सामान्य व्यक्ति भूगोल को पर्वत, पठार, मैदान, नदियाँ, सागर तथा राजनीतिक सीमाओं का अध्ययन ही समझते है किन्तु भूगोल समस्त विज्ञान का सार है। पहले भूगोल नक्षत्र शास्त्र का हा एक भाग था क्योंकि इसको विकसित करने का प्रयास युनान वासियों ने ही किया था। बाद में अन्य देशों के विद्वानों ने इसका विकास करने में योगदान दिया हैं।
यह एक प्रगतिशील विज्ञान है, जिसका अध्ययन पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही प्रारम्भ हो गया था। परन्तु इसका स्वरूप, अध्ययन-क्षेत्र और उद्देश्य परिवर्तित होता रहा हैं। भूगोल को अंग्रेजी में जियोग्राफी कहा जाता हैं। जियो का अर्थ पृथ्वी और ग्राफी का अर्थ वर्णन करना होता है। इस प्रकार यह पृथ्वी का अध्ययन करने वाला विषय हैं।
प्राचीन काल में भूगोल को केवल पृथ्वी का वर्णन करने वाला विषय समझा जाता था। प्राचीनकाल में यूनान एवं रोम के अनेक विद्वानों ने महत्वपूर्ण भौगोलिक वर्णन प्रस्तुत किए हैं। जिनमें हेकेटियस, अरस्तु, इरेटोस्थनीज और हेरोडोटस विशेष उल्लेखनीय हैं।
भूगोल किसे कहते हैं
इरेटॉस्थनीज ने सर्वप्रथम भूगोल का प्रयोग किया था। इसीलिए इन्हें भूगोल का जनक कहा जाता है। पृथ्वी तल पर रहने वाले सभी मानव जाति एवं उसके प्राकतिक वातावरण का अध्ययन करने वाले विषय को भूगोल कहते है। भूगोल की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा नीचे दिया गया है।
परिभाषा - भूगोल एक ऐसा विषय है, जिसका उद्देश्य आकाशीय पिण्डों, थल, महासागर, जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों और पृथ्वी के सभी क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त करना हैं। भूगोल के अंतर्गत प्रकृति और मानवीय गतिविधि का अध्ययन किया जाता हैं।
इमेनुअल काण्ट - भूगोल धरातल का अध्ययन करता है तथा यह भूतल के विभिन्न भागों में पायी जाने वाली विभिन्नताओं की पृष्ठभूमि में की गयी व्याख्या का अध्ययन करता है। इसमें सभी घटनाओं के मध्य जटिल एवं क्रियाशील सम्बन्ध तथा अन्तर्सम्बन्ध पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
कार्ल रिटर - भूगोल विज्ञान का वह भाग है जिसमें भूमण्डल के सभी घटनाओं और उनके सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। पृथ्वी को स्वतन्त्र रूप से मानते हुए वर्णन किया जाता है।
हार्टशोर्न - भूगोल वह अनुशासन है, जो पृथ्वी को मानव का संसार मानकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर विभिन्न लक्षणों को वर्णन तथा व्याख्या के लिए खोजता है।
मोकहाउस - भूगोल में पृथ्वी पर प्राकतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार के तथ्यों के वितरणों और मानव निवास के रूप में पृथ्वी के धरातल की क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।
20 वी शताब्दी तक भूगोल के अध्ययन में प्रदेश, क्षेत्र तथा उनकी व्याख्या करना सम्मिलित हो गया था तथा इसके साथ-साथ मानव, स्थान तथा स्थानिक अध्ययन के महत्व को भी स्वीकारा किया जाने लगा था। आधुनिक भूगोल में मानव और वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों को दिखाया जाता है।
जीन बून्श का विचार है, "यह अब कोई वर्णनों की सूची नहीं, किन्तु यह एक इतिहास है। यह अब केवल स्थान मात्रों की गणना नहीं करता अपितु यह एक व्यवस्थित क्रमबद्ध विषय है। इसका उद्देश्य दोहरा है। कार्यशील तथ्यों के प्रत्यक्ष प्रभाव को वर्गीकृत करना, उनको समझना और इन सभी तथ्यों का सम्मिलित प्रभाव क्या होगा यह निर्देशन करना है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है (1) भूगोल पृथ्वी तल का अध्ययन है, (2) भूगोल पारिस्थितिकी का विज्ञान है, (3) भूगोल प्रादेशिक विषमताओं का अध्ययन है. (4) भूगोल स्थानिक संगठनों की संरचनाओं तथा पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन है।
17वीं शताब्दी में अनेक प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों के विकास की भाँति भूगोल का भी एक सुव्यवस्थित रूप स्पष्ट होने लगा। इस काल के विद्वान बाइबिल एवं धार्मिक चिन्तन के प्रभाव से मुक्त होकर स्वतन्त्र स्थायित्व के साथ तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत करने लगे।
जर्मन विद्वान वारेनियस ने भूगोल में क्रमबद्ध पद्धति का आरम्भ होता है। उन्होंने पहली बार भूगोल को सामान्य भूगोल तथा विशिष्ट भूगोल नामक दो भागों में विभाजित किया। सामान्य भूगोल भौतिक है।
भौतिक भूगोल क्या है
भौतिक भूगोल, वृहद् भूगोल शास्त्र की एक शाखा है। यह वह विज्ञान है जिसमें भौतिक पर्यावरण का अध्ययन किया जाता है। इसका स्वरूप परिवर्तित होता रहा है।इसका प्रयोग भूगोल, सामान्य भूगोल, क्रमबद्ध भूगोल तथा प्राकृतिक भूगोल आदि रूपों में होता रहा है। वर्तमान समय में इसे भौतिक भूगोल कहा जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में भौतिक भूगोल को संकुचित अर्थों में प्रयोग किया जाता था।
18वीं एवं 19वीं शताब्दी में वारेनियस, इमैनुअल काण्ट एवं वॉन हम्बोल्ट आदि ने भौतिक भगोल शब्दों का प्रयोग सामान्य भूगोल के लिए किया जिसे क्रमबद्ध भूगोल कहा जाता है।
20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भौतिक भूगोल में मात्र अजैविक भूगोल के अध्ययन को ही सम्मिलित गया था। इसमें वनस्पति, जीव एवं मानव प्रजातियों को सम्मिलित नहीं किया गया था।
वाल्थर पैंक ने भौतिक भूगोल को भू-आकृति विज्ञान के रूप में माना हैं। भौतिक भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जिसमें समस्त भौतिक वातावरण का अध्ययन सामिल है।
भौतिक भूगोल की परिभाषा
भौतिक भूगोल को निम्न विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है।
आर्थर होम्स के अनुसार "भौतिक वातावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है, जिसके अन्तर्गत द्वीपों तथा सागरों व महासागरों की सागरीय तलहटियों के धरातलीय उच्चावच तथा वायु का अध्ययन किया जाता है।
आर्थर होम्स के अनुसार, "भौतिक भूगोल में पर्यावरण के तीन तत्वों स्थल, जल एवं वायु का विवरण मिलता है।"
इमैनुअल काण्ट ने भौतिक भूगोल को विशेष महत्व प्रदान करते हुए उसको निम्न प्रकार से परिभाषित किया है। "भौतिक भूगोल विश्व के ज्ञान का प्रथम भाग है, यह वास्तव में सारभूत प्रारम्भिक तथ्य है जिसके द्वारा विश्व के वस्तुबोध को समझा जा सकता है।"
स्ट्रेलर के अनुसार, "भौतिक भूगोल सामान्य रूप से भू-विज्ञान का अध्ययन एवं समन्वय है जो मानव पर्यावरण पर सामान्य रूप से प्रकाश डालते हैं।"
ए. के. लोबक के अनुसार - जीवन तथा भौतिक वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन भूगोल का विषय है तथा मात्र भौतिक वातावरण का अध्ययन भौतिक भूगोल है।"
टार व वॉन एन्जिल के अनुसार - भौतिक भूगोल के अन्तर्गत पृथ्वी के भौतिक स्वरूपों तथा उनके मानव पर प्रभाव का वर्णन किया जाता है।
ऊपर दी गई परिभाषाओं से स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल का सम्बन्ध भौतिक परिस्थितियों से हैं। परिस्थितियाँ, भौतिक वातावरण तैयार करती हैं अतः भौतिक भूगोल में उस भौतिक वातावरण का ही अध्यनन किया जाता है । यह स्थल, जल एवं वायुमण्डल के सम्बन्धों के प्राकृतिक परिणाम का अध्ययन करता है।
भौतिक भूगोल का विषय क्षेत्र
भौतिक भूगोल की परिभाषाओं में ही इसका अध्ययन-क्षेत्र निहित है। भौतिक भूगोल अनेक भू-विज्ञानों का समन्वय है। इसमें भौतिक पर्यावरण तथा मानव के पारस्परिक सम्बन्धों का भी अध्ययन किया जाता है। भौतिक भूगोल मानव के समस्त प्रारूपों का विश्लेषण व प्राकतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है।
प्राकृतिक पर्यावरण की भिन्नता को समझने के लिए शैलों की बनावट, मृदा, वनस्पति, खनिज पदार्थ, जलाशय तथा वायुमण्डल का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन-क्षेत्र में सम्पूर्ण पृथ्वी ही आ जाती है। पृथ्वी से तात्पर्य उसकी सतह, भूगर्भ एवं वायुमण्डल, स्थल, जल आदि से सम्बन्धित समस्त तत्वों का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है।
स्थल अथवा सागर तलहटी में स्थित पृथ्वी के समस्त उच्चावच भौतिक भूगोल की परिधि में आते हैं। इन उच्चावचों का समग्र अध्ययन भौतिक भूगोल में किया जाता है।
मानव अपनी समस्त क्रियाएँ इन्हीं उच्चावचों पर करता है, अतः इनका विस्तृत अध्ययन करना उसका परम दायित्व है। इस पृथ्वी पर रहकर ही मानव जीवित रहने के लिए साँस लेता है जो उसे वायुमण्डल से मिलती है। वायुमण्डल का अध्ययन मौसम एवं जलवायु विज्ञान में किया जाता है अतः ये सभी भौतिक भूगोल के अंग हैं।
पृथ्वी के उच्चावचों की तीन भागो में बाँटा गया है
(1) प्रथम प्रकार के उच्चावच लक्षण - महाद्वीप एवं महासागर।
(2) द्वितीय
प्रकार के उच्चावच लक्षण - पर्वत, पठार, मैदान, महासागरीय मैदान आदि।।
(3)
तृतीय प्रकार के च्चावच लक्षण - घाटियाँ, जल- प्रपात, जलोढ़ पंख, बाढ़ के मैदान,
डेल्टा आदि।
इन तीनों प्रकार के उच्चावचों का अध्ययन भौतिक भूगोल में किया जाता है। समस्त
स्थलाकृतियों की उत्पत्ति एवं व्यवस्थित विकास का अध्ययन भूआकृति विज्ञान में
किया जाता है अतः यह भी भौतिक भूगोल का अंग है।
संक्षेप में कहा
जा सकता है कि भौतिक भूगोल में सौर परिवार की उत्पत्ति, सूर्य, चन्द्रमा एवं
पृथ्वी का सम्बन्ध।
भूगर्भिक चट्टानों की संरचना, भू-क्षरण, अपरदन चक्र, अपरदन, निक्षेपण के कारकों-नदी, हिमानी, पवन, भूमिगत जल आदि द्वारा निर्मित आकृति, गति, मृदा संरचना, विशेषताएँ एवं गुण आदि का अध्ययन इसमें किया जाता है। इसको विस्तार से समझने के लिए इसे विभिन्न शाखाओं में विभक्त किया गया है ।
खगोलीय शास्त्र, मिश्रित भौतिक विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान,जलवायु विज्ञान, जल विज्ञान, समुद्र विज्ञान, हिमनद विज्ञान, मृदा भूगोल, जैव भूगोल एवं स्वास्थ्य भूगोल आदि। इन सभी का अध्ययन ही इसका अध्ययन-क्षेत्र है। स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।
भौतिक भूगोल की शाखा कौन सी है
भौतिक भूगोल का सम्बन्ध उन विषयों से है जो प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण के तत्वों काअध्ययन करते हैं। इस प्रकार प्राकृतिक तथा सामाजिक दोनों विज्ञानों से भौतिक भूगोल का सम्बन्ध है। समस्त भूविज्ञानों का अपना विशिष्ट क्षेत्र होता है परन्तु उनकी संरचनाएँ अनिवार्य रूप से परस्पर व्याप्त होती हैं और एक-दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण करती हैं।
पृथ्वी का आकार तथा विस्तार भूमापन विज्ञान से सम्बन्धित है तो पृथ्वी तथा सूर्य के सम्बन्ध ज्योतिषशास तथा भूगणित से सम्बन्धित हैं।
भौतिक भूगोल इन विज्ञानों से इसलिए सम्बन्धित है। क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा जैसे आकाशीय पिण्ड पृथ्वी के भौतिक एवं जैविक पर्यावरण को प्रभावित करते है। सूर्य से विकरित होने वाली ऊर्जा से ही भूतल पर जीवों को पोषित करने वाली समस्त ऊर्जा धाराओं एवं पवन की समस्त प्रेरक शक्ति उपलब्ध होती है।
सौर्थिक शक्ति की प्रखरता दैनिक एवं वार्षिक गति में घटती-बढ़ता रहती है। अतः सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के अपने अक्ष एवं कक्षा पर गतियों का ज्ञान भौतिक भूगोल में आवश्यक होता है। चन्द्रमा की गतियों तथा उसकी ज्वारीय शक्ति का अध्ययन समुद्र विज्ञान में किया जाता है।
भूविज्ञान में धरातल की बनावट, चट्टानें उनकी उत्पत्ति एवं वितरण, पृथ्वी का भूवैज्ञानिक कालक्रम, चट्टानों में पाये जाने वाले खनिज, पृथ्वी की आन्तरिक संरचना आदि का अध्ययन किया जाता है।
भातिक भूगोल में भी पृथ्वी के धरातल का अध्ययन किया जाता है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी की आन्तरिक संरचना से रहता है। चट्टानों में जो खनिज पाये जाते हैं, उनका भौतिक भूगोल में महत्वपूर्ण स्थान होता है। खनिजों एवं चट्टानों का निर्माण भूगर्भशास्त्र का भी अध्ययन क्षेत्र है। अतः इसका भूगर्भशास्त्र से निकट का सम्बन्ध है।
भूपटल पर स्थलरूपों का विकास आन्तरिक तथा बाह्य बलों द्वारा होता है। आन्तरिक बलों में पटल विरूपणी बल तथा ज्वालामुखी एवं भूकम्प क्रिया जैसे आकस्मिक बल महत्वपूर्ण होते हैं।
यद्यपि इन बलों का सम्बन्ध भौतिक भौमिकी से है तथापि इन बलों का अध्ययन भूआकृति विज्ञान में स्थल रूपों के विकास को समझने में किया जाता है। जलीय एवं तटीय भूआकृति विज्ञान का अध्ययन तरल यान्त्रिकी और अवसाद विज्ञान से घनिष्ठ रूप से जुड़ा है।
इसी भाँति शैल पुंज प्रवाह, अपक्षय, पवन के कार्य एवं मृदा का अध्ययन करते समय भौतिक भूगोलवेत्ता को वायुमण्डलीय विज्ञान, मृदा भौतिकी, मृदा-रसायन विज्ञान और मृदा-यान्त्रिकी जैसे विषयों का अध्ययन करना पड़ता है। स्थलरूपों के प्रकारों के अध्ययन में भौतिक एवं ज्वालामुखी विज्ञान के सिद्धान्तों एवं विधियों का अध्ययन अपरिहार्य हो जाता है।
भौतिक भूगोल में जैव जगत का अध्ययन किया जाता है । जीव-जन्तु मानव को भोज्य सामग्री, पहनने के लिए वस्त्र (खाल व समूर) तथा उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। जन्तु विज्ञान में जीव-जन्तुओं के संवर्धन एवं उनके विकास का अध्ययन किया जाता है। इसलिए दोनों एक दूसरे के निकट हैं।
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