होली रंगों का त्योहार है। इसे असत्य पर सत्य के जीत रूप में मनाया जाता हैं। होली पुरे देश में मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक है। फाल्गुन महीने के बसंत पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाता है।
होली पर निबंध
विशेष रूप से उत्तर भारत में उत्साह के साथ होली मनाया जाता हैं। लोग लकड़ी के ढेर को एक स्थान पर रखकर होलिका दहन करते हैं। अगले दिन ढोल, नगाड़ो और रंगो के साथ होली खेली जाती है। लोग होली के दिन सफेद कपड़े पहनते हैं।
लोग एक दूसरे पर रंग लगाकर अपने प्रेम को प्रगट करते हैं। होली के दिन लोग अपनी परेशानियों को भूल जाते हैं और उत्साह के साथ त्योहार को मनाया जाता हैं। श्री कृष्ण की नगरी मथुरा और वृंदावन में 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है।
होली प्रेम और भाईचारा फैलाती है। यह देश में सद्भाव और खुशी लाता है। यह रंगीन त्योहार लोगों को एकजुट करता है और जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है।
होली का त्यौहार अलग अलग प्रदेशों में अलग तरीके से मनाया जाता हैं। बरसाना और नंदगांव में लठमार होली खेली जाती हैं। इसमें महिलाएं पुरुषों को लट्ठ से मारती है और पुरुष अपना बचाव करते है। साथ ही होली के गीत और रंगो की बौछार भी होता है।
हरियाणा में होली को धुलेंडी होली के नाम से जाना जाता है। यहां अबीर गुलाल की रंगीन होली खेली जाती है। बिहार में फगुआ होली बहुत प्रसिद्ध है। यहां होली का त्यौहार बहुत धूम धाम के साथ मनाया जाता है। फगुआ गीत इस होली की विशेषता हैं। महाराष्ट्र मे होली को रंगपंचमी के नाम से जाता है। मछुआरा समुदाय काफी मस्ती, नाच गाना के साथ इस त्यौहार को मानते है।
होली क्यों मनाया जाता हैं
महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया कि मैं मनुष्य द्वारा मारा जाऊ, न पशु द्वारा, न दिन में मरु न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र से और न किसी शस्त्र से।
इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया।
हिरण्यकशिपु के चार पुत्र थे। हिरण्यकशिपु का सबसे बड़ा पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था। हिरण्यकशिपु के मना करने के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता था। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था किअग्नि उसे जला नहीं सकती हैं।
फाल्गुन महीने के बसंत पूर्णिमा को होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी। प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। तक से हल साल बसंत पूर्णिमा को होलिका जलाया जाता हैं।