निराला जी 'यथा नाम तथा गुण' के सबल प्रमाण थे। उन्हें उनके निराले व्यक्तित्व के कारण सरलता से पहचाना जा सकता था। जिस ओर भी उनकी लेखनी चली, उधर ही से विजयी होकर लौटी।
उन्होंने अपने निराले व्यक्तित्व से हिन्दी साहित्य-जगत् को एक निराला पक्ष दिखाया। निराली दिशा और निराली वाणी प्रदान की है। हिन्दी - साहित्य-संसार अपनी इस निराली विभूति का कभी विस्मरण न कर सकेगा। कविवर नागार्जुन ने निराला जी के विषय में ठीक ही लिखा हैसाधारण
हे कविकुल गुरु, हे महिमामय, हे सन्यासी,
तुझे समझता है भारतवासी।
राज्यपाल या राज्य प्रमुख क्या समझें तुझको,
कुचल रही हैं जिनकी संगीनें कुसुम कुसुम को
सुखमय, कृतज्ञ, समदृष्टि यह जनयुग जल्दी आ रहा,
इस मिट्टी का कण-कण सुनो गीत तुम्हारे गा रहा।
महानतम काव्य ग्रन्थों की प्रणेता-निराला जी एक निराली प्रतिभा के कवि थे। उन्होंने अपनी सबल लेखनी में अनेक काव्य ग्रन्थों का प्रणयन किया है। उनमें से प्रमुख काव्य ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं- 'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'तुलसीदास', 'कुकुरमुत्ता', 'नये पत्ते', 'आराधना', ‘गीत-कुञ्ज’, ‘बेला और अपरा' आदि ।
निराला का 'तुलसीदास' एक अत्यन्त लोकप्रिय खण्डकाव्य है। इसके अतिरिक्त 'राम की शक्ति पूजा' और 'सरोज स्मृति' कविताएँ उच्चकोटि की कविताओं की श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं।
निराला जी के काव्य का भाव-पक्ष
निराला जी का काव्य भाव-पक्ष की दृष्टि से अत्यन्त सबल और प्रौढ़ है। उनके काव्य का भाव-पक्ष उनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही है। उन्होंने अपने विषय में स्वयं कहा है- मेरे पास कवि की वाणी है, कलाकार के हाथ, पहलवान की छाती और दार्शनिक के पैर हैं।
वास्तव में निराला के गम्भीर अध्ययन, निरन्तर दार्शनिक चिन्तन, संगीत, प्रेम और छोटी आयु पत्नी के वियोग ने आपकी भावुकता, प्रौढ़ता, मधुरता, गम्भीरता, स्वच्छन्दता, मादकता जैसे तत्वों को भर दिया ।
आपकी कविता में भाव - पक्ष की दृष्टि से निम्नांकित विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं-
प्रॆम का निरूपण-निराला जी के काव्य में प्रेम-तत्व का अत्यन्त भव्य चित्रण प्राप्त होता है। प्रेम उनके काव्य की महान् प्रेरणा है। उनके काव्य में प्रेम कहीं तो पुरुष के माध्यम से व्यक्त हुआ है और कहीं स्त्री के माध्यम से। वे मौन प्रेमी हैं इसलिए उन्होंने लिखा है
बैठ
ले कुछ देर।
आओ एक पथ के पथिक से।
मौत मधु हो जाये ।
भाषा मूकता की आड़ में
मन सरलता की बाढ़ में।
जल बिन्दु-सा बह जाये।
सौन्दर्य - भावना - निराला मानवतावादी कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में सौन्दर्य के स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों के दर्शन कराये हैं। नारी के नेत्रों के सौन्दर्य का वर्णन देखिए -
विश्वभर को मदोन्मत्त करने की मादकता ।
भरी है विधाता ने इन्हीं दोनों नेत्रों में ।।
मानवतावादी भावना - निराला मानवतावादी कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में सम्पूर्ण मानवता के कल्याण की भावना व्यक्त की है। इसके अतिरिक्त जहाँ तक मानवता-प्रेम करने की बात है, उसका सबल प्रमाण उनकी प्रगतिवादी कविता है।
देश-प्रेम की भावना - निराला जी का व्यक्तित्त्व स्वच्छन्द था। उन्हें किसी का अंकुश प्रिय न था । अतः ऐसे व्यक्ति को अपने देश पर दूसरे देश के शासक का नियन्त्रण कैसे स्वीकार हो सकता था ।
यही कारण है कि आपकी कविता में देश-प्रेम की भावना अत्यन्त भव्य रूप में मुखरित हुई है। उन्होंने अपने देशवासियों में चेतना और जागृति को जन्म देने के लिए अपने देश के प्राचीन वैभव का अंकन किया; यथा
ब्रह्म हो तुम,
पद रज भर भी है यही।
पूरा यह विश्व भार।
सजीव प्रकृति-चित्रण - निराला जी ने अपने काव्य में प्रकृति का विविध रूपों में मनोरम चित्रण किया है। आपने प्रकृति को रहस्यवादी और छायावादी शैली में चित्रित किया है।
उनका मुख्य उद्देश्य प्रकृति का यथातथ्य चित्रण करना न होकर, उसके द्वारा मानवी भावनाओं को ही अधिक uk रूप प्रस्तुत करना है। मानवीकरण के रूप में प्रकृति-चित्रण का उदाहरण प्रस्तुत है
वह संध्या सुन्दरी परी-सी ।
धीरे-धीरे-धीरे।
निराशावाद की प्रधानता - निराला जी के काव्य में निराशा की भावना के भी दर्शन होते हैं। निराला जी के जीवन में निराशा के आविर्भाव के कई कारण थे। एक तो यह था कि उनका समग्र जीवन दुःख की कहानी है,
दूसरा कारण यह था कि प्रत्येक व्यक्ति ने उनके साथ छल किया और तीसरा कारण था उनका अकेलापन। इसलिए उन्होंने अपने अकेलेपन से निराश होकर कहा
मैं अकेला,
देखता हूँ, आ रही।
मेरे दिवस की सांध्य बेला।
नारी की महत्ता का प्रकाशन - निराला एक क्रान्तिकारी कवि थे। उन्होंने नारी के प्रति अपना स्वतन्त्र दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने नारी को पूजनीय और पुरुष की समानाधिकारिणी बताया है।
'राम की शक्ति पूजा' कविता में आपने सीता, शक्ति और अंजना तीनों नारियों के चित्रण से सिद्ध करना चाहा है कि नारी पुरुष के पराजित जीवन में आशा और विश्वास का संचार करती है । राम को सीता का स्मरण आने पर बल मिलता है; यथा
फूटो स्मित सीता-ध्यान-लीन राम के अधर।
फिर विश्व-विजय भावना हृदय में आई भर।
रस निरूपण - आप रस को काव्य की आत्मा मानते हैं। आपने स्पष्ट रूप से लिखा है कि- "नवरसों को समझने और उन्हें उनके यथार्थ रूप से दर्शाने की शक्ति, जिसमें जितनी ज्यादा है, वह उतना ही बड़ा कवि है।"
आपने अपने काव्य में शृंगार, वीर, रौद्र, शान्त, करूण, भयानक आदि रसों का निरूपण किया है। आपने शृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का अंकन किया है। वियोग - विकलता का एक मार्मिक चित्र प्रस्तुत है -
पर हृदय ! सब भाँति तू कंडूगाल है।
उठ, किसी निर्जन विपिन में बैठकर ।
अश्रुओं की बाढ़ में अपनी बिकी।
भग्न भावों को, डुबो दे आँख-सी।
कल्पना तत्व-निराला जी के काव्य में कल्पना अपने अनूठे रूप में अवतीर्ण हुई है। इसने उनके काव्य के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों को ही बल प्रदान किया है। आचार्य वाजपेयी ने निराला जी की कल्पना शक्ति के विषय में लिखा है।
छायावादी कवियों और विशेषतः निराला में कल्पना की भ्रास्वरता एक अभिनव दर्शन का पर्याय बनकर आयी है और इस दर्शन के द्वारा मानव चेतना और मानव सम्बन्धों में अधिक व्याप्ति, विस्तार और गहनता लायी जा सकती है।
यदि निराला जी की कल्पना-प्रक्रिया को किसी प्रकार के पलायन से सम्बद्ध किया जाये तो यह पलायन सौन्दर्य, कला और मानव विकास का एक अभिनव उपकरण ही सिद्ध होगा।"
रहस्यवादी भावना - निराला जी को दार्शनिक अध्ययन, आध्यात्मिक अध्ययन और आध्यात्मिक भावना ने रहस्यवादी कवि बना दिया था। आपके रहस्यवाद में बौद्धिकता के साथ कल्पना का सुन्दर समन्वय दृष्टिगोचर होता है। आपके रहस्यवाद में अद्वैतवाद की भावना की प्रधानता है।
आपका अद्वैतवाद गतिहीन नहीं है, अपितु गतिशील है। 'तुम और मैं' निराला जी की प्रसिद्ध रहस्यवादी कविता है। इसमें कवि ने ब्रह्म के साथ अपना सम्बन्ध स्पष्ट किया है; यथा
और मै चंचल गति सुरसरिता।
निराला ने अद्वैतवादी होने के कारण को बताया है कि अमर सत्ता को कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं है, वह तो हृदय में स्थित है
खोजता और कहाँ नादान।
छायावादी भावना - छायावादी हिन्दी-साहित्य की एक सौन्दर्यशालिनी सशक्त, समृद्ध और कलात्मक काव्यधारा है। यह काव्यधारा निराला जैसे कवि को ही पाकर पूर्ण रूप से हिन्दी काव्य में पल्लवित हुई। इसलिए निराला जी को हिन्दी-साहित्य में छायावाद का प्रवर्त्तक और उन्नायक माना जाता है।
आपके छायावाद पर आलोचकों ने बड़े गहरे व्यंग्य और प्रहार किये, परन्तु आपने उनकी चिन्ता नहीं की और निरन्तर अपनी काव्य साधना में रत रहे ।
निराला जी का छायावाद सभी श्रेष्ठ लक्षणों से है। युक्त उनकी छायावादी कविता ने हिन्दी काव्य को नवीन भाषा, नये छन्द, नई शैली, नये अलंकार और नई दिशा प्रदान की |
प्रगतिवादी भावना - निराला की कविता में जहाँ रहस्यवादी और छायावादी भावनाओं के दर्शन होते हैं, वहीं प्रगतिवादी भावना भी दृष्टिगोचर होती है। प्रगतिवादी कवियों में निराला जी की गणना सर्वप्रथम होती है।
इस प्रकार आपकी कविता रहस्यवाद और छायावाद के कल्पना लोक से प्रगतिवाद तक के और पाताल के सौन्दर्य को चित्रित करने में समान रूप से सफल रही। निराला जी को इस अनोखी विशेषता ने ही महान् कलाकार बना दिया था।
कल्पना लोक का चित्रण करते-करते कवि को ही महान् कलाकार बना दिया था। देखकर द्रवित हो उठा। भारत की विधवा की दीनावस्था देखकर कवि की काल्पनिक लेखनी यथार्थ की भूमि पर उतर आई -
वह दीप-शिखा-सी शान्त, भाव में लीन ।
वह क्रूर तर की छूटी लता-सी दीन
दलित भारत की विधवा है।
निराला जी की प्रगतिवादी कविता में शोषित और पीड़ित प्राणियों के प्रति सहानुभूति और दुराचारों के प्रति विद्रोह का स्वर है। सड़क पर जाते 'भिखारी' का निराला जी द्वारा अंकित एक मार्मिक चित्र देखिए
चल रहा लकुटिया टेक।
इसी कवि ने एक अन्य स्थान पर सड़क पर पत्थर तोड़ती मजदूरिन का कारुणिक चित्र प्रस्तुत किया है
वह तोड़ती पत्थर,
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर।
निराला जी की 'कुकुरमुत्ता', 'बेला' और 'नये पत्ते' तीनों काव्य कृतियाँ प्रगतिवादी कविता का सुन्दर उदाहरण हैं। 'कुकुरमुत्ता' काव्य दलित वर्ग का प्रतिनिधि काव्य है। इस काव्य में व्यंग्यात्मक शैली के माध्यम से कवि ने शोषण करने वाले वर्ग की निन्दा की है; यथा
भूत मत गर पायी खुशबू, रगो आब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतराता है कैपीटेलिस्ट
कितनों को तूने बनाया है गुलाम।
निराला जी के काव्य का कला-पक्ष
निराला जी के काव्य का कला - पक्ष भी भाव की तरह अत्यन्त प्रौढ़ तथा सबल है। कहने का अभिप्राय यह है कि निराला जी के काव्य का आन्तरिक पक्ष जितना सुन्दर है, उतना ही बाह्य पक्ष भी सजीव और स्वाभाविक बन पड़ा है।
निराला जी आरम्भ से ही विद्रोही कवि के रूप में हिन्दी साहित्य में अवतीर्ण हुए। प्राचीनता के प्रति आकर्षण उनकी कविता में आदि से अन्त तक बना हुआ है। उन्होंने अपने काव्य के कला-पक्ष में भी विद्रोह और स्वच्छन्दता से काम लिया है।
कवि के पुत्र श्री रामकृष्ण त्रिपाठी जी का कथन सत्य है"निराला जहाँ साहित्य में पुरानी रूढ़ियों और बन्धनों को न मानकर नव गीत, नव लय, ताल, छन्द पर जोर देते रहे, वहीं समाज के भ्रामक ढकोसले उनके क्रान्तिकारी मन को न भाये, उन्होंने उनको भी अस्वीकार कर दिया ।
निराला जी के काव्य में कला - पक्ष की दृष्टि से निम्नलिखित विशेषताओं के दर्शन होते हैं।
भाषा - निराला जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। उस पर उनका पूर्ण अधिकार है। उनका विश्वास या कि कवि को अपने भावों के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट लिखा है- "किसी भाव को जल्दी और आसानी से तभी हम व्यक्त कर सकेंगे, जब भाषा स्वतन्त्र और भावों की सच्ची अनुगामिनी होगी।”
आपकी भाषा आपके भावों का पूर्ण प्रतिनिधित्व करती है, जबकि भाषा पर बंगला भाषा का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्राचुर्य देखने को मिलता है।
संस्कृत शब्दों के बाहुल्य के कारण ही आपकी भाषा क्लिष्ट हो गई। कुछ आलोचकों ने आपकी भाषा की क्लिश्टता से चिढ़कर आपको 'आधुनिक केशव' कह दिया है । यह सत्य है कि आपकी भाषा क्लिष्ट है, परन्तु भावों के अनुरूप है।
आपकी भाषा की दुरुहता का कारण आपकी दार्शनिकता भी है। इसके साथ ही आपने सरल भाषा का प्रयोग अपनी प्रगतिवादी कविताओं में किया है। वहाँ आपने उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का भी निःसंकोच रूप में प्रयोग किया है।
आपने अपनी अलौकिक प्रतिभा से हिन्दी भाषा को बहुत से नवीन शब्दों का भण्डार प्रदान किया है। आपने अपने निराले व्यक्तित्व से खड़ी बोली को निराला रूप प्रदान किया है। सारांश यह है कि आपकी भाषा शुद्ध, परिष्कृत, व्याकरणसम्मत, चित्रोपम, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशील है।
शैली - निराला जी ने अपने काव्य की रचना गीत शैली में की है। आपकी इस शैली में गीत की समस्त विशेषताएँ उपलब्ध हो जाती हैं। निराला जी के गीतों को विशेष दृष्टि से पाँच भागों में विभाजित कर सकते हैं -
(1) शृंगारिक गीत, (2) विनय और प्रार्थना के गीत, (3) राष्ट्रीय गीत, ( 4 ) प्रगतिशील या सामाजिक गीत, और (5) प्रयोगात्मक गीत। निराला जी की शैली में प्रतीकात्मकता, लाक्षणिकता, चित्रात्मकता और संगीतात्मकता जैसे गुण विद्यमान हैं।
छन्द योजना - छन्द योजना के क्षेत्र में भी निराला जी ने नवीनता का परिचय दिया है। उन्होंने अपने काव्य में प्राचीनकाल से चले आये हुए छन्दों को स्थान नहीं दिया। उन्होंने स्वयं नवीन मुक्त छन्दों की सृष्टि की और छन्द भावों के प्रकाशन के लिए श्रेष्ठ माना -
सहज प्रकाशन वह मन का
निज भावों को प्रकट अकृत्रिम चित्र।
इस प्रकार निराला जी ने छन्दों के प्रयोग में पूर्ण स्वच्छन्दता से काम लिया। उन्होंने छन्द के बन्ध नों को किसी प्रकार भी स्वीकार नहीं किया और विद्रोही स्वर में कहा है
अर्द्ध विकल इस हृदय कमल में आ तू, प्रिय!
छोड़कर बन्धनमय छन्दों की छोटी राह।
आपके नवीन छन्दों की लोगों ने आलोचना की है और उन्हें 'रबड़ छन्द' के नाम से पुकारा है, परन्तु आपने ऐसे व्यंग्य की परवाह नहीं की। आज उन्हीं के अनुकरण पर हिन्दी कविता का बहुत भाग मुक्त छन्दों में है।
आपने तुकान्त और अतुकान्त दो प्रकार के छन्दों का अपने काव्य में प्रयोग किया है, साथ ही उर्दू और अंग्रेजी के छन्दों का भी प्रयोग किया है ।
अलंकार योजना - निराला जी ने अपने काव्य में अलंकारों का प्रयोग बड़े स्वभाविक और सजीव ढंग से किया है। आपने अलंकारों का प्रयोग पांडित्य प्रदर्शन के लिए नहीं, अपितु भावों को तीव्रता देने के लिए किया है।
आपका मत है- "अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए नहीं हैं, वे भाव की अभिव्यक्ति के विशेष द्वार हैं।" आपके काव्य में रूपक, उत्प्रेक्षा, सन्देह, मानवीकरण, यमक, दृष्टान्त, उदात्त, विशेषण, उपमा आदि अलंकारों का विशेष प्रयोग दृष्टिगोचर होता है। उपमा अलंकारों का उदाहरण देखिए
किसी गूढ़ मर्म में निश्चित,
शशि का मुख ज्योत्सना-सा गात।
महाप्राण निराला जी ने हिन्दी साहित्य संसार को अपने अपूर्व व्यक्तित्व से नवीन क्रान्तिकारी स्वर प्रदान किया। आपने हिन्दी साहित्य की छायावादी कविता का विरोध होने पर भी अपनी साधना में व्याघात उत्पन्न नहीं होने दिया।
अदम्य साहसी प्रतिभा ने तमाम बन्धनों को तोड़ दिया। सच्चे अर्थों में महाप्राण निराला की काव्य प्रतिभा उस पारसमणि के समान है जिसके स्पर्श से सामान्य मृतपिण्ड भी सुवर्ण में परिणत हो उठता है।
निराला जी छायावादी कविता के जन्मदाता थे। उनके काव्य में धारा पूर्ण यौवन के साथ पल्लवित हुई है ।निराला के छायावादी काव्य ग्रन्थ- निराला जी ने अपनी सबल लेखनी से अनेक काव्य ग्रन्थों की रचना की है।
उनकी छायावादी कृतियों के अन्तर्गत 'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'तुलसीदास' और 'अणिमा' काव्य कृतियाँ आती हैं। इन कृतियों में छायावादी कविता की सभी विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं। 'तुलसीदास' निराला जी का छायावादी शैली में लिखा गया सुन्दर काव्य है ।
निराला के काव्य में छायावादी काव्य की विशेषताओं का निरूपण-निराला जी एक उच्चकोटि के छायावादी कवि थे। उनके काव्य में छायावादी कविता की भाव-पक्षीय और कला - पक्षीय दोनों प्रकार की विशेषताओं का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है। उनका विवेचन निम्न प्रकार है
भावपक्षीय विशेषताएँ-निराला जी के काव्य में छायावादी कविता की निम्नलिखित भावपक्षीय विशेषताएँ उपलब्ध होती है
सौन्दर्य निरूपण- छायावादी कविता की सौन्दर्य भावना एक आवश्यक लक्षण है। निराला जी की कविता में छायावादी कविता की इस प्रवृत्ति के अनुसार प्रचुर मात्रा में छायावादी सौन्दर्य के दर्शन होते हैं।
सौन्दर्य के क्षेत्र में निराला जी वासना से मानसिकता और मानसिकता से दिव्यता की ओर उन्मुख हुए हैं। आपकी कविता में प्रकृति-सौन्दर्य और नारी सौन्दर्य के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। नारी के केशों के सौन्दर्य का एक उदाहरण देखिए
कवियों के मानस की मृदुल कल्पना के से जाल।
प्रेम-भावना का प्राचुर्य - छायावादी कवि प्रेम के संसार में निवास करता है। निराला जी के छायावादी काव्य में प्रेम-तत्व का सुन्दर निरूपण दृष्टिगोचर होता है। देखिए
पलकों का नव पलकों पर प्रथमोत्थानपतन।
मानवतावादी दृष्टिकोण-निराला जी के काव्य में छायावादी कविता के इस तत्व के भी दर्शन होते हैं। उनके काव्य में मानवतावादी प्रवृत्ति प्रचुर मात्रा में साकार हुई है। उसका कारण आपकी जन-जीवन के प्रति रूचि है। आप हर मूल्य पर मानवता का कल्याण चाहते हैं।
वैयक्तिकता-यह प्रवृत्ति छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषता है। इस प्रवृत्ति के माध्यम से छायावादी कवि ने अपने व्यक्तिगत जीवन की भावनाओं को 'मैं' करके लिखा । परन्तु 'मैं' में सम्पूर्ण भारतवासियों का भाव भरा हुआ है।
प्रकृति में चेतना का आरोप- छायावादी कवि का मन प्रकृति-चित्रण में खूब रमा। उसने प्रकृति पर चेतना का आरोप किया। निराला जी ने भी प्रकृति के इस रूप का अंकन अपनी छायावादी कविता में किया है। उदाहरण के लिए, 'वन कुसुमों की शैया' में कवि ने शरद् और शिशिर को दो बहनों के रूप में चित्रित किया है
शरद शिशिर दोनों बहनों के,
सुख विलास-मद शिथिल अंग पर,
मालती थी कर चरण समीर धीरे-धीरे आती।
नींद उचट जाने के भय से भी कुछ-कुछ घबराती।।
देश - प्रेम की भावना - छायावादी कवि अपने युग के प्रति भी सचेत रहा। इसीलिए उसने अपने काव्य में राष्ट्रीय भावना को भी स्थान दिया । निराला जी ने भी अपने दश के प्राचीन वैभव को प्रस्तुत करके अपनी राष्ट्रवादी भावना का परिचय दिया है । यथा,
परिचय की उक्ति नहीं,
गीत है, गीता है,
स्मरण करो एक बार
जागो फिर एक बार।
नारी के महत्व का प्रतिपादन निराला जी ने छायावादी कवि होने के नाते समाज में नारी के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने नारी को पुरुष के समान ही महत्ता प्रदान की।
रहस्यवादी भावना - प्रत्येक छायावादी कवि रहस्यवादी है किन्तु इनका रहस्यवाद संत कवियों के रहस्यवाद से भिन्न है। अतः इसे नवीन रहस्यवाद अथवा भावात्मक रहस्यवाद नाम दिया गया है।
कल्पना का प्राचार्य-यह प्रवृत्ति निराला जी के छायावादी काव्य में अपने अनोखे रूप में सर्वत्र दिखायी देती है। इसका प्रयोग आपके अपने काव्य के भाव और शिल्प दोनों क्षेत्रों में किया है।
आत्माभिव्यक्ति इस प्रवृत्ति के माध्यम से छायावादी कवियों ने अपने जीवन के सुख-दुःख और उतार-चढ़ाव का अंकन किया है। निराला जी की छायावादी कविता की यह प्रमुख विशेषता है।
सामाजिक करूणा का चित्रण-निराला जी की छायावादी कविता का सशक्त आधार सामाजिक करुणा है। छायावादी कविता में इस भावना को जन्म देने वाले प्रथम कवि निराला ही हैं। उनके द्वारा चित्रित 'विधवा' का एक कारूणिक चित्र देखिए
वह दीप-शिखा-सी शान्त भाव में लीन,
वह क्रूर काल ताण्डव की स्मृति रेखा-सी।
शृंगारिक भावना-निराला जी की छायावादी कविता में अन्य छायावादी कवियों की कविता की तरह शृंगारिक भावना के दर्शन होते हैं। नारी के मांसल रूप का एक चित्र प्रस्तुत है
नितम्भ भार चरण सुकुसुम,
गति मन्द-मन्द
छूट जाता है धैर्य ऋषि मुनियों का ।
देवों-भोगियों की तो बात ही निराली है।।
कला-पक्षीय विशेषताएँ - निराला जी के काव्य में छायावादी कविता की भाव-पक्षीय विशेषताएँ तो पूर्ण रूप से प्राप्त होती हैं परन्तु साथ ही कला-पक्षीय प्रवृत्तियों का भी सुन्दर निरूपण दृष्टिगोचर होता है। उनका विवेचन निम्न प्रकार है
प्रतीकात्मक शैली-प्रतीकों का प्रयोग छायावादी कविता की कला-पक्ष की दृष्टि से प्रधान विशेषता है व निराला जी की छायावादी कविता में प्रतीकों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में दृष्टिगोचर होता है। उनकी 'जूही की कली' और 'शेफाली' कविताएँ प्रतीकों के सुन्दर उदाहरण हैं। 'जूही की कली' निराला जी की प्रियतमा का प्रतीक है।
नवीन अलंकारों का प्रयोग - निराला छायावादी कविता के उन्नायक थे। उन्होंने अपनी कविता को अधिक प्रभावशाली और सुन्दर बनाने के लिए प्रचीन तथा नवीन दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया।
नवीन अलंकारों में मानवीयकरण, विशेषण, विपर्यय आदि का प्रयोग किया तथा प्राचीन अलंकारों में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, सन्देह, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग किया।
नवीन छन्दों का प्रयोग - निराला जी ने अपनी छायावादी कविता में अनेक नवीन छन्द प्रदान किये। उन्हें मुक्त छन्द का जन्मदाता कहा जाता है। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी की गजलों, बहरों और सानेट को अपने काव्य में स्थान दिया।
साथ ही लोक-गीतों के आधार पर भी नवीन छन्दों का निर्माण किया। उनके मुक्त छन्द की बड़ी आलोचना की गयी। उसे 'रबड़ छन्द', 'केंचुआ छन्द' आदि नामों से पुकारा गया, परन्तु निराला छन्दों के क्षेत्रों में नवीनता के पक्षपाती रहे।
भाषा में लाक्षणिकता और ध्वन्यात्मकता - छायावादी कवियों की भाषा में लाक्षणिकता और ध्वन्यात्मकता का गुण विशेष रूप से देखने को मिलता है। निराला जी की भाषा में भी लाक्षणिकता और ध्वन्यात्मकता का गुण विद्यमान है। लाक्षणिकता का एक उदाहरण प्रस्तुत है - “प्रतिपल-
राक्षस विरुद्ध प्रव्यूह क्रुद्ध कपि विषम हूह।
इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि छायावादी निराला जैसा कवि हिन्दी साहित्य में निराले रूप से ही अवतरित हुआ है। उनके काव्य में छायावादी कविता के सभी गुण परिलक्षित होते हैं। निराला जी ने अपनी छायावादी कविताओं के द्वारा हिन्दी कविता को नवीन रूप और शृंगार प्रदान किया।
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