सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य में प्रगतिवाद की समीक्षा कीजिए

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बिराला जी के काव्य में पर्याप्त विविधता दिखाई देती है। इसके लिए हम निम्न उदाहरण दे सकते हैं। मानव का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध है । उसको जीवन की समग्र प्रेरणाएँ प्रकृति से ही प्राप्त होती हैं इतना ही नहीं जीवन के समस्त साधन भी वह प्रकृति से ही प्राप्त करता है।

छायावाद का युग स्वच्छन्दता का युग रहा है । उस युग के कवि ने प्रकृति को जी भरकर देखा और विभिन्न प्रकार से उसका वर्णन किया है।

1. प्रगतिशील सामाजिक रचनाएँ - गरीब, शोषित और पीड़ित जनता के प्रति सहानुभूति और अमीर, शोषक और पीड़क के प्रति घृणा प्रगतिवादी काव्य की पहली विशेषता है और यह विशेषता निराला में अत्यन्त प्रखर रूप से विद्यमान है। 'भिक्षुक' का यथार्थ चित्र खींचते हुए निराला अनायास ही मर्मस्पर्श कर जाते हैं।

वह आता
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता ।
पेट पीठ दोनों मिल कर हैं एक, 
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता। 

निराला की प्रगतिशील चेतना का सर्वोत्तम उदाहरण उनकी 'अनामिका' में संगृहीत रचना है‘वह तोड़ती पत्थर’। इस रचना में कवि ने पत्थर तोड़ती हुई एक मजदूरिन का मर्मस्पर्शी चित्र, उसके यथार्थ वातावरण को उपस्थित करते हुए खींचा है। 

उसकी कर्मशीलता, सहिष्णुता, विवशता और शोषक के प्रति उसकी आँखों से फूटने वाली चिंगारी इन सबका सम्मिलित और संश्लिष्ट चित्र है। वह तोड़ती पत्थर -

कोई न छायादार 
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; 
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, 
गुरु हथौड़ा हाथ, 
करती बार-बार प्रहार
सामने तरू-मालिका अट्टालिका, प्राकार ।

2. नारी - उत्थान सम्बन्धी रचनाएँ - प्रगतिवादी काव्य की दूसरी प्रमुख विशेषता है, नारी के उत्थान के लिए उसकी वास्तविकता का उद्घाटन । निराला जी ने भी अपनी कई रचनाओं में नारी के आदर्श, कर्मशील, सहिष्णु और विविध रूपों के अनेक चित्र खींचे हैं। '

वह तोड़ती पत्थर' का जो उदाहरण ऊपर दिया गया है वह नारी के प्रति सहानुभूति का एक सशक्त स्वर उत्पन्न करता है। उसमें कवि की संवेदनीयता और व्यंग्य-क्षमता का पूर्ण परिचय मिल जाता है -

निराला ने सीधी-सादी ग्रामीण नारी की सौन्दर्य - छवि को भी उतारा है और अनाथ, असहाय, तुच्छ एवं निरीह 'विधवा' का भी चित्रांकन किया है। 'विधवा' कविता में वे सामाजिक रूढ़ियों और धर्माडम्बरों की खुली भर्त्सना करते हैं।

वह इष्टदेव के मन्दिर की पूजा-सी, 
वह दीप-शिखा-सी शान्त, भाव में लीन, 
वह क्रूर-काल-ताण्डव की स्मृति रेखा-सी 
वह टूट तरु की छटी-लता-सी दीन। 

निराला ने नारी को जो सम्मान दिया है वह किसी छायावादी कवि ने नहीं दिया। उन्होंने उसके अनेक रूपों का चित्रण किया है और हर - एक रूप में उसके एक नये वैशिष्ट्य का उद्घाटन किया है।

3. धार्मिक रूढ़ियों पर व्यंग्य और राजनीतिक व्यंग्य कविताएँ - निराला एक विद्रोही कवि थे। सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों और बन्धनों को तोड़कर चलने वाले स्वच्छन्दतावादी निराला ने हिन्दी-कविता की रूपरेखा ही बदल दी है। 

मानवीय मुक्ति के साथ ही वे कविता की मुक्ति के लिए भी संघर्ष करते रहे। उनका कहना था-' -"मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्मों के बन्धन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग होना है।” 

निराला ने आजीवन सामाजिक और धार्मिक विषमताओं से विद्रोह किया। धर्मान्धता के पीछे छिपी हुई अमानवीयता पर वे निर्मम होकर व्यंग्य करते रहे हैं।

विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल
शिव पर, दूर्वादल, तंदुल, तिल
लेकर झोली आये ऊपर 
देख कर चले तत्पर वानर ।
झोली से पुए निकाल लिए,
बढ़ते कपियों के हाथ दिये, 
देखा भी नहीं इधर फिर कर 
जिस ओर रहा भिक्षु इतर 
चिल्लाया किया दूर दानव 
बोला मैं- “धन्य श्रेष्ठ मानव"

निराला ने राजनीतिक गतिविधियों और राष्ट्र के सन्दर्भ में भी कई रचनाएँ की हैं। 'जागो फिर एक बार' और 'महाराज शिवाजी के नाम एक पत्र' उनकी राष्ट्रीय चेतना को प्रदर्शित करने वाली. रचनाएँ हैं। 

जीवन में निरन्तर संघर्ष करते रहने के बाद जब निराला ने राजनीति के क्षेत्र में आर्थिक ढाँचे पर प्रतिष्ठित नेतागीरी को देखा तो उनका विद्रोह कटु व्यंग्य बनकर फूट पड़ा -

मैं भी होता यदि राजपुत्र
कितने पेपर, सम्मानित कण्ठ से गाते मेरी कीर्ति अमर 
लक्षपति का यदि कुमार
होता मैं शिक्षा पाता अरब समुद्र पार
देश की नीति के मेरे पिता परम पण्डित
एकाधिकार रखने धन पर भी अविचल चित 
होते उग्रतर साम्यवादी, करते प्रचार।

इस प्रकार स्पष्ट है कि "निराला हिन्दी के उन विर कवियों में से हैं, जिन्होंने अपनी ही पहचान को बार-बार तोड़ा है इसलिए उनके काव्य संसार में पर्याप्त विविधता दिखाई देती है।

निराला का प्रकृति चित्रण - निराला के काव्य में प्रकृति को अग्रलिखित रूपों में चित्रित किया गया हैं - 

(1) आलम्बन रूप में प्रकृति का वर्णन - निराला ने प्रकृति पर किसी प्रकार की भावनाओं का आरोप न करके, उसका ज्यों का त्यों वर्णन किया है। ये वर्णन सहज, सुन्दर और स्वाभाविक हैं। श्रावण के काले-काले मेघों का यह वर्णन देखिए

लख ये काले-काले बादल, नील सिंधु में खिले कमल दल,
हरित ज्योति, चपला अति चंचल सौरभ के, रस के, 
अति घिर आये घन पावस में।

(2) उद्दीपन रूप में प्रकृति वर्णन - जब प्रकृति चित्रण भावनाओं का उद्दीपन करने के लिये किया जाता है तो वन प्रकृति का उद्दीपन रूप कहा जाता है। यथा“यमुना ! तेरा इन लहरों में किन अधरों की आकुल तान ? पथिक प्रिया-सी जाग रही है, उस अतीत के नीरव गान ।”

 (3) मानवीकरण के रूप में निराला की प्रकृति प्रायः मानसी रही है। उन्होंने 'यमुना के प्रति ' ‘संध्या सुंदरी', 'बसंत समीर', 'जूही की कली' आदि कविताओं में सूक्ष्म रेखाओं द्वारा, व्यापक चित्रपरी और सहज कला की सहायता से प्रकृति का मानवीकरण किया है एक उदाहरण प्रस्तुत है।

दिवसावसान की समय मेघमय आसमान से उतर रही है।
वह संध्या सुन्दरी परी - सी, धीरे-धीरे।
अलसता की-सी लता, किंत कोमलता की वह कली
सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाँह, छाँह-सी
अंबर पथ से चली।

(4) दार्शनिक रूप में प्रकृति वर्णन- प्रताप, कौन तम के पाट रे आदि गीतों में उनकी जिज्ञासा भावना सफलता के साथ अभिव्यक्त हुई है। यह जिज्ञासा एक बालक की जिज्ञासा न होकर एक दार्शनिक जिज्ञासा है। वे कहते हैं

बस अज्ञान की ओर इशारा कर चल देते हो, 
भर जाते हो उसके अंतर में तुम अपनी तान।

(5) रहस्यात्मक अनुभूति के रूप में प्रकृति - प्रकृति का चित्रण रहस्यात्मक अनुभूति के रूप में करना छायावादी कवियों की निजी विशेषता है। निराला इसके अपवाद नहीं है, देखिए - 

प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की, याद रहे वंचित गेह की, 
खोजता फिरता न पाता हुआ, मेरा हृदय हारा।

(6) वातावरण निर्माण हेतु प्रकृति वर्णन - इस दृष्टि से निराला को 'राम की शक्ति पूजा' में विशेष सफलता प्राप्त हुई है यथा

प्रशमित है वातावरण, नमित मुख सान्ध्य कमल
लक्ष्मण चिंता फल पीछे वानर-वीर सकल।

निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि निराला जी ने प्रायः सभी अन्य छायावादी कवियों की ही भाँति प्रकृति को विभिन्न रूपों में चित्रित किया है और इन विविध रूपों के चित्रण में निराला को पर्याप्त सफलता मिली है।

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