जल संसाधन क्या है - jal sansadhan kya hai

Post a Comment

जिसका उपयोग हम अपनी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए करते हैं। उसे संसाधन कहा जाता हैं। जल का उपयोग हम कई प्रकार से करते हैं। जल एक प्राकृतिक संसाधन हैं जो मानव के लिए उपयोगी हैं, जल का उपयोग हम पीने और सिंचाई के लिए करते हैं। इसके अलावा भी जल का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता हैं।

पृथ्वी पर 97% पानी खारा पानी है और केवल 3 प्रतिशत ताजा पानी है। इसमें से दो तिहाई से थोड़ा अधिक हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ की टोपियों में जमी हुई है। बचा हुआ ताजा पानी मुख्य रूप से भूजल के रूप में पाया जाता है। अतः जमीन के ऊपर केवल एक छोटा सा अंश मौजूद है।

ताजे पानी के प्राकृतिक स्रोतों में सतही जल , नदी के प्रवाह, भूजल और जमे हुए पानी शामिल हैं। ताजे पानी के कृत्रिम स्रोतों में उपचारित अपशिष्ट जल और अलवणीकृत समुद्री जल शामिल हो सकते हैं। जल संसाधनों के मानव उपयोग में कृषि, औद्योगिक, घरेलू , मनोरंजक और पर्यावरणीय गतिविधियाँ शामिल हैं।

जल संसाधन क्या है

जल संसाधन जल के ऐसे स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जीवन के अस्तित्व के लिए जल की आवश्यकता होती है। जल के कई उपयोगों में कृषि, औद्योगिक, घरेलू उपयोग और पर्यावरणीय गतिविधियाँ शामिल हैं। इन सभी मानवीय उपयोगों के लिए ताजे पानी की आवश्यकता होती है। 

पृथ्वी पर केवल 2.5% पानी ताजा पानी है, और इसमें से दो तिहाई से अधिक हिमनदों में जमा हुआ है। दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से कही अधिक है और निकट भविष्य में पानी की और कमी महसुस किया जायेगा। ऐसा अनुमान है कि विश्व भर में मीठे जल का लगभग 70% उपयोग कृषि में किया जाता है।

दुनिया भर के जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मानव आबादी के विस्तार के कारण पानी की प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई है, कि दुनिया के कई प्रमुख जलभंडार समाप्त हो रहे हैं। जल प्रदूषक जल आपूर्ति के लिए खतरा हैं विशेष रूप से अविकसित देशों में जहाँ प्राकृतिक जल श्रोत में गंदे पानी का निर्वहन किया जाता है।

जल पृथ्वी पर जीवन का स्रोत है। यह जलमंडल का प्रमुख संघटक है जिसकी संरचना महासागर, सागर, नदियों जल-प्रवाह झीलों और भूजल से मिलकर हुई है । पृथ्वी की सतह  का लगभग 70.8% हिस्सा मुख्य रूप से  महासागर में छिपा हुआ है। अनुमान लगाया जाता है कि जलमंडल समस्त जल जल का लगभग 1,360 मिलियन क्यूबिक किमी धारण करता है।

जल संसाधन के उपयोग

जीवन की अनिवार्य आवश्यकता जल है। किसी भी जीव की शारीरिक रचना में सर्वाधिक मात्रा जल की ही होती है अर्थात् शरीर के लिए जल अति आवश्यक है। हम इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए जल का उपयोग पीने हेतु करते हैं। अत: जल जीवन का अभिन्न अंग है।

भारत में भूमिगत जल का लगभग 90 प्रतिशत भाग उत्तर भारत के मैदान में विद्यमान है। देश में भूमिगत जल की उपलब्धता करीब 433-9 लाख हेक्टेयर मीटर प्रति वर्ष करीब 433-86 अरब घन मीटर है। इसमें से मात्र 71.3 लाख हेक्टेयर मीटर प्रतिवर्ष पानी का उपयोग घरेलू एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।

स्वतन्त्रता के पश्चात् मानसूनी वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता के कारण उपलब्ध जल को संचित कर एवं निकालकर उसका उपयोग सिंचाई के रूप में करने से भारतीय कृषि को कुछ सीमा तक निश्चितता मिली है तथा प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।

देश की जनसंख्या के दबाव एवं आवश्यकताओं को देखते हुए सन् 2010 तक क्रमबद्ध योजनानुसार सम्पूर्ण जल संसाधन के उपयोग करने का लक्ष्य रखा गया है।

जल संसाधन का महत्व बताइए

हमारे पृथ्वी पर जल अनिवार्य प्राकृतिक संसाधन है यह न केवल मूव जीवन के लिए अनिवार्य है बल्कि समस्त तरह के जीवन -पशुओ और वनस्पतियों के लिए भी पृथ्वी की 97% साथ जल से आच्छादित है। ज्यादातर पशुओ और पौधों के शरीर मे उनके शरीर का 60-70% भाग जल है। 

मनुष्य के जीवन मे जल का महत्वपूर्ण स्थान है मानव के प्राक्कल से ही जहां-जहां जल उपलब्ध थे मानव वासस्थल वहां-वहां थे और ये वहीं-वही थे, जहां आदि मानव ने खास-खास खाद्यान्न ऊगा सके। जल के बिनक न तो व्यक्ति और न ही मानव - समुदाय जीवित रह सकता है। 

  1. हमारे शरीर की हर एक कोशिका को ठीक से काम करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है।
  2. सभी जीवित प्राणियों को जीवित रहने के लिए पानी की आवश्यकता होती है।
  3. जल हमारे जीवन के लिए आवश्यक है, और जल के बिना पृथ्वी पर कोई जीवन नहीं है।
  4. हमें नदियों, भूजल (कुओं), बारिश आदि जैसे कई स्रोतों से पानी मिलता है।
  5. हम पानी का उपयोग पीने, खाना पकाने, सफाई और कई अन्य उद्देश्यों के लिए करते हैं।

जल उपयोग 

अपने गुणों व लक्षणोंके कारण जल का समस्त सजीवों के लिए बहुउद्देशीय उपयोग है। जल जीवन के लिए आवश्यक है जीवन की अधिसंख्य प्रक्रिया लजीवों में अवस्थित जल में सम्पन्न होती हैं। पोषकों के वाहन और शरीर मे उनके वतरण तापमान के नियंत्रण और अपशिष्ट पदार्थों के उत्सर्जन या निष्कर्षण के कार्य जल के द्वारा ही सम्पन्न होते है। 

जल की पर्याप्त उपलब्धता के कारण यह अत्यंत कम खर्चीला संसाधन है। अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में जल का इस्तेमाल आश्चर्यजनक यानी विस्मयकारी परिणाम में हुआ करता है। हाल के वर्षों में पृथ्वी पर वार्षिक रूप ले कुल जल की खपत की मात्रा लगभग 1,000 गुना ज्यादा है विश्व के कुल खनिजों के उत्पादन के जिनमे कोयला, पेट्रोलियम , धात्विक अयस्क और ग़ैरधत्विक खनिज शामिल हैं। 

विश्व स्तर पर जल कुल बहुतायत कोई समस्या नहीं है। समस्या अगर है तो वह है सही स्थान पर सही समय मे तथा सही रूप में जल की उपलब्धता| विश्व स्तर रप जल का वितरण आसमान है।

जल संसाधन की समस्याएं

भारत में जल का प्रमुख स्रोत मानसूनी वर्षा है। मानसूनी वर्षा की सबसे बड़ी विशेषता अनियमितता, अनिश्चितता एवं असमान वितरण है। इसी कारण दैनिक समाचार पत्रों में हमें एक साथ सूखे व बाढ़ के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। वर्षा की इन्हीं विशेषताओं ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है।

1. वर्षा की कमी - भारत के अनेक क्षेत्रों में विशेषकर राजस्थान तथा पश्चिमी घाट पर्वत के पूर्व में अत्यन्त कम वर्षा होती है। इसलिए धरातलीय तथा भूमिगत जल की यहाँ अत्यन्त कमी है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों का भूमिगत जल खारा एवं जल-स्तर नीचा होता है। जिसके कारण पीने एवं सिंचाई के लिए जल का उपयोग बहुत मुश्किल हो जाता हैं।

2. शुद्ध पेय जल का अभाव - बढ़ती जनसंख्या एवं शहरीकरण के कारण आज हमारे लिए शुद्ध व मीठे पेयजल का अभाव है। आज भी बहुत से ग्रामवासी शुद्ध पेयजल आपूर्ति के बिना जीवन निर्वाह कर रहे हैं और बहुतों को एक-एक दो-दो किलोमीटर दूर या इससे भी अधिक दूरी तय करके जल लाना पड़ता है।

3. जल का दुरुपयोग - जल के दुरुपयोग अर्थात् अत्यधिक सिंचाई के कारण धरातल के भीतर की क्षारीयता ऊपर आ जाती है। फलस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है। वर्तमान में पेयजल का अत्यधिक दुरुपयोग किया जा रहा है। नगर पालिका क्षेत्रों में नलों को उपयोग के पश्चात् खुला छोड़ दिया जाता है। जिसके कारण शुद्ध पेयजल व्यर्थ बहता रहता है।

4. बाढ़ग्रस्त क्षेत्र - वनों की अन्धाधुन्ध कटाई, नदी धारा में परिवर्तन, नदी मार्ग में मानव द्वारा व्यवधान एवं अत्यधिक वर्षा बाढ़ का कारण बनते हैं। भारत में प्रतिवर्ष कई स्थानों में बाढ़ आती है। केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार भारत में लगभग 50 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त है।

5. जल प्रदूषण - नदी तट पर शहरों व उद्योगों की स्थापना से इनका गन्दा जल नदी में प्रवाहित कर देने से जल प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे जलीय जीव और वह रहने वाले लोगो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं। भारत में यह एक आम समस्या बन गया हैं। लोगो में जागरूकता की कमी इसका मुख्या कारण बना हुआ हैं।

6. सूखाग्रस्त क्षेत्र - भारत के कई राज्यों में वर्षा की अनियमितता के कारण सूखे का प्रकोप रहता है। केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार देश की लगभग 30 प्रतिशत कृषि भूमि पर सूखे का भय प्रतिवर्ष बना रहता है। वहीं सदैव अकालग्रस्त रहने वाला क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 1/5 भाग है।

जल संसाधन संरक्षण के उपाय

जल एक बहुमूल्य संसाधन है। भारत में यह कहीं बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। तो कहीं इसकी मात्रा दुर्लभ होती है। कहीं यह विकास का कारक बनता है, तो कहीं पर विनाश का कारण बनता हैं। जल की इस असमानता को दूर करने हेतु जल संसाधन के संरक्षण की आवश्यकता होती है।

जनसंख्या वृद्धि एवं आने वाली आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए जल की एक-एक बूँद को संचित कर रखना होगा। जल संरक्षण का प्रारम्भ वर्षा की बूँद के साथ ही करना चाहिए। आइये जल संरक्षण के मत्वपूर्ण उपाय को देखते हैं -

1. बाँध एवं जलाशयों का निर्माण - नदी के बाढ़ के प्रकोप से बचने के लिए एवं खेतों पर सिंचाई करने हेतु नदी मार्गों में बाँधों एवं जलाशयों का निर्माण कियाजाना चाहिए। इससे हमें पीने को शुद्ध पेयजल एवं औद्योगिक आवश्यकताओं एवं विद्युत शक्ति हेतु जल की प्राप्ति होगी।

2. आधुनिक सिंचाई पद्धति का प्रयोग - सामान्य सिंचाई पद्धतियों से धरातल के भीतर की क्षारीयता सतह पर आ जाती है। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। इस समस्या के समाधान हेतु स्प्रिंकलर एवं ड्रिप सिंचाई पद्धति का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसे जल की बचत होगी और उपज में भी वृद्धि होने की संभावना होती हैं।

3. जल शुद्धिकरण संयन्त्रों की स्थापना - जैसा कि आजकल नगरों एवं स्थापित उद्योगों द्वारा जल का अत्यधिक प्रदूषण किया जा रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए प्रत्येक नगर एवं उद्योगों में जल शुद्धिकरण संयन्त्रों की स्थापना की जाय ताकि प्रदूषित जल को शुद्ध कर पुनः उपयोग में लाया जा सके।

4. वृक्षारोपण - जहाँ भूमिगत जल स्तर काफी नीचे है, वहाँ वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। क्योकि पेड़ वर्षा को आकर्षित करता हैं। शोध में यह पता किया गया हैं की जहा अधिक पेड़ या जंगल होता हैं वह वार्षिक वर्षा भी अधिक होती हैं। 

जल संसाधन के प्रति जागरूकता

जल संसाधन की समस्या का समाधान तब तक नहीं हो सकता जब तक लोगों में इसके प्रति जागरुकता न हो। अत: जल संसाधन संरक्षण कार्यक्रम को जन आन्दोलन का रूप दिया जाय। आज इसकी अति आवश्यकता है।  

स्वच्छ मीठे पेय जल को गाँव-गाँव और शहर-शहर पहुँचाना हमारा प्राथमिक कार्य होना चाहिए। क्योकि जल है तो कल हैं। इसके लिए भूमिगत जल का सदुपयोग कर इस समस्या से निपटा जा सकता है। इस दिशा में दो योजनाएँ त्वरित ग्राम जल पूर्ति कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय मिशन ऑफ पेय जल बनायी गयी हैं। जो ग्रामों एवं शहरों की पेयजल समस्या के निदान के कई कार्य कर रही हैं।

Rajesh patel
नमस्कार मेरा नाम राजेश है। मैं इस वेबसाईट के मध्यम से जो मेरे पास थोड़ी जानकारी है। उसे लोगो तक शेयर करता हूं।
Related Posts

Post a Comment