एक दिन एकांकी का सारांश लिखिए

श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र - हिन्दी साहित्य के प्रमुख नाटककार श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनकी अनेक कृतियाँ पाठकों और दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं। उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध एकांकी "एक दिन" सामाजिक मूल्यों, परंपराओं और नवीन विचारधाराओं के बीच टकराव को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है।

एक दिन एकांकी का सारांश

इस एकांकी की कथा एक पारंपरिक एवं संस्कारवादी पिता राजनाथ, उनके आधुनिक विचारों वाले पुत्र मोहन और पुत्री शीला के इर्द-गिर्द घूमती है।

राजनाथ एक 55 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति हैं, जो अपने जीवन में कर्मठ रहे हैं और कर्मशीलता ही उनके अच्छे स्वास्थ्य का कारण है। वे अपने परिवार के मुखिया हैं और उनके परिवार में पुत्र मोहन और पुत्री शीला हैं। इसके अतिरिक्त, इस एकांकी में एक प्रमुख पात्र मोहन का मित्र निरंजन भी है।

संस्कृति और विचारों का टकराव

राजनाथ सामंतवादी विचारधारा के व्यक्ति हैं, जबकि उनके पुत्र और पुत्री नवीन युग की सोच के समर्थक हैं। मोहन भाग्य की बजाय परिस्थितियों पर विश्वास करता है। वहीं, शीला विवाह योग्य युवती है। मोहन अपनी बहन के विवाह हेतु अपने मित्र निरंजन को गाँव में बुलाता है, जिससे शीला का परिचय कराया जा सके।

परंतु, जब निरंजन राजनाथ के घर आता है, तो राजनाथ इस पर अत्यधिक क्रोधित हो जाते हैं और मोहन से कहते हैं कि पहले उनसे राय ली जानी चाहिए थी। मोहन कहता है कि वह जानता था कि उनके पिता इस तरह लड़की दिखाने की परंपरा को स्वीकार नहीं करेंगे।

राजनाथ इससे और अधिक क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि जो व्यक्ति विवाह पूर्व लड़की को देखना चाहता है, वह असभ्य है। मोहन निरंजन की संपन्नता का उल्लेख करते हुए कहता है कि शीला वहाँ रानी बनकर रहेगी। परंतु, राजनाथ मोहन को समझाते हैं कि सम्मान और संस्कार किसी भी संपत्ति से अधिक मूल्यवान होते हैं।

संघर्ष और समाधान

राजनाथ अपनी बीती यादों को मोहन को बताते हैं, जिससे मोहन को एहसास होता है कि परिवार की मर्यादा और संस्कारों से समझौता नहीं किया जा सकता। वह कहता है कि अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है और निरंजन वापस लौट सकता है। शीला उसी घर में जाएगी, जो उनके पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों से मेल खाएगा। यह सुनकर राजनाथ भावुक हो जाते हैं।

शीला अपने पिता को रोते हुए देखती है और उन्हें समझाती है कि उनके दुःख से वह भी दुखी होती है। वह कहती है कि उसका विवाह वहीं होगा, जहाँ उसे विश्वास और सम्मान मिलेगा, क्योंकि यही सबसे बड़ा धन है।

इसी बीच निरंजन जाने की तैयारी करता है। शीला उसे रोकते हुए कहती है कि वह उससे अकेले में बात करना चाहता था, लेकिन अब यह अवसर नहीं है। निरंजन शीला पर कटाक्ष करता है, पर शीला दृढ़ता से जवाब देती है कि कोई भी लड़की असम्मान के वातावरण में नहीं रहना चाहेगी। इस प्रकार दोनों के बीच संवाद चलता रहता है।

समापन

अंत में शीला इस परंपरागत सोच को उजागर करती है कि विवाह के निर्णय हमेशा पुरुषों के हाथों में ही रहे हैं। परंतु अब समय बदल रहा है, नई सभ्यता और नए विचार जन्म ले रहे हैं। निरंजन इस विचार पर सहमति प्रकट करता है कि संभवतः यह पूर्व जन्म का कोई संबंध है। दोनों एक-दूसरे की ओर देखते हैं और इसी के साथ यह एकांकी समाप्त हो जाती है।

निष्कर्ष

एक दिन एकांकी पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों के संघर्ष को दर्शाती है। यह एकांकी भारतीय समाज में विवाह संबंधी परंपराओं और बदलती मानसिकता का प्रभावशाली चित्रण प्रस्तुत करती है। श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र की यह कृति पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देती है कि संस्कार और आधुनिकता में संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।

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