चोरी और प्रायश्चित' शीर्षक निबंध गाँधी जी द्वारा लिखित वह महत्वपूर्ण अनुभव का सार हैं जीवन में घटित घटनाओं का भले ही लघु रूप है किन्तु इन घटनाओं ने उनके भविष्य की दिशा को भी प्रशस्त किया है। 'चोरी और प्रायश्चित' निबंध की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
1. दुर्गुणों से दूरी
इस निबंध में चोरी करने के पीछे की इच्छाओं और उनकी पूर्ति के माध्यम से यह प्रमाणित होता है कि “यदि मनुष्य दुर्गुणों का शिकार हो जाए तो उसका मानसिक पतन होने लगता है।
2. मानसिक दुर्बलता
चोरी करने की लत मानसिक दुर्बलता का जनक बनने लगती है। अपनी इच्छाओं की पूर्णता के लिए सही-गलत अथवा उचित-अनुचित का अन्तर भी गौण हो जाता है।
3. क्षणिक सुख और दीर्घ मानसिक तनाव
गाँधी जी ने अपने संस्मरणात्मक निबंध में उन तथ्यों का उल्लेख किया है जिसमें वे क्षणिक सुख के लोभ में फँस गये किन्तु उसकी पूर्ति की लालसा उन्हें आत्महत्या जैसे जघन्य विचारों की ओर ले गयी। इस प्रकार उनकी विवेक शक्ति भी क्षीण होने लगी थी।
4. प्रायश्चित एक पवित्र भावना है
किन्हीं मानसिक अस्वस्थता के कारण यदि मनुष्य गलत मार्ग में चलने लगे और उसका विवेक जागृत हो जावे तो फिर प्रायश्चित एक श्रेष्ठ आचरण है। प्रायश्चित करने की भावना उतनी ही पवित्र मानी जाती है जितनी गंगाजल क्योंकि इसी भाव से प्रेरित होकर मन व हृदय पवित्र कर्म करने को प्रेरित होने लगते हैं।
5. साहस का संचार
प्रस्तुत निबंध की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इससे व्यक्ति के मन में प्रायश्चित की भावना जागृत होने पर वह साहसपूर्वक अपने अपराधों का न केवल क्षमाप्रार्थी हो जाता है अपितु अपराध-स्वीकृति की स्थिति उसे किसी भी संघर्ष का सामना करने को प्रेरित करता है।
6. सत्य का दामन न छोड़ना
इसमें कोई संशय नहीं कि गाँधी जी सत्य की आराधना ईश्वर की भाँति ही करते थे। सत्य और ईश्वर में अभेद है। प्रायश्चित करने की चाह सत्य कहने की ओर प्रथम प्रस्थान कहलाती हैं।
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