युवकों का समाज में स्थान शीर्षक निबंध का सारांश एवं उद्देश्य लिखिये

Post a Comment

आधूनक विद्वानों एवं बुद्धिजीवियों में आचार्य नरेन्द्र देव का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में आचार्य और कुलपति जैसे सम्मानजनक पदों को वे सुशोभित करते रहे हैं।

अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने समाज में युवकों का स्थान निर्धारित करने का प्रयास इस निबन्ध में किया है।

प्रस्तुत पाठ में आचार्य जी ने इस प्रश्न पर विचार किया है कि जिस समाज में वृद्ध का नेतृत्व होता है, क्या वह समाज प्रगति कर सकता है?

इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए उन्होंने लिखा है कि अपने गहन अनुभवों के आधार पर परम्परा को सुरक्षित रखने के लिए वृद्धजनों का समाज में महत्व कम नहीं है, परन्तु उन्हें युवकों के अधिकारों के प्रति भी सचेत रहना चाहिए।

समाज में स्थिरता की जगह गत्यात्मकता और परिवर्तन लाने के लिए नवयुवकों पर भी जिम्मेदारी देनी चाहिए। इनकी सत्ता भी स्वीकार करनी चाहिए। वृद्ध और नवयुवक के परस्पर सहयोग से समाज प्रगति कर सकता है।

नरेन्द्र देव की दृष्टि में नवयुवक भविष्य के निर्माण हेतु आलोक-स्तम्भ हैं। नूतन समाज की स्थापना हेतु नवयुवकों की भूमिका विशिष्ट होनी चाहिए।

नवयुवक सांसारिक मोहमाया के दल-दल में फँसा नहीं होता। वह शौर्य, साहस, ओज, त्याग और अदम्य उत्साह के साथ वास्तविक और आदर्श के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए भावी भविष्य को आलोकमय बना सकता है।

प्रचलित सामाजिक पद्धति को परिवर्तन से जोड़ना आवश्यक है। स्वतंत्र राष्ट्र के संचालन के लिए युवा वर्ग में निर्भीकता, आदर्श प्रियता, साहस और नैतिकता आदि गुण का समावेश आवश्यक है और इन पक्षों को समायोजित करने में वृद्धजनों का दिशा-निर्देश महत्वपूर्ण है।

युवकों को राष्ट्र विकास के लिए शूरता और कौशल दिखलाने का अवसर देना ही चाहिए तथा जब भी मौका मिले युवकों को इसमें चूकना नहीं चाहिए। युवकों के अभाव में समाज और राष्ट्र का विकास असम्भव है। वे भविष्य के निर्माण के आलक स्तम्भ हैं, आकाश दीप हैं।

पाठ की भाषा सुबोध तथा गत्यात्मक है। वृद्धजन एवं युवकों में सामंजस्य के माध्यम से समाज और राष्ट्र के विकास के उद्देश्य से रचित प्रस्तुत निबन्ध सार्थक और सफल हैं।

Related Posts

Post a Comment