भारत में यूरोपियों का आगमन कब हुआ था?

आधुनिक युग में यूरोप में हुए परिवर्तन के कारण भारत एवं यूरोप के मध्य संबंध समाप्त हो गए थे। किन्तु अपनी जिज्ञासु प्रकृति के फलस्रूप यूरोप वासियों ने समुद्र मार्ग से खोज प्रारंभ कर दी। 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की शिथिलता के कारण कई यूरोपीय जातियों का भारत में आगमन हुआ।

नवीन मार्ग की खोज - यूरोप एवं एशियाई देशों के मध्य प्राचीन काल से व्यापारिक संबंध स्थापित था। मसाले दवाईयाँ, रेशम, कीमती पत्थर, सोना-चाँदी आदि के लिए यूरोप भारत तथा एशिया पर निर्भर था। 1453 ई. में उस्मानिया राजवंश का कुस्तुनतुनिया पर अधिकार हो जाने से व्यापारिक मार्ग पर तुर्कों का अधिकार स्थापित हो गया।

भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना

एशिया के व्यापार पर वेनिस - जिनेवा का अधिकार था, जो पुर्तगालियों व स्पेनिश व्यापारियों को स्वयं से अलग रखना चाहते थे। फलस्वरुप यूरोपीय व्यापारी एशिया के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित रखने हेतु नए मार्ग की खोज करने लगे। 

सन् 1492 ई. में स्पेन का नाविक कोलम्बस अमेरिका पहुँचा, जिसे उसने नई दुनिया का नाम दिया। पुर्तगाल के लिस्बन से वास्को डिगामा नामक नाविक निकला जिसने 11 महीने की लम्बी समुद्र यात्रा कर मई 1498 ई. में केप ऑफ गुड होप से अफ्रीका होते हुए भारत के कालीकट के बन्दरगाह पर कदम रखे।

इस तरह कोलम्बस तथा वास्कोडिगामा ने 15वीं शताब्दी में नए समुद्र मार्गों की खोजकर एक नए युग का सूत्रपात किया। इसी समय सेपुनः भारत के संबंध यूरोप से स्थापित हो गए।

भारत में यूरोपीय जातियों का आगमन

पुर्तगाली - भारत में सर्वप्रथम आने वाले यूरोपीय लोग पुर्तगाली थे। सन् 1498 ई. में पुर्तगाली नाविक वास्को-डिगामा कालीकट पहुँचा और वहाँ के हिन्दु राजा जमोरिन से व्यापार करने की आज्ञा माँगी। इस समय भारत में अरब व्यापारियों का एकाधिकार था। पुर्तगाली मुसलमानों के विरोधी थे। 

अतः उन्होंने जमोरिन से प्रार्थना की कि वह अन्य व्यापारियों को व्यापार की अनुमति न दे किन्तु जमोरिन के शत्रु ने कोचीन के शासक से समझौता कर लिया। अल्बुकर्क ने 1503 ई. में संधि कर जमोरिन व कोचिन के मध्य भी मित्रता स्थापित की तथा कोचिन में अपनी व्यापारिक कोठी स्थापित कर ली।

अल्बुकर्क के पश्चात् अलमीड़ा 1505 ई. में पुर्तगाली गवर्नर बनकर आया। कई दुर्गों का निर्माण करवाया व भारत व्यापार भी बढ़ाया।

सन् 1509 ई. में अल्बुकर्क पुनः गवर्नर बनकर भारत आया, इसने कोचीन के बाद गोवा, दमन और दीव में भी व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिए। इसके कार्यकाल में पुर्तगाल का व्यापार फ्राँस की खाड़ी से लेकर इंडोनेशिया तक फैल गया था। 

इसने भारत में पुर्तगालियों की संख्या वृद्धि करने के लिए पुर्तगाली कर्मचारियों को भारतीय स्त्रियों के साथ व्यभिचार की स्वतंत्रता दी। जिससे धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता कम होने लगी। 1515 ई. में गोवा में इसकी मृत्यु हो गई।

पुर्तगाल का पतन- पुर्तगालियों ने सर्वप्रथम भारत में कदम रखे और बहुत जल्दी ही इनका पतन भी हो गया। इसके पतन के प्रमुख कारण थे।

1. पुर्तगाली अधिकारियों की अनुशासनहीनता।

2. पुर्तगालियों ने भारत में व्यापार के साथ धर्म पर प्रचार किया। हिन्दू और मुसलमानों को बलपूर्वक इसाई बनाने का प्रयास किया।

3. पुर्तगालियों की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो गई थी। क्यों अधिकारियों ने व्यापार की अपेक्षा अन्य क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया।

4 सन् 1580 में पुर्तगाल स्पेन से पराजित हुआ जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ा और उनकी स्थिति खराब हो गई। 

5. पुर्तगालियों के पतन का एक कारण इसके अधिकारियों की अदूरदर्शिता की नीति भी थी। 

दक्षिण अमेरिका में पुर्तगालियों के द्वारा ब्राजील की खोज की गई और इनका पूर्ण ध्यान इसे बसाने में लग गया था। इसी समय भारत में मराठी शक्ति का उत्थान हुआ जिन्होंने पुर्तगालियों के कई उपनिवेश उनसे छीन लिए।

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