औरंगजेब की आखिरी रात का उद्देश्य

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एकांकी के शिल्प-विधान अर्थात् एकांकी के तत्वों की दृष्टि से भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों के विचारों में पर्याप्त अन्तर दिखाई देता है। भारतीय एकांकी शास्त्रियों ने एकांकी के निम्नलिखित तत्व स्वीकार किये हैं

  1. कथावस्तु
  2. कथोपकथन
  3. पात्र और चरित्र-चित्रण
  4. देशकाल का वातावरण
  5. शैली 
  6. उद्देश्य
  7. अभिनेयता

पाश्चात्य विद्वानों ने एकांकी के छः तत्व स्वीकार किये हैं

  1. कथावस्तु
  2. पात्र
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल
  5. शैली
  6. उद्देश्य
  7. अभिनय

पाश्चात्य विद्वानों के द्वारा निश्चित किये गये तत्वों का समन्वय कुछ अंशों में भारतीय नाट्य तत्वों में ही हो जाता है। वस्तु और पात्र दोनों समान रूप से स्वीकार किये गये हैं। कथोपकथन तथा देशकाल नामक तत्व भारतीय तत्व अभिनय के ही अन्तर्गत आ जाते हैं। 

अभिनय के अन्तर्गत क्रियाकलाप, वेश-भूषा आदि का विस्तार से विवेचन हुआ है। पाश्चात्य उद्देश्य और भारतीय तत्व रस में कोई विशेष अन्तर नहीं है। इसी प्रकार भारतीय तत्व प्रवृत्ति में पाश्चात्य तत्व शैली का समाहार हो जाता है।

उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में हम यही कहना चाहेंगे कि हमारे आधुनिक नाटककार पाश्चात्य -तत्वों को ही आधार मानकर नाटक लिख रहे हैं। ऐसी दशा में हम भी पाश्चात्य नाटक तत्वों के आधार पर ही डॉ. रामकुमार वर्मा लिखित एकांकी 'औरंगजेब की आखिरी रात' की समीक्षा कर रहे हैं। 

1. कथावस्तु - कथावस्तु एकांकी का एक ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है, जिस पर एकांकी का पूरा ताना-बाना तैयार होता है। यही कारण है कि नाटककार इसके लिए कुछ ऐसे तथ्य और घटनाओं का चुनाव करता है जिससे मूल-कथा सुसंगठित बनी रहे। इसी दृष्टि से जब हम डॉ. रामकुमार वर्मा कृत एकांकी औरंगजेब की आखिरी रात' का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि इस एकांकी की कथावस्तु ऐतिहासिक है। 

इसमें कुख्यात मुगल सम्राट आलमगीर औरंगजेब के पूर्वकृत कार्यों के लिए अपने जीवन के आखिरी दिन और अन्तिम समय में पश्चाताप को चित्रित किया गया है। यह सम्पूर्ण पश्चातापपूर्ण मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से ओत-प्रोत है। नाटक

डॉ. रामकुमार वर्मा कृत एकांकी औरंगजेब की आखिरी रात की कथावस्तु की जब हम समीक्षा करेंगे तो हम पायेंगे कि इसकी कथावस्तु एक ऐसी विशुद्ध कथावस्तु है, जिसमें ऐतिहासिकता और मनोवैज्ञानिकता का सुन्दर समन्वय और सम्मिश्रण हुआ है। 

दूसरे शब्दों में, डॉ. रामकुमार वर्मा लिखित एकांकी औरंगजेब की आखिरी रात' की कथावस्तु इतिहास और मनोविज्ञान का रोचक और आकर्षक संगम है। इसमें ज्ञान और जिज्ञासा की हृदयस्पर्शी तरंगें बार-बार सरसता के झोंकों से अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है। 

इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि डॉ. रामकुमार वर्मा लिखित 'औरंगजेब की आखिरी रात' कथावस्तु की दृष्टि से एक सफल और सार्थक एकांकी है।

2. पात्र और चरित्र-चित्रण - पात्र और चरित्र-चित्रण 'एकांकी' के प्रमुख तत्वों में से एक आवश्यक तत्व है। इससे कथानक या कथावस्तु का न केवल प्रसार होता है, अपितु इससे कथानक या कथावस्तु की गतिशीलता का पूरा परिचय भी मिलता है। इस प्रकार पात्र और चरित्र-चित्रण से एकांकी के पात्रों के स्वरूप, दशा और स्थिति का ठीक-ठीक पता चलता है। इससे एकांकीकार का मन्तव्य स्पष्ट हो जाता है।

पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से जब हम डॉ. रामकुमार वर्मा लिखित एकांकी औरंगजेब की आखिरी रात का मनन करते हैं, तो हम यह पाते हैं कि इस एकांकी की गणना एक सफल एकांकी के रूप में की जा सकती है। 

इसका मुख्य कारण है कि इसमें न तो पात्रों की भीड़ है और न ही चरित्र-चित्रण का उबाऊपन ही है। इसमें तो कुल पाँच ही पात्र हैं - मुगल सम्राट आलमगीर औरंगजेब, उसकी सुपुत्री जीनत उन्नीसा बेगम, सिपाही करीम, हकीम और कातिब हैं। 

इसमें मुगल सम्राट आलमगीर ही सर्वप्रमुख पुरुष पात्र है। जीनत उन्नीसा बेगम प्रमुख स्त्री पात्र है। इन दोनों की ही प्रधान भूमिका इस एकांकी में है। औरंगजेब का सम्पूर्ण चरित्रांकन ऐतिहासिकता के वास्तविक धरातल पर प्रस्तुत हुआ है। 

इसके सम्पूर्ण चरित्रांकन को मनोवैज्ञानिक चमकीले रंगों से रंगकर रोचक और आकर्षक बना कर एकांकीकार ने उसे सर्वथा नये रूप में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। जीनत उन्नीसा बेगम की चारित्रिक विशेषताएँ स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत हुई हैं, शेष पात्रों का संक्षिप्त चरित्र-चित्रण अपेक्षित रूप में है।

3. कथोपकथन या संवाद की योजना - कथोपकथन या संवाद की योजना एक ऐसा अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण तत्व है, जिससे एकांकी का मंचन या पठन-पाठन रुचिप्रद और भावप्रद बन जाता है। इस दृष्टि से प्रस्तुत एकांकी एक सार्थक और सफल एकांकी सिद्ध होता है।

प्रस्तुत एकांकी में प्रस्तुत हुए कथोपकथन या संवाद अत्यधिक मर्मस्पर्शी और भावस्पर्शी हैं। इसलिए पाठक और दर्शक की अभिरुचि इसके प्रति विशेष रूप से हो जाती है। इस एकांकी के संगठनों और कथोपकथनों की सार्थकता और प्रभावमयता के प्रतीक कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं

आलम - हजारों सतनामियों को कत्ल किया दारा, शुजा, मुराद को तख्ते-ताऊस का हक नहीं दिया और बाप को सात बरस तक लम्बे सात बरस तक।

जीनत - लेकिन आलम पनाह ! अगर गौर से देखा जाये, तो शहंशाहे शाहजहाँ को नजरबन्द करना गलत नहीं कहा जा सकता। अपनी पीरी में वे अपनी आँखों से अपने बेटों का मजार देखते। क्या उन्हें तकलीफ नहीं होती ? आपने उन्हें उस तकलीफ से बचा लिया।

आलम लेकिन उस तकलीफ को पैदा करने का जिम्मा किसका है ? हमारा। हमने ही लाहौर में दारा की कब्र बनवाई। हमने ही आगरे में मुहम्मद को भेजकर अब्बाजान का महल कैद खाने में तब्दील कराया उस दास्तान को तुम जानती हो ?

4. देशकाल या वातावरण - देशकाल या वातावरण का सम्बन्ध एकांकी के सफल और सार्थक तत्वों में से एक है। देशकाल या वातावरण नामक तत्व से नाटक या एकांकी का वर्णित कथानक या कथावस्तु प्रभावित होती है। इस पर नाटक या एकांकी की सफलता निर्भर होती है। 

इस दृष्टि से जब हम डॉ. रामकुमार लिखित एकांकी औरंगजेब की आखिरी रात का मूल्यांकन करते हैं, तो हम यह पाते हैं कि यह एकांकी एक सार्थक और सफल एकांकी है। ऐसा इसलिए भी कि इसमें संकलनत्रय अर्थात् स्थान, काल और कार्य की एकता पर विशेष बल देते हुए इसका पूरा-पूरा निर्वाह किया गया है। 

इसके लिए एकांकीकार ने इस एकांकी के आरम्भ में ही पर्याप्त ध्यान दिया है। इससे इस एकांकी का देशकाल या वातावरण बड़ा ही विश्वसनीय और सजीव रूप में आ गया है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्रस्तुत एकांकी देशकाल या वातावरण की दृष्टि से एक श्रेष्ठतम एकांकी है। 

5. भाषा-शैली - शैली विधान एकांकी का एक ऐसा तात्विक विधान है जिससे एकांकी की अभिव्यक्ति बहुत अधिक प्रभावित होती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत एकांकी 'औरंगजेब की आखिरी रात' एक उपयुक्त एकांकी ठहरता है। इसका शैली विधान अत्यधिक भावात्मक और वर्णनात्मक है। 

इसमें बुत हुई चित्रोषमता विशेष अधिक प्रभावशाली रूप में है। फलतः भाव और अभिप्राय एकदम सहज र सरल रूप में सामने आ जाते हैं। इससे वर्ण्य-विषय के प्रति तल्लीनता और तन्मयता बनी रहती है। यह तल्लीनता और तन्मयता लेखकीय साद्दश्यता को बोधगम्य बनाने में: बहुत सहायक हुई है। प्रस्तुत एकांकी के शैली-विधान की श्रेष्ठता और उत्कृष्टता की एक वानगी नीचे दी जाती हैं

आलम - और उस अदल में हमने अपनी मुराद पूरी की है। मुरीद और हमारे मुरादबख्श ने सामूगढ़ की लड़ाई में हमारे कहने पर दारा से लोहा ने लिया। 

कितनी हैरतअंगेज जंग थी, वह ! राजा रामसिंह ने तलवार का ऐसा हाथ चलाया कि हम मय हाथी के जमींदोज हो जाते, लेकिन मुरादबख्श मुरादबख्श ने अपनी ढाल पर रोक, राजा रामसिंह पर ऐसा वार किया कि वह हाथी के पैरों पर आ गिरा उसका केशरिया बाना खून से लथपथ होकर जमीन पर फैल गया और बस इस सबका बदला मुरादबख्श को क्या मिला। ओह. पानी!

6. उद्देश्य - सोद्देश्यता किसी भी रचना या कृति का सर्वोपरि और सर्वोच्च प्रधान तत्व है। इससे ही किसी कृति या रचना को अपेक्षित महत्त्व और सम्मान प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में उद्देश्यहीन रचना या कृति किसी प्रकार से न तो उपयोगी हो सकती है और न महत्वपूर्ण ही। 

सोद्देश्यता की दृष्टि से आलोच्य एकांकी औरंगजेब की आखिरी रात एक सफल और उपयोगी एकांकी है। सम्पादक के शब्दों से सहमत होते हुए हम यह कह सकते हैं।

औरंगजेब मुगल साम्राज्य के दीपक के बुझने से पूर्व का अन्तिम उद्भास था। इस रूपक में इस अस्त होते हुए प्रकाश की समस्त किरणों को एकत्रित किया गया है। मनोविज्ञान का एकमात्र आधार औरंगजेब के द्वारा लिखाये गये वे अन्तिम पत्र हैं, जो आज भी इतिहास की अमूल्य निधि हैं। ऐतिहासिक तथ्य, परिस्थिति, वातावरण और तेजस्वी व्यक्तित्व में पोषित मनोविज्ञान ने जो दृश्य निर्मित किया है, वह आखिरी रात का दृश्य होकर भी सदैव जीवन्त रहेगा।

7. अभिनेयता - अभिनय एकांकी का अन्तिम तत्व होते हुए भी एक अनन्य तत्व है। ऐसा इसलिए कि इस पर ही एकांकी की लोकप्रियता और सार्थकता अधिक से अधिक रूप से निर्भर करती है। इस आधार पर यह कहना किसी प्रकार से अनुपयुक्त और अनुचित नहीं होगा कि एकांकी के सभी अन्य तत्वों के योगदान से प्रस्तुत हुआ। 

अभिनेयता एकांकी को सार्थकता के निकट ला देती है। इस दृष्टि से आलोच्य कृति औरंगजेब की आखिरी रात एक सफल और सार्थक एकांकी है। इसके अभिनय का सम्पूर्ण कलेवर बड़ा ही अपेक्षित और अनुकूल है। संकलन-त्रय को इस दिशा में सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करके एकांकीकार ने अपनी प्रतिभा और अनुभव की श्रेष्ठता को सिद्ध कर मनोवैज्ञानिक दिया है।

निष्कर्ष - औरंगजेब की आखरी रात डॉ. रामकुमार वर्मा का सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक व के चरित्र के नवीन एवं मार्मिक पहलू का उद्घाटन किया गया है।

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