गरीबी से तात्पर्य जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति न होने से है । इस न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएँ शामिल होती हैं। निर्धनता शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है - 1. सापेक्ष निर्धनता 2. निरपेक्ष निर्धनता।
सापेक्ष गरीबी
सापेक्ष गरीबी का अर्थ आय की असमानताओं से होता है। जब दो देशों की प्रति व्यक्ति की तुलना करते हैं तो उनमें बहुत अन्तर पाये जाते हैं। इन अन्तरों के आधार पर ही हम गरीब व अमीर देश की तुलना करते हैं। यह गरीबी सापेक्ष होती है।
निरपेक्ष गरीबी
एक व्यक्ति की निरपेक्ष गरीबी का अर्थ यह है कि उसकी आय का उपभोग व्यय इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण-पोषण स्तर के नीचे स्तर पर रह रहा है। अर्थात् उसकी आधारभूत आवश्यकताओं, जैसे—खाना, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सहायता आदि को जुटा पाने में उसकी असमर्थता से है । इसी गरीबी को निरपेक्ष गरीबी कहते हैं ।
भारत में इसी प्रकार की निरपेक्ष गरीबी पायी जाती है । जो परिवार इन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेते हैं वे गरीब कहलाते हैं लेकिन वे परिवार जो कि अपनी इस मूल आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं, तो ऐसे परिवार को गरीबी की रेखा से नीचे जीवन बिता रहे कहा जाता है।
गरीबी की परिभाषा
भारत में गरीबी की परिभाषा पौष्टिक आहार के आधार पर दी गयी है। भारतीय योजना आयोग के अनुसार यदि गाँव में किसी व्यक्ति को 2400 कैलोरीज प्रतिदिन व शहर में 2100 कैलोरीज प्रतिदिन नहीं मिलता है तो यह माना जायेगा कि वह व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे जीवन बिता रहा है।
इस पौष्टिक आहार को यदि रुपयों में परिवर्तित कर दिया जाय तो 107 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह गाँवों में व 122 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह शहरों में आता है। भारत में जिन व्यक्तियों का उपयोग इस सीमा से कम है उन्हें गरीबी की रेखा से नीचे माना जाता है। भारत की समस्त जनसंख्या का 36% भाग गरीबी की रेखा से नीचे रह रहा है। लेकिन ‘World Development Report' 1999-2000 के अनुसार भारत में 47% जनसंख्या गरीब है।
गरीबी का दुष्चक्र - प्रो. नर्कसे के अनुसार, “निर्धनता के दुष्चक्र से अर्थ नक्षत्रमण्डल के समान शक्तियों का इस प्रकार घूमना है कि वे परस्पर क्रिया-प्रक्रिया करती हुई निर्धन देश को निर्धनता की अवस्था में बनाये रखती हैं।"
जिस प्रकार एक निर्धन व्यक्ति को भोजन नहीं मिलता तो वह निर्बल होता है जिससे उसकी कार्यकुशलता कम होती है, अत: उसकी आय कम होती है। इस प्रकार एक निर्धन व्यक्ति निर्धन ही बना रहता है और यह क्रम चलता रहता है ।
इसी प्रकार निर्धन या अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाएँ भी निर्धन या अल्पविकसित बनी रहती हैं क्योंकि अल्पविकसित होने से आय का स्तर निम्न होता है जिससे बचत कम होती है, अतः निवेश कम होने के कारण उत्पादन कम होता है फलस्वरूप आय कम होती है और यह क्रम चलता रहता है।
गरीबी के दुष्चक्र के कारण
गरीबी के दुष्चक्र के कारणों के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अनेक मत दिने हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि इस दुष्चक्र का कारण पूँजी निर्माण की कमी है, जबकि अन्य का मानना है कि इसका कारण छोटे आकार का बाजार होना है।
सामान्यतः अल्पविकसित देशों में साधनों व पूँजी का अभाव रहता है जिससे प्रति व्यक्ति उत्पादकता कम रहती है फलस्वरूप देश में वास्तविक है आय निम्न होती है, अत: बचत एवं माँग भी कम होती है जिससे विनियोग दर कम रहती है, अतः साधनों का उचित उपयोग नहीं हो पाता है परिणामस्वरूप उत्पादन न बढ़ने से न तो उत्पादकता बढ़ती है और न ही प्रति व्यक्ति आय। अतः गरीबी का कुचक्र चलता रहता है।
प्रो. नर्कसे ने आर्थिक कुचक्र की माँग एवं पूर्ति पक्ष की दृष्टि से इसे निम्न प्रकार समझाया है -
1. पूँजी का माँग पक्ष - लोगों को निम्न आय होने के कारण उनकी क्रय शक्ति कम हो जाती है जिससे विनियोग की मात्रा कम हो जाती है परिणामस्वरूप उत्पादन में पूँजी का उपयोग कम होता है जिससे उत्पादकता निम्न होकर पुनः निम्न आय की स्थिति में आ जाती है।
2. पूँजी का पूर्ति पक्ष - निम्न आय होने के कारण बचत करने की क्षमता कम हो जाती है जिससे पूँजी निर्माण कम होता है, इससे उत्पादकता भी कम हो जाती है।
3. अर्थव्यवस्था का पिछड़ापन - अल्पविकसित देश प्रायः पिछड़े होते हैं, क्योंकि आय की कमी के कारण यहाँ अशिक्षा का बोलबाला होता है, उनका स्वास्थ्य खराब होता है, उनकी कार्यकुशलता भी कम होती है। फलस्वरूप वहाँ उत्पादकता कम होती है। अतः अर्थव्यवस्था निर्धन ही बनी रहती है।
गरीबी के समाधान
गरीबी को निम्नांकित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है
1. बचत में वृद्धि तथा उसका उत्पादक कार्यों में निवेश
गरीबी के दुष्चक्र को मिटाने के लिए आवश्यक है कि बचतों में वृद्धि की जाय तथा उसका उत्पादक कार्यों में विनियोग किया जाय।
बचतों को बढ़ाने के लिए अनावश्यक व्यय को कम किया जाय । सरकार को भी ऐच्छिक बचतों पर जोर देना चाहिए तथा राजकोषीय नीति में परिवर्तन कर बचतों को बढ़ावा दिया जाय। इस के लिए अनिवार्य बचत योजनाओं को अपनाया जा सकता है।
गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए बचत करना ही आवश्यक नहीं हैं बल्कि बचत का उचित निवेश होना भी आवश्यक है। इसके लिए अल्पकालीन व दीर्घकालीन योजनाएँ बनायी जायें तथा उनमें इस प्रकार का समन्वय किया जाय ताकि उनसे अधिकाधिक लाभ : राप्त हो सके।
2. बाजार का विस्तार
गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए बाजारों का विस्तार किया जाय ताकि वस्तु की माँग बढ़े व निवेश करने वालों को प्रेरणा मिल सके। इसके लिए योजनात्मक विकास की नीति अपनाई जाए एवं सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाय जिससे मुद्रा की पूर्ति बढ़ सके तथा मौद्रिक आय व बाजारों का विस्तार हो सके।
3. पिछड़ेपन में सुधार
अल्पविकसित देशों को अपनी निर्धनता को मिटाने के लिए अपना पिछड़ापन दूर करना आवश्यक है। इसके लिए इन देशों में शिक्षा का प्रसार, तकनीकी ज्ञान में वृद्धि, प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार, स्वास्थ्य में सुधार, चिकित्सा सुविधाओं का विस्ता र, परिवहन व संचार साधनों का विकास किया जाय । तभी मानव शक्ति की कुशलता बढ़ेगी और वह अधिक आय अर्जित करने योग्य बन सकेगी।
भारत में गरीबी के कारण
भारत में पायी जाने वा ली गरीबी का कोई एक कारण नहीं है बल्कि अनेक कारण हैं। इन कारणों को हम निम्न तीन रूपों में व्यक्त कर सकते हैं -
1. आर्थिक कारण
भारत में गरीबी का मुख्य कारण इसका अल्पविकसित होना है। हम अभी तक प्रकृति द्वारा प्रदान किये गये साधनों का उचित उपयोग नहीं कर पाये हैं। हमारे अधिकांश खनिज, शक्ति, जल साधन या तो बिना उपयोग के रह गये हैं या उनका उपयोग बहुत कम मात्रा में हुआ है।
हमारी कृषि आज भी पुरानी तकनीक से हो रही है । उद्योग भी कम उन्नत हैं, साहसियों की कमी है, वित्तीय संस्थाओं का अभाव है फलस्वरूप औद्योगिक प्रगति धीमी है। जनसंख्या का अत्यधिक होना व उसमें वृद्धि होते रहना भी गरीबी का एक मुख्य कारण बना हुआ है।
2. सामाजिक कारण
भारत की कुछ सामाजिक परिस्थितियाँ, जैसे - जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रणाली,उत्तराधिकार नियम, अशिक्षा, स्वास्थ्य आदि भी गरीबी बना ये रखने में योगदान दे रहे हैं। भारतीय युवकों में साहस एवं सम्पन्नता का अभाव भी गरीबी का एक कारण है।
3. राजनैतिक कारण
ब्रिटिश काल में भारत का उपयोग उसके हित के विरुद्ध किया गया है। वर्तमान में भी राजनैतिक नेताओं की कार्यप्रणाली अपने स्वयं के हित की है। राष्ट्र हित व समाज हित तो केवल कहने मात्र के लिए है। प्रशासनिक भ्रष्टाचार व अकुशलता निरन्तर बढ़ती जा रही है। आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण भी गरीबी बनाये रखने में योगदान दे रहा है।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
नियोजन काल में सामाजिक न्याय की बात निरन्तर कही गयी है लेकिन इस सम्बन्ध में कोई भी अधिक प्रगति नहीं हुई है। छठवीं पंचवर्षीय योजना में तो यह स्वीकार भी किया गया है कि यहाँ लगभग 50% जनसंख्या काफी समय से गरीबी की रेखा से नीचे रह रही है।
इस योजना के 10 प्रमुख उद्देश्यों में से एक गरीबी व बेरोजगारी के भार को कम करना भी था। सातवीं पंचवर्षीय योजना में भी गरीबी उन्मूलन की बात कही गयी है, जबकि आठवीं पंचवर्षीय योजना में इसे प्रमुख स्थान दिया गया। नवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन की दृष्टि से कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।
योजनाओं से गरीबी उन्मूलन में कुछ प्रगति अवश्य हुई है। गाँवों में कृषि श्रमिकों को अब अधिक मजदूरी दी जा रही है। छोटे व सीमान्त किसानों को भी अधिक सुविधाएँ दी जा रही हैं। छोटे-छोटे उद्योगपति अब बड़े बनने लगे हैं। सरकार ने गरीबी उन्मूलन के लिए अनेक योजनाएँ चलाई हैं ।
भारत में गरीबी निवारण के उपाय
भारत में से गरीबी हटाने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं -
1. आर्थिक विकास में तेजी
भारत से गरीबी हटाने के लिए हमें इसके आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना होगा जिससे विकास की गति बढ़ेगी और रोजगार सुविधाओं में भी वृद्धि होगी। कृषि, लघु व कुटीर उद्योगों को भी अपना विकास करने का अधिक से अधिक अवसर दिया जाय। इससे भी विकास की गति बढ़ेगी और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
2. ग्रामीण सार्वजनिक निर्माण
गाँवों में सार्वजनिक निर्माण कार्य तेजी से शुरू किये जायें, जैसे—सड़कें, नहरें, कुएँ, ग्रामीण मकान, बिजली आदि के निर्माण कार्य प्रारम्भ किये जा सकते हैं। इससे ग्रामीण बेरोजगारी में कमी होगी व गरीबी को कम करने में सहायता मिलेगी।
3. ग्रामीण औद्योगीकरण
भारत में ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी सबसे अधिक पायी जाती है, अतः गरीबी भी वहाँ अधिक होती है। इसके निवारण के लिए गाँव में औद्योगीकरण किया जाय, छोटे-छोटे कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित किये जाएँ जिनमें अधिक रोजगार मिलने की सम्भावनाएँ हों। इससे न तो अति भीड़, परिवहन, मकान आदि की समस्या उत्पन्न होगी और न औद्योगिक उभशान्ति।
4. कृषि विकास व भूमि सुधार
कृषि का विकास किया जाय, सिंचाई सुविधा को प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराया जाय। उत्तम बीज, रासार्या नक खाद, कीटनाशक दवाइयाँ उपलब्ध कराई जायें। भूमि कानून, अधिकतम जोत कानून आदि को प्रभावकारी ढंग से लागू किया जाय। इससे भूमिहीन श्रमिकों को रोजगार सुविधाएँ मिल सकेंगी व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी।
5. सामाजिक सेवाएँ व सुरक्षा
सामाजिव सेवाएँ, जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन आदि का विस्तार किया जाय । श्रमिकों व आम जनता के लिए सामाजिक सुरक्षा सेवाओं का विस्तार किया जाय। गरीबों को अपना मकान बनाने की सुविधा देने के लिए सहायता व अनुदान दिया जाय। ग्रामीण क्षेत्रों में उचित मूल्य की दुकानों की संख्या बढ़ायी जाय।
6. जनसंख्या नियन्त्रण
जनसंख्या नियन्त्रण के बिना गरीबी को कम नहीं किया जा सकता। अतः जनसंख्या को हर कीमत पर नियन्त्रित करना होगा। इसके लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू किया जाय। अन्त में हम कह सकते हैं कि भारत में गरीबी कम करने का कार्य एक चुनौती है जिसे स्वीकार करने के लिए भारी मात्रा में प्रयास करने की आवश्यकता है जिससे रोजगार सुविधाएँ बढ़ सकें व सामाजिक सेवाओं व सुरक्षा का विकास हो सके।
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