है इन जगहों पर उत्तम बंदरगाहों का विकास होता है। भूकंप से कभी-कभी पर्वतों की ऊंचाई बढ़ जाती है ऊंचे पर्वत अधिक वर्षा का कारण होते हैं।

भूकंप से हानि - भूकंप द्वारा थोड़े समय में बहुत अधिक जन धन की हानि होती है हाल ही में महाराष्ट्र के लातूर जिले में आए भूकंप से कई हजार लोगों की मृत्यु हो गई। भूकंप के कारण धरातल में कई विलक्षण परिवर्तन हो जाते हैं जल प्रवाह उलट जाता है। कहीं-कहीं नदिया जिले तथा दलदल सुख जाते हैं भूस्खलन से नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। बांध टूट जाने से भयंकर बाढ़ आ जाती है बिजली के खंभों के गिरने से कई घटनाएं हो जाती है।

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