महादेवी वर्मा का प्रकृति चित्रण में
प्रकृति चित्रण-अन्य रहस्यवादी और प्रयावादी कवियों के समान महादेवी जी ने भी अपने काला प्रकृति के सुंदर चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्हें प्रकृति में अपने प्रिय का आभास मिलता है और उससे उनके भावों को चेतना प्राप्त होती है
वे अपने प्रिय को रिझाने के लिए प्रकृति के उपकरणों से अपना श्रृंगार करती हैं - शशि के दर्पण में देख-देख, मैंने सुलझाए तिमिर केश । गुथे चुन तारक पारिजात, अवगुंठन कर किरणें अशेष।
छायावाद और प्रकृति का अन्योन्याश्रित संबंध रहा है। महादेवी जी के अनुसार- 'प्रयावाद की प्रकृति, घट-कूप आदि से भरे जल की एकरूपता के समान अनेक रूपों से प्रकट एक महाप्राण बन गई स्वयं चित्रकार होने के कारण उन्होंने प्रकृति के अनेक भव्य तया आकर्षक चित्र साकार किए हैं। महादेवी जी की कविता के दो कोण हैं- एक तो उन्होंने चेतनामयी प्रकृति का स्वतंत्र विश्लेषण किया
'कनक से दिन मोती सी रात, सुनहली सांझ गुलाबी प्रात मिटाता रंगता बारंबार कौन जग का वह चित्राधार?'
अथवा 'तारकमय नव बेणी बंधन शीश फूल पर शशि की नूतन रश्मि वलय सित अवगुंठन धीरे-धीरे उतर क्षितिज से आ वसंत रजनी।
कवयित्री को अनंत के दर्शन के लिए क्षितिज के दूसरे छोर को देखने की जिज्ञासा है 'तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस ओर क्या है ? जा रहे जिस पथ से युगलकल्प छोर क्या है ?
" उन्होंने समस्त भावनाओं और अनुभूतियों की अभिव्यक्ति प्रकृति के माध्यम से की है। साध्यगीत' में वे अपने जीवन की तुलना सांध्य गगन से करती हैं 'प्रिय सांध्य गगन मेरा जीवन यह क्षितिज बना धुंधला विराग नव अरुण अरुण मेरा सुहाग छया-सी काया वीतराग'।
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