विनिर्माण उधोग स्थान विशेष में की जाने वाली उस संपूर्ण प्रक्रिया का नाम है जिसमें उपलब्ध पदार्थो को अधिक उपयोगी एवं मूल्यवान बनाने के लिए उनके रूप परिवर्तन किया जाता है। जैसे भूमि से प्राप्त पत्थर, खदान से प्राप्त अयस्क, कृषि उपज के रूप में प्राप्त जूट का पौधा आदि। पदार्थ को तराश कर एच्छिक आकार देकर अयस्क को यंत्रों का रूप देक उपयोगी एवं मूल्यवान बनाया जाता हैं।
उद्योग किसे कहते हैं
रूपांतरण की प्रक्रिया ही विनिर्माण कहलाती है जब यह प्रक्रिया किसी स्थान विशेष में सतत रूप से की जाती है तो विनिर्माण उद्योग कहलाती है दूसरे शब्दों में कच्चे माल को संशोधित और परिवर्तित करके सामग्री तैयार करना ही विनिर्माण उद्योग है।
विनिर्माण उद्योग में कच्चा माल कुछ भी हो सकता है जैसे खनिज उत्पाद, कृषि उत्पाद, वनोपज उत्पाद आदि। उसी प्रकार उद्योग में निर्मित किया हुआ तैयार माल भी किसी अन्य उद्योग के लिए कच्चा माल हो सकता है जैसे लोहा इस्पात उद्योग द्वारा इस्पात निर्मित माल है परंतु इंजीनियरिंग उद्योग के लिए यहां कच्चा माल है उसी प्रकार वस्त्र उद्योग के लिए कपड़ा निर्मित माल है परंतु रेडीमेड वस्त्र उद्योग के लिए यह एक कच्चा माल है।
उद्योगों का महत्व
किसी भी देश की प्रगति वहां के औद्योगिक विकास पर निर्भर करती है इसलिए जो देश जितना अधिक आयात किए गए माल का अधिकतम उपयोग करके विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करता है वह देश विकसित एवं संपन्न होता है। यद्यपि भारत एक विकासशील देश है परंतु यहां उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों के आधार पर विकसित देश बनने की पूर्ण संभावना है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में जब से औद्योगिक विकास प्रारंभ हुआ है तभी से देश की आत्मनिर्भरता एवं राष्ट्रीय शक्ति में वृद्धि हुई है।
उद्योगों का वर्गीकरण
विनिर्माण उद्योग का वर्गीकरण कई आधार पर किया जाता है। जैसे आकार, स्वामित्व कच्चे माल की प्राप्ति, निर्मित माल की प्रकृति , उपयोगिता आदि। कुछ महत्वपूर्ण प्रकारों का वर्णन निम्नलिखित है -
1. कुटीर उद्योग
कुटीर उद्योगों में वस्तुओं का निर्माण परिवार के सदस्यों द्वारा घर पर ही किया जाता है। इसमें कच्चा माल स्थानीय होता है तथा निर्मित वस्तुओं का उपयोग परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा उन्हें स्थानीय बाजार में बेचा जाता है यातायात एवं पूंजी जैसे कारकों का प्रभाव इन उद्योगों में नहीं के बराबर होता है कुटीर उद्योग भारत का प्राचीनतम उद्योग है यह अधिकतर ग्रामीण अंचलों में विकसित है
इसके द्वारा कृषकों को खाली समय में काम मिल जाता है। कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित प्रमुख वस्तुएं, खाद पदार्थ, कपड़े, दरिया, चटाइया, मछली पकड़ने के जाल, नाव के पाल, रेशम, लकड़ी विभिन्न सामान, जूते-चप्पल,गुड़, मिट्टी के बर्तन, रस्सी हैं।
2. लघु उद्योग
कुटीर उद्योग का बड़ा रूप छोटे पैमाने का लघु उद्योग कहलाता है। इनमें कम पूंजी और कम मशीनों की आवश्यकता होती है। इन उद्योगों में प्रयुक्त मशीनें छोटी किंतु विद्युत चलित होती है। कच्चा माल दूर स्थित प्रदेशों से मंगाया जाता है तथा निर्मित माल की बिक्री भी स्थान एवं दूर-दूर के बाजारों में की जाती है।
भारत और जापान में छोटे पैमाने के उद्योग औद्योगिक विकास के अंग है स्वतंत्रता के पश्चात देश के छोटे पैमाने के उद्योगों का तेजी से विकास हो रहा है। इन उद्योगों में खाद पदार्थ, लवण, सिंगार, बीड़ी, चीनी, गुड मसाले, तेल निकालना, जूते चप्पल, चमड़े की अन्य वस्तुएं एवं कांसे के बर्तन बनाते हैं। वास्तव में छोटे पैमाने के उद्योग घनी जनसंख्या वाले देशों में अधिक लोगों को रोजगार देते हैं।
3. मध्यम पैमाने के उद्योग
यह उद्योग आकार में लघु उद्योग से बड़े किंतु वृहद उद्योगों से छोटे होते हैं। इनमें अपेक्षाकृत अधिक पूंजी एवं बड़ी मशीनों का उपयोग किया जाता है। काम करने वाले मजदूरों की संख्या भी अधिक होती है कच्चा माल दूसरे देशों या राज्यों से मंगाया जाता है। एवं निर्माण माल की बिक्री भी दूरस्थ बाजारों में की जाती है। इसके अंतर्गत ऊनि, रेशमी वस्त्र, साबुन, चीनी, कागज आदि उद्योग शामिल है।
4. वृहद पैमाने के उद्योग
इसमें बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा कम समय में छोटी पैमाने पर वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। विभिन्न प्रकार का कच्चा माल, बड़ी मात्रा में विद्युत शक्ति, बहुत अधिक पूंजी, कुशल श्रमिक, उच्च तकनीक, जल प्रबंधन बड़े पैमाने के उद्योगों की विशेषताएं होती है।
इन उद्योगों का विकास सर्वप्रथम पश्चिमी यूरोप के देशों एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया के अन्य देशों में भी फैल गया। भारत में लौह इस्पात उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, मशीनों एवं औजार बनना, विद्युत उपकरण, रसायन उद्योग, तेल शोधन उद्योग, चीनी उद्योग आदि वृहद पैमाने के उद्योगों की श्रेणी में आते हैं। यह उद्योग निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में होते हैं।
5. आधारभूत उद्योग
आधारभूत उद्योग को पूंजीगत माल का उद्योग भी कहते हैं। यह ऐसे उद्योग होते हैं जिनके उत्पादों का उपयोग अन्य प्रकार से उत्पादन कार्य करने के लिए किया जाता है। ऐसे उद्योगों में दूसरे उद्योगों के लिए मशीन, औद्योगिक सम्मान, विशिष्ट उपकरण एवं अन्य उद्योगों की कार्यकुशलता एवं क्षमता बढ़ाने वाले उपकरण आदि तैयार किए जाते हैं।
आधारभूत उद्योग का सर्वोत्तम उदाहरण लोहा एवं इस्पात उद्योग है। इस्पात में मशीनें बनती है, ये मशीनें अन्य उत्पादों को बनाने के लिए उपयोग में लाई जाती है। इस प्रकार लौह इस्पात का उत्पादन उपभोग द्वारा उसी समय समाप्त नहीं हो जाता अपितु वहां आगे उत्पादन प्रक्रिया में योगदान देता है।
अतः ऐसे सभी उद्योग जिसमें पूंजीगत माल एवं ऐसे आधारभूत उपकरण बनते हैं। जिसका अन्य कारखानों के निर्माण एवं विकास में उपयोग होता है उन्हें आधारभूत उद्योग कहा जा सकता है। लोहा इस्पात उद्योग के अतिरिक्त इंजीनियरिंग एवं रसायन उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक एवं भारी विद्युत सामग्री बनाने वाले उद्योग, पेट्रो-रसायन उद्योग आधारभूत उद्योग के अंतर्गत आते हैं।
भारत में आधारभूत उद्योग के अंतर्गत इस्पात उद्योग का प्रारंभ सन 1960 में हुआ जब जमशेदपुर में टाटा का इस्पात कारखाना स्थापित हुआ। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में लौह इस्पात, धातु शोधन, रसायन, सीमेंट, मशीन, भारी विद्युत उद्योग का विकास तेजी से हुआ है। वास्तव में आधारभूत उद्योग की स्थापना से अन्य उद्योगों के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। वास्तविक विकास के लिए आधारभूत उद्योगों का होना आवश्यक है।
उद्योगों का स्थानीयकरण
भारत के औद्योगिक मानचित्र को देखने से स्पष्ट होता है कि अधिकांश उद्योग का स्थानीयकरण एवं विकास मुंबई कोलकाता चेन्नई बेंगलुरु दिल्ली व जालंधर नगर के आसपास हुई है। जबकि मध्य प्रदेश राजस्थान जम्मू कश्मीर उड़ीसा एवं पूर्वोत्तर राज्य के विस्तृत क्षेत्रों में नाम मात्र का उद्योग स्थापित है। प्रश्न यह उठता है कि उद्योगों का विकास देश के सभी क्षेत्रों में समान रूप से क्यों नहीं हुआ है।
इस बात का सूक्ष्म अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि किसी भी उद्योग की स्थापना विकास के लिए आधारभूत ढांचा का होना आवश्यक है। सामान्यतः उद्योगों के स्थानीयकरण एवं सामूहिक करण को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं।
1. कच्चा माल
उद्योग की सबसे बड़ी आवश्यकता कच्चा माल है। कच्चा माल दो प्रकार का होता है सर्व सुलभ पदार्थ जो हर स्थान पर पाए जाते हैं जैसे मिट्टी पानी आदि। दूसरा स्थानीय पदार्थ जो कुछ विशेष स्थानों पर ही पाए जाते हैं जैसे खनिज पदार्थ या कोई विशेष कृषि उपज आदि।
कच्चे माल की अपनी प्रकृति होती है वह सस्ता, बहुमूल्य, अधिक स्थान देने वाला, हल्का, तरल, ठोस, आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान ले जा सकने वाला या ना ले जा सकने वाला, जल्दी नष्ट हो जाने वाला किसी भी प्रकार की प्रकृति का हो सकता है।
कच्चे माल की यह प्रकृति किसी उद्योग को उसी की स्थान पर या उससे हटकर दूर स्थापित किए जाने को निर्धारित करता है। यदि इसे अनदेखा कर किसी उद्योग की स्थापना की जाए तो उस उद्योग की सफलता पर प्रश्न चन्ह लग जाता है।
2. ऊर्जा
उद्योगों का मशीनीकरण हो चुका है। जिसे गति प्रदान करने के लिए किसी ना किसी प्रकार की ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है ऊर्जा की अपनी प्रकृति होती है। जो ताप विद्युत एवं खनिज तेल आदि से प्राप्त होते हैं। जिन उद्योगों में ऊर्जा के रूप में कोयला उपयोग होता है उस उद्योग को भी खानों के निकट है स्थापित किया जाता है। जैसे लोहा इस्पात उद्योग की स्थापना कोयला उत्पादन क्षेत्र के निकट हुई है उदाहरण राहुल केला बोकारो दुर्गापुर जमशेदपुर आदि में हुआ है।
3. परिवहन
कच्चे माल व निर्माण माल को उद्योगों तक लाने व बाजारों तक पहुंचाने के लिए परिवहन सुविधा उद्योगों के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। जो स्थान सभी प्रकार के स्थल, जल एवं वायु परिवहन सुविधाओं से संपन्न है वह स्थान उद्योगों की स्थापना व विकास के लिए आदर्श वातावरण तैयार करते हैं। इसलिए भारत के मुंबई, कोलकाता और चेन्नई नगर आज वृहद उद्योगों के क्षेत्र बन गए हैं। सस्ते जल यात्रा के कारण ही हुगली नदी के दोनों ओर जूट उद्योग केंद्रित है। कानपुर में उद्योगों के स्थानीयकरण का प्रमुख कारण रेलवे केंद्र का होना है।
4. श्रम
श्रम की उपलब्धता उद्योगों को चलाने व उसमें काम करने के लिए कुशल व सस्ती जनशक्ति की आवश्यकता होती है। कुछ उद्योग ऐसे होते हैं। जो श्रम प्रधान होते हैं ऐसी स्थिति में सस्ते कुशल और अधिक संख्या में श्रमिकों का मिलना एक अनिवार्य आवश्यकता होती है। इसलिए चूड़ी व कांच के सामान बनाने के उद्योग फिरोजाबाद में, बनारसी साड़ी बनाने का उद्योग बनारस में, ताला उद्योग अलीगढ़ में, पीतल के बर्तन बनाने का उद्योग मुरादाबाद में तथा चंदन की लकड़ी के सामान बनाने का उद्योग कर्नाटक में, केवल श्रमिकों की विशिष्ट कार्य कुशलता के कारण केंद्रित हुई है।
5. जल
उद्योगों के लिए जल एक महत्वपूर्ण आवश्यक तत्व है। कुछ उद्योगों में जल की अत्यधिक आवश्यकता होती है। जैसे जूट उद्योग में जल एक प्रमुख आवश्यक तत्व है। इनमें पटसन को डूबा कर सड़ाया जाता है। उसके बाद इसे स्वच्छ जल में धोया जाता है। इसी कारण जूट उद्योग हुगली नदी के तट पर केंद्रित है।
जल की आवश्यकता वाले प्रमुख उद्योगों में कागज लुगदी रसायन परमाणु ऊर्जा संयंत्र आदि उद्योग हैं ऐसे स्थानों पर स्थापित किए जाते हैं। जहां से पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल की आपूर्ति हो सके।
6. बाजार
बाजार की निकटता तैयार माल की खपत के लिए बाजार की निकटता एक प्रमुख कारक है। यही कारण है कि बाजार की निकटता उद्योग की स्थापना को प्रभावित करता है। पश्चिम बंगाल में सूती वस्त्र उद्योग का विकसित होने का प्रमुख कारण बाजार कि नहीं करता है।
7. जलवायु
प्राकृतिक तथा जलवायु संबंधी दशाएं उद्योगों का विकास दीक्षित जलवायु क्षेत्र में हो सकता है। जैसे सूती वस्त्र उद्योग इन्हें समुद्री ठंडी हवाओं एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है जिससे उन के धागे कम या नहीं टूटते हैं। इसलिए सूती वस्त्र उद्योग मुंबई के आसपास केंद्रित हैं। जो आवश्यकता की पूर्ति करता है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थानों की प्रकृति दर्शाएं जैसे भूमि की सतह भूमि की संरचना आदि उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करते हैं।
8. सार्वजनिक सेवाएं
ऐसे स्थानों पर उद्योग धंधे स्थापित हो जाते हैं जहां उद्योगों के लिए सस्ते मूल्य पर सार्वजनिक सेवाएं जैसे सड़क पानी अस्पताल स्कूल अग्निशमन सुविधाएं आदि उपलब्ध होती है।
9. शासकीय नीति
यदि राज्य सरकार किसी विशेष क्षेत्र में उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए करों में छूट कम दर पर यातायात की सुविधा कम ब्याज पर ऋण आदि देने की सुविधाएं प्रदान करते हैं। तो ऐसे क्षेत्र उद्योग धंधों के लिए स्थानीय करण का आकर्षण बन जाते हैं। वर्तमान में अनेक राज्य अपने पिछड़े हुए क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने की अनेक प्रकार की सुविधाएं दे रहे हैं।
10. पूरक उद्योग का होना उद्योग
अनेक स्थानों उन स्थानों पर केंद्रित होते हैं जहां पूरक उद्योगों की अधिकता हो जैसे बड़े उद्योगों के लिए पूरक उधोग के रूप में स्पेयर पार्ट्स के उद्योग पहले से केंद्रित होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ उद्योग उन्हीं स्थानों पर स्थापित किए जाते हैं। जहां पहले से उसी प्रकार का उद्योग प्रतिस्पर्धा के रूप में केंद्रीय होते हैं।
11. पूंजी की सुलभता
उद्योग की स्थापना में भारी पूंजी का निवेश आवश्यक होता है। यही कारण है कि नगरों के समीप उद्योगों का अधिक केंद्रीय कारण होता है। जहां पूंजी और बैंक की अधिकता होती है।
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