श्रीचंद की चारित्रिक विशेषताएँ - स्ट्राइक एकांकी

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हिन्दी के सुप्रसिद्ध एकांकीकार भुवनेश्वर द्वारा लिखा गया 'स्ट्राइक' एक श्रेष्ठ एकांकी है। इसमें लेखक की कलम का जादू स्पष्ट दिखाई देता है। श्रीचन्द्र इसी एकांकी का प्रमुख पात्र है। वह एक धनी व्यक्ति है। पहले वह वकालत करता था। उस समय उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। 

लेकिन जब से उसने वकालत का धन्धा छोड़कर व्यापार में हाथ डाला है तब से वह निरन्तर धनी होता गया है। अब उसके पास बहुत पैसा है। समाज में पैसे के कारण उसकी इज्जत भी है। इसकी पहले पत्नी की मृत्यु हो चुकी है। वह दूसरा ब्याह भी कर चुका है। उसकी दूसरी पत्नी आधुनिक फैशनेबल जारी है। उसे घूमने-फिरने का शौक है। 

वह प्रायः अपनी सहेलियों के साथ बाहर घूमने चली जाती है। श्रीचन्द का चरित्र बड़ा विचित्र है। वह जीवन को अलग दृष्टिकोण से देखता है। उसके लिये समाज, मित्र और परिवार सभी औपचारिकता का निर्वाह करने के साधन मात्र हैं। 

उसे उनमें से किसी से भी आत्मीयता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसकी दृष्टि में पति-पत्नी भी मशीन के दो अलग-अलग पुरजे हैं। उसके मित्र उसके प्रभाव और भाग्य के कायल हैं। लेकिन उसकी पत्नी उसकी चिन्ता नहीं सी ही करती है। 

एक बार तो यहाँ तक मौका आ जाता है कि वह अपनी सखियों के साथ घूमने चली जाती है और रात को भी वापस नहीं आती। घर की चाबी भी उसी के पास रह जाती है। ऐसी स्थिति में श्रीचन्द को होटल का सहारा लेना पड़ता है।

इन सारी परिस्थितियों के अवलोकन से श्रीचन्द के चरित्र की कुछ विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं। इनमें से प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) व्यावहारिकता - श्रीचन्द एक व्यवहारकुशल व्यक्ति है। उसके हृदय में भावुकता के लिए कोई स्थान नहीं है। इसी कारण वह अपने व्यवसाय में निरन्तर प्रगति करता है और मित्रों में लोकप्रिय भी बना रहता है। उसकी दृष्टि में जिन्दगी का मतलब बहुत सीधा, साफ और सुलझा हुआ है

देखो आदमी के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपनी बची-खुची शक्ति केस तरह काम में ले आये ? आदिम जंगलीपन से लेकर आज की सभ्यता तक जो कुछ भी आदमी ने अपने को दुःखी या सुखी बनाने के लिए किया है, 

वह इस शक्ति को काम में लाने के लिए। फिर दुख या सुख तो इतनी ठोस चीजें हैं कि एक दिन तुम देखोगी कि यह शीशियों में बिका करेंगी, शोशियों में ! मुझे इन टिसुए बहाने वालों से नफरत है, सख्त नफरत ! यह सिर्फ हरैले ही नहीं है, यह तो अपनी हार के गीत गाते हैं, नारे लगाते हैं।"

(2) भाग्यशाली - वह व्यवहारकुशल ही नहीं, वरन् किस्मत का धनी भी है; अन्यथा अनेक लोग यवहार करते हैं, लेकिन उसकी तरह लगातार तरक्की नहीं कर पाते । वह तो जहाँ हाय डालता है, वहीं उसकी जीत होती है। उसके साथी भी कहते हैं

इस श्रीचन्द को देखो, जब यह वकालत छोड़कर व्यापार में आ रहा था, मुझे इसकी सफलता की तनिक भी आशा नहीं थी, पर देखो-आज वह एक कम्पनी का सर्वेसर्वा बन गया है।"जीत तो सब तुम्हारे हिस्से में पड़ी है।''

(3) अहंकार - श्रीचन्द एक धनाढ्य व्यक्ति है। निरन्तर बढ़ते हुए व्यवसाय, धन और प्रतिष्ठा ने उसके स्वभाव में हलका-सा अहंकार-भाव भी उत्पन्न कर दिया है। यद्यपि उसका यह अहंकार घमण्ड रूप में प्रतीत नहीं होता, लेकिन प्रत्येक बात में उपेक्षा और लापरवाही यह दर्शाती है कि उसे किसी शत की परवाह नहीं है। इसी कारण वह यदा-कदा उपदेश-सा देने लगता है।

"अरे भाई, क्या जीत क्या हार ? यहाँ तो इसका कभीसपने में भी ख्याल नहीं करते। हम तो इमानदारी से जीना चाहते हैं। मैं फिर कहता हूँ जीवन कला है और सबसे बड़ी कला।" 

(4) नीरसता - उसका जीवन सफलता से भरा हुआ नहीं है। धन की अधिकता और कार्य की यस्तता के कारण उसे अपने आत्मीयजनों से प्रेमपूर्ण बातें करने का समय भी नहीं है। वह स्वयं कहता है कि उसकी पहली पत्नी को हमेशा उससे शिकायत रही थी। 

दूसरी पत्नी से भी उसके सम्बन्धों को स्नेहपूर्ण नहीं कहा जा सकता। उसके वार्तालाप से भी कहीं भी सरसता नहीं टपकती-

पुरुष- कहाँ जा रही हो ? कहाँ ?

स्त्री-(बाहर की तरफ रूमाल हिलाते हुए) 

पुरुष-(बाहर की तरफ देखता है) वहाँ ? बाजार, शॉपिंग के लिए ? 

स्त्री--नहीं, मैं लखनऊ जा रही हूँ; आखिरी जी. आई पी. से लौट आऊँगी

पुरुष-(अपना आश्चर्य भरसक छिपाते हुए) लखनऊ, जी. आई. पी. आखिर क्यों ? 

स्त्री-(चाय खत्म कर चुकी है) कुछ नहीं, ऐसे ही घूमने । सरदार साहब की बीबी हैं, मिसेज निहाल हैं, मैं हूँ, मिस मित्तर हैं-उन्हीं को कुछ काम है, न जाने रेडियो लेने जा रही है क्या ? 

(5) औपचारिकता - श्रीचन्द का जीवन सरसता, सुहृदयता के अभाव में केवल औपचारिक बन गया है। उसकी दृष्टि से जिन्दगी का मूल्य बड़ा अजीब है। वह हर वस्तु को अपनी विशेष प्रवृत्ति के हिसाब से देखता है। इसी कारण उसे जीवन का वास्तविक सुख नहीं मिल पाता। पति-पत्नी भी उसकी दृष्टि से आत्मीय सम्बन्धी नहीं है, वरन्

आप कहते हैं, मैं औरत को समझ नहीं पाता। जनाब, यह सब कोरी बातें हैं, बातें। समझने की क्या जरूरत है ? मशीन की एक पुली दूसरी पुली को नापने, जोखने, समझने नहीं आती। स्त्री-पुरुष तो जीवन की मशीन के दो पुरजे हैं।

वह बीमार पड़ती है, मैं डॉक्टरों से घर नहीं भर देता; मैं बीमार पड़ता हूँ, वह रोती-धोती नहीं।"

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि भुवनेश्वर द्वारा लिखित 'स्ट्राइक' एकांकी का श्रीचन्द एक विचित्र व्यक्ति है। उसके चित्र में व्यावहारिकता, सौभाग्य, अहंकार, नीरसता, औपचारिकता आदि विशेषताओं का अजीब सम्मिश्रण है। 

वह आधुनिक उच्चवर्गीय व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। उसका चरित्र क्रमशः विकसित होने के कारण पूर्णतः स्वाभाविक और सफल बन पड़ा है। 

Rajesh patel
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