परिवर्तन पंत जी द्वारा उचित एक लम्बी कविता है जो मूलतः 'पल्लव' नामक संकलन में संकलित है। परिवर्तन कविता का मूल विषय दार्शनिक है किन्तु पंतजी ने इसे काव्य की सरलता से युक्त कर दिया है।
कवि ने परिवर्तन को जीवन का शाश्वत सत्य माना है। यहाँ सब कुछ परिवर्तनशील है। पृथ्वी का वह वैभव अब कहा चला गया। यहाँ सब कुछ मिथ्या है। संचार की अचिरता को देखकर हवा ठण्डी सांसे भरती है। आकाश ओस के आँसू गिराता है।
अर्थात् संसार में दुःख व सुख एक-दूसरे के पहलू हैं यहाँ जीवन में दोनों आते- जाते रहते हैं। बिना आंसू के वेदना के जीवन भार बन जाता है। संसार में दीनता दुर्बलता का अस्तित्व है, इसलिए दया, क्षमा और प्यार का यहाँ महत्व माना जाता है। संसार में दुःख और सुख चक्र के समान घूमते फिरते हैं। आज जो दुःख बना हुआ है कल वही प्रसन्नता में परिणत हो जायेगा
जीवन का अर्थ है जगत् का निरन्तर विकसित होना और मृत्यु का अर्थ है गति तथा क्रम का नष्ट हो जाना। कहने का भाव यह है कि गति जीवन है और स्थिरता मृत्यु।
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