इस पोस्ट में मैं आपसे तुलसी दास का जीवन परिचय शेयर करने वाला हूँ इस पोस्ट को अपने ब्लॉग में लिखने से पहले मैंने एक पोस्ट लिखा था तुलसीदास के दोहे के बारे में जिसमें हमने आपको बताया था।
Tulsidas ka jivan parichay
हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के कवि के रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि तुलसीदास जी का जीवन बहुत ही कष्ट भरा रहा था। उन्होंने बचपन में ही बहुत सारी परेशानियों का सामना किया था।
तुलसीदास का जन्म हुआ था उत्तरप्रदेश के बांदा जिले में एक गाँव आता है राजापुर वहां तुलसीदास का जन्म हुआ था। तुलसीदास का जीवन परिचय जैसे की रामचरित मानस के आरम्भ में बताया गया है। इनका जन्म सम्वत 1554 को बताया गया है यदी इसको सन में देखें तो इनका जन्म 1497 के लगभग आता है क्योकि सम्वत और सन में 57 वर्ष का फर्क होता है।
यदी इसी सन को सम्वत में पढ़ा जाता तो यह उतना ही होता जितना बताया गया है। कई विद्वानों का मानना है की इनका जन्म स्थान राजापुर गाँव नहीं है, जो कवि इनका जन्म स्थान सोरो उत्तररप्रदेश को मानते हैं। इस प्रकार इनके जन्म स्थान को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ ही की किसे इसका सही जन्म स्थान माना जाए।
तुलसी दास ऐसे कवियों में से एक हैं जो अकबर और जहांगीर के समकालीन थे। तुलसीदास का अधिकांश जीवन कांशी में व्यतीत हुआ ऐसा विद्वानों का मानना है तथा वहीं उनका निर्वाण स्थान अर्थात वही इनकी मृत्यु संवत 1680 सन 1623 को हुआ ऐसा माना जाता है।
गोस्वामी इनको दिया गया उपाधी है जो की उस समय श्रेष्ठ ब्रम्हणों को दिया जाता था। ताकि धर्म का सुधार हो सके और ब्राम्हणों का धर्म उस समय श्रेष्ठ माना जाता था। यह हिन्दू धर्म में गुसाई के उपनाम के रूप में जाना जाता है। तुलसीदास उस समय के श्रेष्ठ ब्राम्हणों में से एक थे इस कारण इनके नाम के आगे गोस्वामी का गुसाई के उपनाम गोस्वामी लगा हुआ है। जो की इनकी श्रेष्ठता को दर्शाता है।
उपनाम, गोस्वामी तुलसीदास
गोस्वामी सम्प्रदाय का प्रारम्भ शंकराचार्य ने प्रारम्भ किया था ताकि धर्म की हानि न हो और इस गोस्वामी सम्प्रदाय के अंतर्गत 10 उप जातियां आती है। अभी हिन्दू समाज में इसका अर्थ गौ रक्षक के रूप में देखा जाता है।
तुलसीदास माता पिता
तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम था और माता का नाम हुलसी था ऐसा प्रसिद्ध है। इन्होने अपना बचपन साधुओं के साथ गुजारा ये अवसर विरले ही किसी को बचपन में मिलता है।
मुझे लगता है की इनका बचपन इसलिए भी साधुओं के संगत में गुजरा क्योकि इसके माता का निधन जल्दी ही हो गया था। और इनका लालन पालन एक वृद्ध महिला चुनियाँ ने किया लेकिन वो भी ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रही और कुछ समय बाद पिता की भी मृत्यु हो गई। जिसके कारण इनको विरक्ति हो गई थी। ऐसा मुझे लगता है।
तुलसीदास का विवाह कब हुआ
इनका विवाह युवावस्था में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम रत्नावली है ऐसा लोगों का मानना है। इस प्रकार युवावस्था में ही इनका विवाह हो जाने के कारण इनको रत्नावली के प्रति बहुत ही ज्यादा आसक्ति हो गयी थी तुलसीदास जी को इन्होने ही भक्ति का मार्ग दिखाया था। ऐसी जनश्रुति है।
तुलसीदास का प्रचलित कथा
तुलसीदास को लेकर एक कथा प्रचलित है जब एक बार तुलसी दास की पत्नी अपने मायके चली गयी थीं तब तुलसीदास इतने ज्यादा आसक्त हो गए थे की उन्होंने किसी भी प्रकार के बाधा का सामना करते हुए वहां उसके घर पहुंच गए।
तुलसीदास जब उनकी पत्नी से मिलने जा रहे थे तो उनके सामने एक नदी पड़ा जिसमें एक लास बहती हुई आ रही थी। जिसे इन्होने नौका समझ के उस पर बैठकर नदी को पार किया था। उस समय बिजली भी कड़क रही थी। बहुत ज्यादा बारिस हो रही थी। फिर भी रत्नावली के प्रेम में आसक्त होकर उन्होंने कुछ नहीं देखा जैसे तैसे करके वे उनके घर पहुंचे। अब वहां पहुंचने पर दरवाजा बंद था।
फिर तुलसीदास को एक रस्सी दिखा जो की दीवाल के बाहर लटका हुआ था उसे पकड़कर उन्होंने दीवार के उस पार जाने का सोचा और पार चले गए, बाद में उनके पत्नी ने बताया की वह रस्सी नहीं साँप था। एक प्रकार रत्नावली के प्रेम में तुलसीदास को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
तुलसीदास के इस प्रकार के प्रेम को देखकर रत्नावली स्तब्ध हो गई और उन्होंने तुलसी दास को कहा की मेरे प्रति जितना प्रेम अभी तुम दिखा रहे हो अगर उतना ही प्रेम यदि आप प्रभु राम के प्रति दिखलाते तो तुम्हारा उद्धार हो जाता।
यह बात उनके दिल को लगी और तुलसीदास जी को विरक्ति सी हो गयी उसके बाद उन्होंने अपना जीवन वैराग्य धारण करके बिताया। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा बदलाव था या कहें उनके जीवन का वैराग्य के प्रति झुकाव था। जिससे वे फिर कभी बाहर नही निकल सके।
तुलसीदास भक्ति भावना
तुलसीदास ने भक्ति के लिए श्री राम को चुना और उन्होंने उनकी भक्ति में ही अपना जीवन खपा दिया ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योकि मैंने सूना है की इन्होने रामचरित मानस को 70 वर्ष की उम्र में लिखा था। कहते हैं की इन्होने अपना सारा जीवन ज्ञान की खोज में लगा दिया और उसका सारा सार रामचरित मानस में देखने को मिलता है।
इसी कारण रामचरित मानस सभी ग्रंथ से सर्वोपरि है और उसमें किसी भी प्रकार के किसी जाति या धर्म का अपमान नहीं किया गया है। एक बार एक मंदिर में इनके द्वारा लिखे गए रामचरित मानस को और अन्य ग्रंथ को साथ में रखा गया तो वहां पर रामचरित मानस जिसको सबसे निचे रखा गया था वो सुबह सबसे ऊपर था। इससे पता चलता है की वह कितना महान रचना है जिसका की कोई भी ग्रंथ सामना नहीं कर सकता था। और अभी भी नहीं कर सकते हैं।
तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अवतारी रूप को अपना आराध्य मानकर उनका चरित गान किया है। रामायण की कथा को इन्होने ऐसे आदर्श रूप में प्रस्तुत किया कि उसे पढ़कर सभी को जीवन-निर्माण की प्रेरणा मिलती है।
तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ
- तुलसीदास के काव्य की विशेषता यह भी है की इन्होने अपने समय तक प्रचलित सभी काव्य शैलियों का सफलतापूर्व प्रयोग किया है।
- भाषा, भाव और छंदों का ऐसा समन्वय अन्यत्र दुर्लभ है।
- तुलसीदास ने अपने काव्य के माध्यम से विभिन्न सम्प्रदायों में समन्वय स्थापित करने का भी प्रयास किया है।
- सांस्कृतिक प्रभाव के दृष्टि से इनकी गणना सर्वोच्च कवियों के रूप में की जा सकती है।
- इनके काव्य को पढ़े तो पता चलता है की ये संस्कृत और अवधि भाषा के पुरे पंडित थे। जिन्होंने राम जी के चरित्र को वाल्मीकि रामायण से निकाल कर अपने शब्दों में अर्थात अवधी भाषा में लिखा। जो की उस समय काव्य रचना के लिए सबसे उपर्युक्त भाषा थी।
- इसके साथ ही इनका पूरा प्रभाव ब्रज भाषा पर भी रहा इन्होने ब्रज भाषा में भी काव्य रचना की है।
तुलसीदास की तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ -
- रामचरित मानस
- विनयपत्रिका
- कवितावली
- गीतावली
- दोहावली आदि
रामचरित मानस सर्वोत्कृष्ट रचना क्यों ?
- रामचरित मानस
- विनयपत्रिका
- गीतावली
इसी प्रकार की जानकारियां हम अपने ब्लॉग में शेयर करते रहते हैं ब्लॉग से हमसे जुड़े रहने के लिए सब्स्क्राइब जरूर करें धन्यवाद ! और हं आप फीडबैक जरूर दें। ताकि हम अपनी गलतियों को सुधार सकें।
Post a Comment
Post a Comment