मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब हुई - maurya samrajya

मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण और विशाल साम्राज्य था, जिसकी सीमाएँ वर्तमान भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक फैली हुई थीं।

इस साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध शासक सम्राट अशोक थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर इसके प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सारनाथ में स्थित अशोक द्वारा स्थापित सिंह-स्तंभ आज भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अंकित है, जो इस गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है।

मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब हुई

मौर्य साम्राज्य मगध में स्थित ऐतिहासिक महाशक्ति थी। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में किया था। यह साम्राज्य 185 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में था। जो गंगा के मैदान के आस पास केंद्रित था। मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी, जो आज पटना के नाम से जाना जाता हैं।

मौर्य साम्राज्य के उदय से पहले, मगध पर नंद वंश का शासन था। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सेना के साथ पहले नंद वंश के बाहरी क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की और अंततः उनकी राजधानी पाटलिपुत्र को घेर लिया। चंद्रगुप्त और नंद वंश के बीच कड़ा संघर्ष हुआ, क्योंकि नंद वंश के पास एक शक्तिशाली और संगठित सेना थी। लेकिन अंततः चाणक्य की रणनीतियों और चंद्रगुप्त की सैन्य शक्ति के बल पर मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई।

सम्राट अशोक के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य का नियंत्रण भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख शहरी केंद्रों पर था। उन्होंने अपने शासन को मजबूत करने के साथ-साथ बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार पर भी विशेष ध्यान दिया।

मौर्य साम्राज्य में वित्त, प्रशासन और सुरक्षा की कुशल प्रणाली के कारण व्यापार, कृषि और आर्थिक गतिविधियों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, जिससे संपूर्ण दक्षिण एशिया में समृद्धि और विस्तार हुआ।

मौर्य राजवंश ने पाटलिपुत्र से तक्षशिला तक एक महत्वपूर्ण सड़क का निर्माण किया, जिसने व्यापार और प्रशासनिक संचार को सुदृढ़ किया।

कलिंग युद्ध के बाद, सम्राट अशोक ने लगभग आधी शताब्दी तक शासन किया। युद्ध के परिणाम से प्रभावित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसके प्रचार में अपना जीवन समर्पित कर दिया। अशोक के प्रयासों से भारत, श्रीलंका और मध्य एशिया में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार हुआ, जिससे यह एक वैश्विक धर्म के रूप में स्थापित हुआ।

मौर्य काल के दौरान दक्षिण एशिया की जनसंख्या लगभग 15 से 30 मिलियन के बीच होने का अनुमान है। यह अवधि वास्तुकला, शिलालेखों और ग्रंथों के विकास के लिए प्रसिद्ध रही। अशोक के शिलालेख मौर्य काल के प्राथमिक लिखित अभिलेख हैं, जो उस समय की प्रशासनिक नीतियों, धर्म और सामाजिक व्यवस्था की झलक प्रदान करते हैं। सारनाथ में स्थित अशोक का सिंह स्तंभ आज हमारे देश का राष्ट्रीय प्रतीक है।

हालांकि, अशोक के निधन के बाद लगभग 50 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होता गया। अंततः 185 ईसा पूर्व, अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या कर दी गई, जिससे मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया और शुंग वंश का उदय हुआ।

मौर्य नाम की उत्पत्ति

मौर्य नाम सम्राट अशोक के शिलालेखों में नहीं मिलता है। लेकिन जूनागढ़ के शिलालेख में चंद्रगुप्त और अशोक के नामों के आगे "मौर्य" लगाया गया है। पुराण में मौर्य को एक राजवंशीय पदवी के रूप में उपयोग किया गया हैं। बौद्ध ग्रंथों में कहा गया है कि चंद्रगुप्त शाक्यों के "मोरिया" कबीले से थे।

तमिल संगम साहित्य भी उन्हें 'मोरियार' के रूप में नामित करता है और नंदों के बाद उनका उल्लेख किया गया है। 12वीं शताब्दी के कुंतला शिलालेख में कालानुक्रमिक रूप से मौर्य का उल्लेख उन राजवंशों में से एक के रूप में किया गया है जिन्होंने इस क्षेत्र पर शासन किया था।

बौद्ध परंपरा के अनुसार, मौर्य राजाओं के पूर्वज ऐसे क्षेत्र में बसे थे जहाँ मोर प्रचुर मात्रा में थे। इसलिए, उन्हें "मोरियास" के नाम से जाना जाने लगा, जिसका शाब्दिक अर्थ है। "मोर के स्थान से संबंधित" हैं।

इतिहास

मौर्य साम्राज्य से पहले भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े क्षेत्र पर नंद साम्राज्य का शासन था। महाजनपदों पर विजय प्राप्त करने के कारण नंद साम्राज्य सैन्य और आर्थिक रूप से शक्तिशाली साम्राज्य था। 

चाणक्य नंद साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र, मगध पहुंचे, जहाँ उन्होंने एक मंत्री के रूप में नंद वंश के लिए कार्य किया। जब चाणक्य ने सम्राट धनानंद को सिकंदर के संभावित आक्रमण की सूचना दी, तो बजाय सतर्क होने के, धनानंद ने उनका अपमान किया और दरबार से निष्कासित कर दिया। 

इस अपमान से आहत चाणक्य ने प्रतिशोध की शपथ ली और नंद वंश के विनाश का संकल्प लिया। अपने प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें पाटलिपुत्र छोड़ना पड़ा, जिसके बाद वे तक्षशिला चले गए और वहाँ एक आचार्य के रूप में शिक्षण कार्य करने लगे।

अपनी एक यात्रा के दौरान, चाणक्य ने कुछ युवकों को खेल-खेल में युद्ध का अभ्यास करते देखा। उनमें से एक लड़का असाधारण प्रतिभा का धनी था—वह कोई और नहीं, बल्कि चंद्रगुप्त था। चाणक्य उसकी बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता और साहस से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने तुरंत उसमें एक महान शासक की संभावनाएँ देखीं।

चाणक्य चंद्रगुप्त को तक्षशिला ले गए, जहाँ उन्होंने उसे राजनीति, सैन्य रणनीति और शासन की बारीकियाँ सिखाईं। मौर्य साम्राज्य की स्थापना मगध क्षेत्र में चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य के कुशल नेतृत्व में हुई। एक शक्तिशाली सेना के गठन के लिए, चंद्रगुप्त ने यौधेय जैसे स्थानीय सैन्य समूहों को संगठित किया, जो पहले सिकंदर के साम्राज्य के विरुद्ध लड़ चुके थे। शीघ्र ही, मौर्य सेना उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रमुख शक्ति बन गई, जिसने नंद वंश के पतन की नींव रखी।

पतन

232 ईसा पूर्व अशोक के मृत्यु के बाद कोई योग्य शासक का न होने से मौर्य साम्राज्य का पतन की शुरुआत हो गयी थी। यह भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। मौर्य साम्राज्य ने पुरे भारत वर्ष पर 137 वर्षो तक शासन किया हैं।

मौर्य साम्राज्य के पतन के निम्न कारण थे - 

  1. बृहद्रथ की हत्या बाद मौर्य साम्राज्य पूरी तरह से समाप्त हो गया।
  2. अयोग्य शासक व निर्बल शासक का होना।
  3. लोगों पर अधिक कर का लगाना जिससे अशांति का माहौल था।
  4. आर्थिक एवं सांस्कृति में अधिक असमानता का होना।
  5. प्रांतीय शासकों द्वारा लोगों पर अधिक अत्यचार करना।

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