मिश्र जी ने अपने ललित निबन्धों द्वारा हिन्दी के निबन्ध साहित्य को अत्यधिक समृद्ध बनाया है। आपके ये निबन्ध गहन अनुभूति एवं चमत्कारपूर्ण अभिव्यक्ति के ही भण्डार नहीं हैं। अपितु इनमें लेखक ने समसामयिक समस्याओं की ओर व्यंग्यपूर्ण संकेत करते हुए आधुनिक जीवन में व्याप्त विषमताओं के चित्र बड़ी तत्परता एवं तल्लीनता के साथ अंकित किये हैं।
ये लेखक के मन की उन्मुक्त उड़ान को केवल अवकाश ही प्रदान नहीं करते, अपितु लेखक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में सन्निहित मुक्त आवेश को भी स्वर प्रदान करते हैं तथा अभिव्यंजना की नूतन पद्धति को भी प्रश्रय प्रदान करते हैं।
विद्यानिवास मिश्र की निबंध की विशेषता
(1) मिश्र जी ने इन निबन्धों में कहीं आँगन के पंछी की सी चंचलता एवं सत्वरता है, तो कहीं 'बनजारा मन की-सी उन्मुक्त उड़ान है। कहीं नई पीढ़ी की बेचैनी जैसी व्यग्रता एवं आतुरता है, तो कहीं अन्धी जनता और लंगड़े जनतन्त्र की-सी हृदय की भटकन एवं मन की उद्विग्नता है।
हिन्दी के अपराजेय योद्धा की भाँति कर्त्तव्य-परायणता एवं तत्परता है, तो कहीं हिमालय की-सी दृढ़ता एवं गुरुता है। कहीं आदर्शों के द्वन्द्व जैसी संघर्षशीलता एवं आकुलता है, तो कहीं विवाह की धूम जैसी मधुरता एवं आमोदप्रियता भी है, कहीं चितवन की छाँह जैसी शीतलता एवं मृदुलता है, तो कहीं कदम की फूली डाल जैसी स्निग्धता एवं मादकता भी है।
कहीं पंचशर जैसी सम्मोहनशीलता एवं प्रभावोत्पादकता है तो कहीं तुम चन्दन हम पानी जैसी द्रवणशीलता एवं सुरभिमयता भी है तथा कहीं अमरुकशतक जैसी उल्लासप्रियता एवं विनोदात्मकता है, तो कहीं पाणिनि जैसी नियमितता एवं सूक्ष्म निरीक्षणता भी है।
(2) आपके निबन्ध लोक-जीवन एवं लोक-संस्कृति के श्रृंगार होने के साथ-साथ आधुनिक जीवन की विसंगतियों, विषमताओं एवं विपथगाओं का भण्डाफोड़ करने वाले हैं तथा आधुनिक राजनीति एवं शासन-तन्त्र में व्याप्त उच्छृखलताओं एवं अनियमितताओं की ओर संकेत करते हुए एक स्वस्थ एवं सम्पन्न शासन-पद्धति की प्रेरणा प्रदान करने वाले हैं।
(3) आपके निबन्धों में आधुनिक लेखकों की विशृंखलित मनोवृत्ति, चाटुकारिता, परमुखापेक्षिता एवं उत्तरदायित्वहीनता का पर्दाफाश करते हुए उन्हें अपने कर्तव्य का ध्यान कराया गया है और लेखक के गुरुतम उत्तरदायित्व को निभाने के लिए प्रेरित किया गया है।
(4) आपके निबन्धों में राष्ट्रभाषा हिन्दी के मार्ग में रोड़ा अटकाने वाले आधुनिक राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य-बाणों की वर्षा करते हुए राष्ट्रभाषा की समस्या को सामाजिक स्तर पर हल करने की सलाह दी गई है तथा राजनीति, मजहब और प्रान्तीयता से ऊपर उठकर हिन्दी के सर्वाङ्गीण विकास के लिए तरुण प्रतिभा को उन्मुख होने की प्रेरणा दी है।
(5) आपने विश्वविद्यालयों एवं अध्यापकों में व्याप्त असन्तोष, रोष एवं आक्रोश की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करते हुए विश्वविद्यालयों के प्रशासन में शीघ्रातिशीघ्र परिवर्तन लाने, अध्यापकों पर होने वाले अन्याय एवं अत्याचारों को समाप्त करने तथा अध्यापकों एवं विद्यार्थियों को संकीर्ण स्वार्थ को गोट बनने से रोकने की उचित सलाह दी है और विश्वविद्यालयों की विडम्बनापूर्ण स्थिति को शीघ्र सुधारने का आग्रह किया है।
(6) आपने समसामयिक लेखकों को भी सम्भ्रान्तता एवं तटस्थता के मुखौटों को उतारकर बाहरी और भीतरी कठिनाइयों से जूझने तथा बदलती हुई परिस्थितियों से सत्ताधीशों का स्वस्तिवाचन न करके सत्य-पथ पर अनुसरण करने की सलाह दी है तथा निर्व्याज भाव से जनसाधारण की आकांक्षा को अपनी-अपनी रचनाओं में उतारने का आग्रह किया है।
(7) आपने जन-जीवन में व्याप्त विविध परम्परागत एवं नवागत बुराइयों तथा दूसरी ओर विविध अप्रस्तुत प्रसंगों के बिम्ब-प्रतिबिम्बात्मक नियोजन से पहले कथन को अधिकाधिक प्रभावोत्पादक, रोचक एवं आकर्षक बनाने का स्तुत्य प्रयत्न किया है। निस्सन्देह आपके निबन्ध वर्तमान जीवन की लीलाभूमि का सजीव चित्र प्रस्तुत करते हैं, आधुनिक विपथगाओं के यथार्थ रूप को अंकित करते हैं।
सामाजिक एवं धार्मिक विषमताओं का यथार्थ बोध कराते हैं, राजनीतिक एवं शासकीय गतिविधियों का सही-सही ज्ञान कराते हैं तथा जन-जीवन में व्याप्त कुण्ठा, कटुता, तीक्ष्णता, आक्रोश आदि की वास्तविक झाँकी चित्रित करते हैं। आपने अपने इन निबन्धों के माध्यम से लोक-जीवन को स्वर प्रदान किया है।
लोक-संस्कृति को मुखरित किया है, लोकोन्मुखी भाषा को साहित्यिक रूप में ढाला है, वर्तमान जीवन के छलछलाते प्रसंगों को लिपिबद्ध किया है, युगव्यापी विसंगतियों को सूक्ष्मता से उजागर किया है, अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व में सन्निहित मुक्त आवेश को रूपायित किया है।
ललित-निबन्धों की विह्वा को नई संजीवनी-शक्ति दी है और आंचलिक भाषाओं के शब्द-भण्डार से अनजान पाठकों को नई अर्थच्छवियों से अवगत कराया है। इसी कारण आपके ललित-निबन्ध हिन्दी-साहित्य की बेजोड़ कृतियाँ हैं।
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