छात्रों को दिए गए अपठित गद्यांश का गहन अध्ययन और समझ होना आवश्यक है जिसमें एक या एक से अधिक पैराग्राफ शामिल हो सकते हैं। इस गतिविधि का मुख्य उद्देश्य छात्रों की पढ़ने की क्षमता और उनके बौद्धिक कौशल का परीक्षण करना है।
अपठित गद्यांश किसे कहते हैं
अपठित गद्यांश गद्य का वह अंश हैं जो हमारे पाठ्यक्रम मे पहले से निर्धारित नहीं होता हैं। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट होती हैं। और इसमें विषय-वस्तु की सम्पूर्ण जानकारी होती है। साथ ही इनमें व्यावहारिक भाषा का शुद्ध प्रयोग होता है। अपठित गद्यांश दो प्रकार के होते हैं।तथ्यात्मक मार्ग और विवेचनात्मक मार्ग।
1. तथ्यात्मक मार्ग
एक तथ्यात्मक मार्ग में 300 से 350 शब्द होते हैं। यह एक विस्तृत विवरण है जिसमें भौतिक विशेषताओं के विस्तृत विवरण के साथ कुछ जानकारी जोड़ी जाती है। एक अच्छा तथ्यात्मक मार्ग पाठक का वर्णन करता है कि तथ्यों, डेटा आदि के बारे में प्रासंगिक जानकारी की तुलना या इसके विपरीत है। एक छात्र विषय के बारे में व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त करना सीखता है और वह अपनी मानसिक क्षमता में सुधार करने के लिए चर्चा करता है। इसमें शिक्षाप्रद, वर्णनात्मक और रिपोर्टिंग मार्ग हैं।
2. विवेचनात्मक मार्ग
एक विवेचनात्मक मार्ग में एक पाठ होता है जो या तो तर्कपूर्ण या व्याख्यात्मक या प्रेरक प्रकृति का होता है। उनमें राय या प्रतिक्रिया भी शामिल हो सकती है। छात्र अंतर्ज्ञान के बजाय अपनी तर्क शक्ति के माध्यम से किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में सक्षम होते हैं। वे संतुलित और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण तक पहुँचने के लिए विषय पर चर्चा करते हैं।
अपठित गद्यांश के उदाहरण 1
1. “संस्कार ही शिक्षा है शिक्षा इंसान को इंसान बनाती है। आज के भौतिकवादी युग में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सुख पाना रह गया है। अंग्रेजों ने इस देश में अपना शासन व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए ऐसा शिक्षा को उपयुक्त समझा, किन्तु यह विचारधारा हमारी मान्यता के विपरीत है।
आज की शिक्षा प्रणाली एकांगी है, उसमें व्यावहारिकता का अभाव है, श्रम के प्रति निष्ठा नहीं हैं। प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन की प्रधानता थी। यह शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं, जीवन को सही दिशा प्रदान करने लिए थी अत: आज के परिवेश में यह आवश्यक हो गया है कि इन दोषों को दूर किया जाए अन्यथा यह दोष । के समान हमारे सामाजिक जीवन को निगल जाएगा।"
1 उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर - शीर्षक - शिक्षा का उद्देश्य
2. भौतिक युग में शिक्षा का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर - भौतिक युग में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सुख पाना है।
3. वर्तमान शिक्षा प्रणाली कैसी है ?
उत्तर - वर्तमान शिक्षा प्रणाली एकांकी है, उसमें व्यावहारिकता का अभाव है, श्रम के प्रति निष्ठा नहीं है।
4. प्राचीन शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन की प्रधानता थी । यह शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं जीवन को सही दिशा प्रदान करने के लिए थी।
5. शिक्षा का महत्व लिखिए।
उत्तर - शिक्षा इंसान को इंसान बनाती है । यह जीवन को सही दिशा प्रदान करती है।
अपठित गद्यांश के उदाहरण 2
2. एक राजा के चार पुत्र थे। राजा ने उनको बुलाकर कहा कि 'जो सर्वश्रेष्ठ धर्मात्मा को ढूँढ लाएगा, वही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा। पिता की आज्ञा प्राप्त कर चारों राजकुमार घोड़ों पर सवार हुए और चारों दिशाओं में चले गए। बड़ा राजकुमार अपने साथ सेठ को लाया, और उसने बताया – ये सेठ जी सदा सहस्त्रों रुपये दान करते हैं।’इन्होंने बहुत से मंदिरों का निर्माण करवाया है, जलाशय खुदवाए हैं और उनके स्थानों पर इनकी ओर से प्याऊ चलते हैं। ये नित्य भागवत् कथा श्रवण करते हैं।
दूसरे राजकुमार के साथ कृशकाय ब्राह्मण था । उसने कहा - इन विप्रदेव ने समस्त तीर्थ स्थानों का भ्रमण पैदल ही किया है । असत्य व क्रोध इन्हें छू तक नहीं पाए। नियम से पूजा करके ही जल पीते हैं। तीनों समय स्नान करके पूजा-पाठ करते हैं।
तीसरा राजकुमार अपने साथ किसी साधु को लेकर आया। उसकी बड़ी भारी जटाएँ थीं और शरीर कंकाल-मात्र नजर आता था। उस राजकुमार ने बताया - महाराज आप बहुत बड़े तपस्वी हैं। सात दिनों में केवल एक बार दूध पीते हैं। गरमी में पंचाग्नि तापते हैं, सर्दी में जल में खड़े रहते हैं। सदा भगवान का ध्यान करते हैं।
राजा ने उन तीनों को ही धर्मात्मा स्वीकार किया और उन्हें ससम्मान राज्य सभा में स्थान भी दिया । अन्त में छोटा राजकुमार आया। उसके साथ मैले कपड़े पहने एक देहाती था। वह बेचारा दूर से ही हाथ जोड़कर डरता हुआ राजा के सामने आया। तीनों बड़े राजकुमार छोटे भाई की मूर्खता पर हँसने लगे। छोटे राजकुमार ने कहा एक कुत्ते के शरीर में घाव हो गए थे। पता नहीं किसका कुत्ता था इसने देखा और लगा घाव धोने। मैं इसे ले आया हूँ। पता नहीं, यह धर्मात्मा है या नहीं ? आप पूछ लें। राजा ने पूछा - तुम धर्म के लिए क्या करते हो ?
डरते हुए देहाती ने कहा - मैं अनपढ़ हूँ धर्म क्या जानूँ। कोई बीमार होता है तो सेवा कर देता हूँ। कोई माँगता है तो मुट्ठी भर अन्न दे देता हूँ।'
राजा ने कहा - यह देहाती सबसे बड़ा धर्मात्मा है, क्योंकि कृत्य करना तो धर्म है ही, किन्तु सर्वोत्तम धर्म है बिना किसी चाह के असहाय प्राणियों की सहायता करना । बिना किसी स्वार्थ के भूखे को अन्न देना, रोगी की सेवा-सुश्रूषा करना, कष्ट में पड़े हुए को कष्ट से मुक्ति दिलाना आदि।
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर - उक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है - सर्वश्रेष्ठ धर्मात्मा ।
2. राजा के कितने पुत्र थे ? उन्हें कहाँ और क्यों जाना पड़ा ? परीक्षा में कौन सफल हुआ ?
उत्तर - राजा के चार पुत्र थे। एक दिन उनकी परीक्षा करने के लिए उनसे कहा कि जो सर्वश्रेष्ठ धर्मात्मा को ढूँढ़ लाएगा, वही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा। अत: वे चारों इस कार्य को पूरा करने के लिए घोड़ों पर बैठकर चारों दिशाओं की ओर चले गए।
3. बड़े राजकुमार की दृष्टि में सबसे बड़ा धर्मात्मा कौन था और उसका क्या कारण था ?
उत्तर - बड़े राजकुमार की दृष्टि में सबसे बड़ा धर्मात्मा एक सेठ था जो सहस्त्रों रुपये दान करता था, नित्य भगवत-कथा करता था, बहुत से मन्दिर उसने बनवाए थे, जलाशय खुदवाये थे और धर्मार्थ प्याऊ चलवाए।
4. दूसरे राजकुमार ने किसको सबसे बड़ा धर्मात्मा माना क्यों ?
उत्तर - दूसरे राजकुमार ने एक कृशकाय ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ धर्मात्मा माना क्योंकि उसने समस्त तीर्थों का पैदल ही भ्रमण किया था। असत्य व क्रोध उन्हें छू तक नहीं गया था। तीनों समय स्नान करके पूजा पाठ करते थे और पूजा के बाद ही जल ग्रहण करते थे।
5. साधु किसके साथ आया था ? उसका परिचय किस प्रकार दिया गया ? उसकी दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर - साधु तीसरे राजकुमार के साथ आया था। उसका परिचय इस प्रकार दिया गया कि ये साधु बहुत बड़े तपस्वी हैं। सात दिन में केवल एक बार दूध पीते हैं। गरमी में पंचाग्नि तापते हैं। सर्दी में जल में खड़े रहते हैं और सदा भगवान का ध्यान करते हैं।
अपठित गद्यांश के उदाहरण 3
3. एक बार रोम का राजा एक भीषण रोग से पीड़ित हो गया । उस समय देश-विदेश के प्रख्यात एवं निष्णात चिकित्सक राजा के उपचार के लिए बुलाए गए। किन्तु अच्छी से अच्छी औषधियों के प्रयोग से भी वे राजा के रोग का निदान न कर सके। राजा का रोग पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ता चला गया। असाध्य रोग के कारण राजा के हृदय में विकलता और राज्य में उदासी छा गई।
एक दिन एक वृद्ध पुरुष राजा के प्रासाद में आया और उसने रोगग्रस्त राजा से कहा - राजन्! एक विशेष औषधि के सेवन से आपका रोग ठीक हो सकता है। यह विशेष औषधि किसी अन्य व्यक्ति के पिताशय से तैयार की जाती है । यह औषधि आपके रोग को मूल से उखाड़ने की क्षमता ही नहीं रखती, अपितु आपको चिरंजीवी भी बना सकती है।
वृद्ध के वचनों को सुनकर राजा के निराश मन में आशा का संचार हो गया। उसने वृद्ध के प्रति मन ही मन कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हुए राज्य के चिकित्सकों को एक ऐसे व्यक्ति को तलाश करने का आदेश दिया, जिसके पित्त की थैली से वह औषधि बनाई जा सके।
अन्ततः चिकित्सकों को एक ऐसा परिवार मिल गया, जिसे हाथ की तंगी के कारण भरपेट भोजन भी उपलब्ध नहीं होता था। इस परिवार में केवल तीन सदस्य थे - एक लड़का और उसके माता-पिता । चिकित्सकों ने लड़के के माता-पिता को प्रभूत धन का प्रलोभन देकर उनके एकमात्र पुत्र को खरीदने का प्रस्ताव रखा। धन की लालसा ने माता-पिता की आँखों पर पर्दा डाला दिया।
उनकी दृष्टि में धनमोह के सम्मुख पुत्र - मोह फीका पड़ गया और उन्होंने अपने घर के दीपक को चिकित्सकों के हाथों बेच दिया। चिकित्सक लड़के को राजा के सामने लेकर आए । राजा ने लड़के के पित्त की थैली को लेने के विषय में राज्य पुरोहित से विचार-विमर्श किया । पुरोहित ने कहा- 'राजन् ! यद्यपि देश सर्वोपरि होता है, किन्तु उसका शासक उससे भी बड़ा होता है, क्योंकि वह देश की रक्षा करता है तथा अहर्निश उसकी समृद्धि के लिए प्रयास करता है तथा शासक के लिए किसी भी व्यक्ति के जीवन की बलि देना कोई अपराध नहीं है।
पुरोहित के वचनों को सुनकर लड़के को राजा के सम्मुख खड़ा कर दिया गया। जल्लाद भी तलवार लेकर वहाँ आ पहुँचा। चिकित्सक औषधि तैयार करने वाले उपकरणों को लेकर वहाँ खड़े हो गए। अब राजा के आदेश की प्रतीक्षा थी। उसी क्षण लड़का आकाश की ओर देखकर, जोर-जोर से हँसने लगा।
उसे हँसता देखकर, सम्राट ने लड़के से हँसने का कारण पूछा। लड़के ने कहा- 'जिस देश में माँ-बाप धन के लिए सन्तान को बेचे, पुरोहित निरपराध मनुष्य की हत्या को उचित ठहराए, देश और प्रजा की रक्षा करने वाला शासक निर्दोष प्राणी की जान लेकर अपनी जान बचाए, वहाँ तो ऊपर वाले के न्याय पर ही भरोसा करना पड़ेगा।'
लड़के की बातों को सुनकर सम्राट की आँखें खुल गई। उसे अपनी भूल पर पश्चाताप होने लगा। उसका मन ग्लानि से भर गया। उसके अन्त: स्थल में मानवता के अंकुर फूट पड़े। उसने जल्लाद को वापस कर दिया।
1. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर – उक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है- मानवता का अंकुर ।
2. राजा को रोग से छुटकारा दिलाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए गए ? उन प्रयासों का क्या परिणाम निकला ? उसके बाद राजा और प्रजा की क्या दशा हुई ?
उत्तर – राजा को रोग से छुटकारा दिलाने के लिए उस समय प्रख्यात एवं निष्णात देश-विदेश के चिकित्सकों को उपचार के लिए बुलाया गया एवं अच्छी औषधियों के प्रयोग से चिकित्सा करवाने का प्रयास किया गया। लेकिन उन प्रयासों के बाद केवल निराशा ही मिली, क्योंकि राजा का स्वास्थ्य पहले से भी अधिक बिगड़ गया और रोग भी बढ़ता ही गया। इससे राजा के हृदय की व्याकुलता बढ़ने लगी। अपने राजा की ऐसी दशा देखकर प्रजा में उदासी छा गई ।
3. राजा के प्रासाद में कौन आया ? उसने किस औषधि का सुझाव दिया, उसको बनाने का क्या तरीका बताया ? उस औषधि के गुणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – राजा के प्रासाद में एक वृद्ध व्यक्ति आया, उसने एक ऐसी औषधि बताई जिसके प्रयोग से राजा का रोग पूरी तरह से नष्ट तो हो जाएगा, लेकिन वह औषधि किसी अन्य व्यक्ति के पित्ताशय से तैयार की जाएगी, उसने औषधि का यह गुण बताया कि वह औषधि राजा के रोग को पूरी तरह नष्ट कर देगी और राजा को चिरंजीवी भी बना देगी ।
4. उस व्यक्ति के वचनों को सुनकर राजा को कैसा अनुभव हुआ ? उसके प्रति राजा ने किसको क्या आदेश दिया ?
उत्तर – उस व्यक्ति के वचनों को सुनकर राजा को अपने निराशा भरे जीवन में आशा की एक ज्योति जगने का-सा अनुभव हुआ । उस वृद्ध व्यक्ति के प्रति राजा ने मन-ही-मन कृतज्ञता प्रकट की। उसके बाद राजा ने अपने राज्य के चिकित्सकों को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश करने के लिए कहा जिसकी पित्त की थैली से औषधि तैयार की जा सके ।
5. राजा के व्यक्तियों को तलाश करने पर कैसा परिवार मिला ? उस परिवार के कौन-कौन सदस्य थे ? राजा के व्यक्तियों ने क्या प्रलोभन दिया ? प्रलोभन का उस परिवार पर क्या प्रभाव हुआ और फिर उस परिवार ने क्या किया ?
उत्तर – राजा के व्यक्तियों को तलाश करने पर एक ऐसा परिवार मिला, जहाँ पैसे की बहुत तंगी थी और उसी तंगी के कारण घर के सदस्यों को खाने तक को नहीं मिल पाता था। उस परिवार में केवल तीन सदस्य थे एक बालक और उसके माता-पिता। राजा के व्यक्तियों ने उस परिवार को बहुत धन देकर उनके दुःख के दिन दूर करने का प्रलोभन दिया। उन लोगों द्वारा दिए गए प्रलोभन का उस परिवार पर पूरी तरह से प्रभाव पड़ा और परिणामस्वरूप माता-पिता अपने पुत्र के प्रति प्रेम को भूल गए। उन्होंने धन के लालच में एवं अपने सुख के लिए अपने इकलौते पुत्र का त्याग करने का निश्चय कर लिया।
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