अपरदन किसे कहते हैं?

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अपरदन भूगर्भीय प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी की सामग्री को हवा या पानी जैसे प्राकृतिक बलों द्वारा पहना और ले जाया जाता है।

अपरदन भूगर्भीय प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी की सामग्री को हवा या पानी जैसे प्राकृतिक बलों द्वारा पहना और ले जाया जाता है। एक समान प्रक्रिया, अपक्षय, चट्टान को तोड़ता या घुलता है, लेकिन इसमें गति शामिल नहीं होती है।

अपरदन, निक्षेपण के विपरीत है, भूगर्भीय प्रक्रिया जिसमें मिट्टी के पदार्थ जमा होते हैं, या एक भू-भाग पर निर्मित होते हैं।

अधिकांश क्षरण तरल पानी, हवा या बर्फ (आमतौर पर ग्लेशियर के रूप में) द्वारा किया जाता है। यदि हवा धूल भरी है, या पानी या हिमनद बर्फ कीचड़युक्त है, तो कटाव हो रहा है। भूरा रंग इंगित करता है कि चट्टान और मिट्टी के टुकड़े द्रव (वायु या पानी) में निलंबित हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा रहा है। इस परिवहन सामग्री को तलछट कहा जाता है।

अनाच्छादन की सम्पूर्णता में अपरदन एक महत्वपूर्ण कड़ी है। भूतल पर विविध प्रकार से एकत्रित रोड़े, पदार्थ या पदार्थों का ढेर निरन्तर गतिशील शक्तियों द्वारा काट-छाँटकर अन्यत्र बहाया या परिवहित किया जाता है। ऐसा परिवहित पदार्थ आगे चलकर अनुकूल दशाओं में बराबर जमा या निक्षेपित होता जाता हैं।

यद्यपि अपक्षय एवं गतिशील अपरदन दोनों ही स्वतन्त्र क्रियाएँ हैं फिर भी अपक्षय द्वारा एकत्रित पदार्थ अन्ततः शक्तियों अर्थात् नदी, हिमानी, हवा आदि द्वारा अपरदन एवं परिवहन (बहाव) द्वारा अन्य प्राकृतिक दशाओं के अनुसार अन्य भागों में ले जाकर जमा (निक्षेपित) कर दिया जाता है । 

इस प्रकार मोटे तौर पर कटाव का अर्थ पदार्थों को काटना, काटे गए पदार्थों को बहाना एवं बहते पदार्थों को जमा करना सभी क्रिया का सम्मिलित स्वरूप है । इसे ही तकनीकी दृष्टि से अपरदन कहते हैं। 

दूसरे शब्दों में, चट्टानों के अपघर्षण, क्षरण तथा परिवहन के सामूहिक रूप को अपरदन कहा जाता है।

अपरदन के लिए कई गतिशील शक्तियाँ जिम्मेदार हैं। इनके प्रमुख कारक या अभिकर्ता नदियाँ, भूमिगत जल, हवा या पवन, हिमानी एवं समुद्रतटीय लहरें आदि हैं । 

इनके द्वारा अपरदित पदार्थों परिवहन अनेक प्रकार से होता रहता है। कुछ पदार्थ तैरते हुए बहते हैं, कुछ पानी व हवा में झूलते रहते हैं, कुछ रगड़ खा-खाकर पेंदे की रेत की भाँति बहते हैं 

किन्तु भारी चट्टाने पानी में ढाल के साथ लुढ़कती जाती । इसके अतिरिक्त, कई रासायनिक घोल के रूप में पानी में घुल कर बहते हैं। इस प्रकार सभी अपरदन एवं परिवहन व जमाव के कारकों में बहते हुए जल का प्रभाव सबसे महत्वपूर्ण एवं सर्वव्यापी रहा है । 

यद्यपि इसका प्रभाव मरुस्थलीय एवं बर्फीले प्रदेशों में सीमित हो जाता है।

अपरदन के रूप

अपरदन की क्रिया चट्टानों पर विविध प्रकार से प्रभाव डालती है। अत: गतिशील शक्तियों एवं अपरदन के कारकों के अनुसार विविध प्रकार की चट्टानों एवं उनकी संरचना पर भिन्न-भिन्न प्रकार से अपरदन की क्रिया होती रहती है। यह मुख्यतः निम्न प्रकार से प्रभावी रहती है।

(i) अपघर्षण 

जब अपरदन के कारण (नदी, हवा, हिमानी आदि) अपक्षय से एकत्रित या ढीली संरचना वाली चट्टानों के पदार्थों को अपरदन द्वारा बहाते हैं तो ऐसे पदार्थ चट्टानों से रगड़ खा-खाकर बहते जाते हैं। इसे ही अपघर्षण कहते हैं। 

इस क्रिया से पदार्थ और भी अधिक कटते या अपरदित होते रहते हैं। साथ ही ढीली चट्टानों व कणों की इस क्रिया द्वारा उठाकर अपने साथ ले जाये जाते हैं।

(ii) सन्निघर्षण 

इसमें हवा, नदी एवं लहरों द्वारा विशेष रूप से बहाये गये पदार्थ आपस में टकराकर, रगड़ खा-खाकर टुकड़े-टुकड़े अथवा चूरे में बदलते जाते हैं। इसके साथ-साथ अपघर्षण की क्रिया भी होती रहती है। इससे नुकीले पत्थर गोल बनते जाते हैं और इनसे धीरे-धीरे बालू व मिट्टी बनती रहती है।

(iii) जलदाब क्रिया

यह जल की एक भौतिक क्रिया है। इसका प्रभाव मुख्यतः बहते जल एवं लहरों के कार्य में देखा जा सकता है अर्थात् यह क्रिया केवल नदी द्वारा सम्भव है। इसमें पानी के भारी दबाव से विशेषकर जब दबाव एक स्थान विशेष पर क्रियाशील हो तो चट्टानें टूटती जाती हैं।

जैसे कि भंवर की या तेज दाबपूर्ण बहाव की क्रिया से अथवा लहरों का गुफाओं में फंसकर छोटे-छोटे छिद्रों द्वारा तेज दबाव से बाहर निकलते समय चट्टानों के छेद को बड़ा करने जैसी क्रिया इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

(iv) अपवाहन 

अपवाहन की क्रिया का मुख्य कारक वायु है, जबकि नदी हिमानी एवं लहरों पर ले जाया गया अवसाद परिवहन कहलाता है। वायु या हवा भौतिक अपक्षय या कटाव द्वारा एकत्रित बालू को एक स्थान से उड़ाकर अन्य स्थान पर बहा ले जाती है 

जबकि अन्य कारक पदार्थों या अवसादों को भूमि पर अपने साथ बहाकर या परिवहित करके ले जाते हैं। दोनों ही दशाओं में अपक्षय से एकत्रित या अपरदित पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाए जाते हैं।

(v) जमाव या निक्षेप 

धरातल पर अपक्षय एवं अपरदन से प्राप्त जो पदार्थ बहाकर या परिवहन एवं अपवाहन द्वारा अन्य स्थान पर ले जाया जाता है, उसे कहीं न कहीं तो अवश्य जमा होना ही है। 

जमाव की इस क्रिया को ही निक्षेप या निक्षेपण भी कहते हैं । निक्षेप एवं परिवहन कई दशाओं एवं नियमों की सीमाओं में कम-ज्यादा, धीमी गति या तेज गति से होता रहता है। 

सामान्यत: सभी अपरदन के कारक ऊपरी भागों से पदार्थ ला-लाकर निचले भागों में जमा करते रहते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारक या अभिकर्ता बहता जल है। इसके लिए जमाव का सार्वभौम तल मैदान एवं सागर तट है।

इस प्रकार अपरदन, परिवहन एवं जमाव या निक्षेपण की क्रियाओं से अनेक प्रकार की भूतल की आकृतियाँ बनती व बिगड़ती तथा संशोधित होती रहती हैं।

Rajesh patel
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