पृथ्वी के लगभग 55 प्रतिशत भाग पर मैदानों का विस्तार पाया जाता है। मैदान शब्द से आशय समतल भू-भाग से है। मैदान मानव और जीव जन्तु के लिए महत्वपूर्ण हैं। अधिकतर जनसंख्या मैदानों मे निवास करते हैं। क्योंकि यहा फसलों की अधिक पैदावार होती हैं।
आपने खेल के मदानों को देखा ही होगा जो सपाट होते है। इसी प्रकार प्राकृतिक रूप से विशाल मैदान पाए जाते हैं। जो हजारों किलोमीटर तक फैले होते हैं। जहाँ छोटे घास उगे होते हैं।
मैदान किसे कहते है
मैदान हमारी धरती के 50 प्रतिशत से अधिक भाग पर फैले हुए हैं। मैदान सामान्यतः समुद्र तल से 180 मीटर की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। कही कही पर यह 300 मीटर ऊँचे भी हो सकते हैं। अतः एक समतल क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सामान्यतः कम होती है। उस विस्तृत भूखंड को मैदान कहते हैं।
परिभाषा
- मैदान भू-तल पर प्रायः समतल एवं सपाट भाग होते हैं, किन्तु कभी-कभी ये लहरदार भी हो सकते हैं।
- समुद्र तल से साधारण ऊँचाई वाले समतल क्षेत्रों को जिनके ढाल न्यूनतम होते हैं, मैदान कहा जाता है।
- समुद्र तल से 150 मीटर या कम ऊँचे समतल भू-भाग को मैदान कहा जा सकता है।
कोई भी भू-भाग मैदान तभी कहा जा सकता है जब उस प्रदेश की स्थानीय भूमि का ऊँचा या नीचापन कुल 100 फीट से अधिक न हो।
विश्व के प्रमुख घास के मैदान
- सवाना घास मैदान – पूर्वी अफ्रीका, वेनेजुएला
- पम्पास घास का मैदान – अर्जेंटीना, उरुग्वे, ब्राजील
- स्टेपी घास का मैदान – पश्चिम रूस, मध्य एशिया
- डाउन्स घास का मैदान – आस्ट्रेलिया
- प्रेयरी घास का मैदान – उत्तरी अमेरिका
सवाना एक तरह का मिश्रित घास का मैदान है। इसमें दूर-दूर तक फैले पेड़ हैं जो बंद छतरी नहीं बनाते हैं, जिससे सूरज की रोशनी ज़मीन तक पहुँचती है और घास की निरंतर वृद्धि होती है। पूर्वी अफ्रीकी सवाना अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाने जाने वाले ये सवाना शेर, हाथी और ज़ेबरा जैसे प्रतिष्ठित वन्यजीवों का घर हैं। सेरेनगेटी और मसाई मारा इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं, जहाँ विशाल घास के मैदान और मौसमी प्रवास हैं।
वेनेजुएला सवाना लानोस के नाम से जाने जाने वाले ये घास के मैदान वेनेजुएला और कोलंबिया तक फैले हुए हैं। कैपीबारा, एनाकोंडा और कई पक्षी प्रजातियों सहित विविध वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण आवास हैं।
पम्पास घास का मैदान
पम्पास मैदान विशाल, उपजाऊ घास के मैदान हैं जो मुख्य रूप से अर्जेंटीना में स्थित हैं, जो उरुग्वे और दक्षिणी ब्राजील तक फैले हुए हैं। वे अपनी उपजाऊ मिट्टी के लिए जाने जाते हैं, जो इस क्षेत्र को कृषि के लिए आदर्श बनाता है। यहाँ विशेष रूप से गेहूं और मक्का की खेती की जाती हैं। पम्पास में कई तरह के वन्यजीव पाए जाते हैं, जिनमें रियास जैसे पक्षी और आर्मडिलोस जैसे स्तनधारी जीव शामिल हैं।
स्टेपी घास का मैदान
स्टेपी घास का मैदान अर्ध-शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इसमें घास और शाकाहारी पौधों का मिश्रण होता है। यहाँ बहुत कम पेड़ होता हैं। स्टेप्स मैदान में आम तौर पर पौधों की ऊंचाई घास के मैदानों की तुलना में अधिक भिन्नता होती है, जिसमें घास कठोर होती है और शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल होती है। इन क्षेत्रों में अक्सर गर्म ग्रीष्मकाल और ठंडी सर्दियाँ होती हैं। पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला यूरेशियन स्टेप एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जो घोड़ों और जंगली मृगों की विभिन्न प्रजातियों का समर्थन करता है।
डाउन्स घास का मैदान
ऑस्ट्रेलिया में डाउन्स ग्रासलैंड एक उपजाऊ मैदान है जो मुख्य रूप से देश के पूर्वी भाग में पाए जाते हैं। इन घास के मैदानों की विशेषता खुला समतल क्षेत्र हैं जिनमें उपजाऊ काली मिट्टी पाया जाता है जो कृषि के लिए उत्कृष्ट है। डाउन्स मैदान का उपयोग पशुओं, विशेष रूप से भेड़ और मवेशियों को चराने के लिए किया जाता है। साथ ही गेहूं और जौ जैसी फसलें यहाँ उगाई जाती है। यहाँ घास और नीलगिरी के पेड़ अधिक पाए जाते हैं, जो इस क्षेत्र की अर्ध-शुष्क से समशीतोष्ण जलवायु के अनुकूल होते हैं।
प्रेयरी घास का मैदान
प्रेयरी घास के मैदान मुख्य रूप से अमेरिका महाद्वीप के संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और उत्तरी मेक्सिको में पाए जाते हैं। इस मैदान में बहुत कम या कोई पेड़ नहीं होते हैं। इसे घास की ऊंचाई के आधार पर तीन प्रकारों में वर्गीकृत किए जाते हैं।
1. लंबा घास वाला मैदान अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले इन प्रेयरी में घास की लंबाई 8 फीट तक हो सकती है। 2. मिश्रित घास वाला मैदान इन क्षेत्रों में मिट्टी की स्थिति और नमी के स्तर के आधार पर लंबी और छोटी घासों का मिश्रण पाया जाता है। 3. छोटी घास वाला मैदान शुष्क क्षेत्रों में छोटी घास पायी जाती हैं।
प्रेयरी में विविध प्रकार के वन्य जीवन पाए जाते हैं, जिनमें बाइसन, प्रेयरी डॉग और अनेक पक्षी शामिल हैं। यह मैदान कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहां की अधिकांश भूमि पर खेती की जाती है।
मैदान की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
- मैदान में समतल भू-भाग पाया जाता हैं।
- उनकी संरचना एक जैसे अवसादों या पदार्थों से बनी होती है।
- ऐसे मैदानों में ढाल का अन्तर ज्ञात करना कठिन होता है।
मैदानों का वर्गीकरण
मैदानों की उत्पत्ति अलग-अलग कारणों से हो सकती है, जिन्हें अक्सर विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों द्वारा आकार दिया जाता है। अधिकांश मैदान बाहरी शक्तियों, जैसे नदियों या कटाव द्वारा बनते हैं, लेकिन कभी-कभी टेक्टोनिक गतिविधि जैसी आंतरिक शक्तियाँ भी मैदान की उत्पत्ति में बड़ी भूमिका निभाती हैं।
1. आंतरिक शक्तियों द्वारा निर्मित मैदान
आन्तरिक शक्तियों से बने अधिकांश मैदानों की पहचान सामान्यतः तटीय भागों के निकट होती है। इनका विस्तार सीमित क्षेत्रों में होता है। आंतरिक हलचल से कभी महाद्वीप पर बड़ा भाग ऊपर उठ जाते हैं। तथा मैदान का निर्माण हो जाता हैं।
आन्तरिक शक्तियों से बने विशाल मैदानों में पश्चिमी साइबेरिया का मैदान, यूराल के पश्चिम का मैदान, पूर्वी यूरोप का मैदान एवं मिसीसिपी का मैदान हैं। ऐसे मैदान तटीय भाग के निकट पाये जाते हैं। जैसे कच्छ का मैदान समुद्र तट के निकट स्थित है।
इस विधि से बनने वाले मैदान लावा निर्मित होते हैं। भारत के दक्षिणी पठार एवं पश्चिमी संयुक्त राज्य के 5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले मैदान इसके उदाहरण हैं। यह विश्व के प्रमुख उपजाऊ मैदानों में से एक हैं।
2. बाहरी शक्तियों द्वारा निर्मित मैदान
इस प्रकार के मैदानों का निर्माण बाहरी क्रियाओं से होता हैं। जैसे नदी, हिमनद, हवा, लहरें, अपक्षय आदि के कटाव एवं जमाव की क्रियाओं से मैदान का निर्माण हो जाता हैं।
1. अपरदन से निर्मित मैदान
नदियों से निर्मित मैदान - नदियाँ, पहाड़ी एवं पर्वतीय भागो का अधिक कटाव करती रहती हैं। जिससे नदी की घाटी चौड़ी होती जाती है। और पहाड़ी भागों की संकरी घाटी एवं अपरदन-चक्र की अधिकता से मैदानों का निर्माण होता रहता हैं।
कई बार दो पहाड़ी घाटियों के बीच के ऊबड़-खाबड़ भाग को कटाव व जमाव की क्रिया से नदी उपजाऊ मैदान बनाती है। नेपाल एवं भूटान में हिमालय की घाटियों के मैदान इसके उदाहरण हैं।
हिमनद से निर्मित मैदान - लंबे समय से जमे बर्फ के समाप्त होने के पश्चात् घर्षण क्रिया से मैदान का निर्माण हो जाता है। उत्तरी अमेरिका के झीलों के निकट पश्चिमी साइबेरिया एवं पूर्वी यूरोप के मैदान इसके महत्वपूर्ण उदाहरण है।
पवन से निर्मित मैदान - हवा शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में अपरदन का महत्वपूर्ण कारक बनता है। अतः पथरीले क्षेत्रों में आकृतियाँ अधिक बनती हैं। वहाँ पर हवा और पानी के सम्मिलित कार्यों से घाटियाँ अपरदन-चक्र के कारण लहरदार मैदान में परिवर्तित हो जाती हैं।
समुद्र लहरों से निर्मित मैदान - समुद्र तट के निकट निरन्तर लहरों के अपरदन से वहाँ पर प्रारम्भ में बनी आकृतियाँ नष्ट होती जाती हैं और लहरदार पथरीली मैदान का निर्माण होता है। ऐसे अपरदन के मैदान बहुत संकरे होते हैं। सभी तटों के निकट इस प्रकार के मैदान पाए जाते है।
2. निक्षेपण से निर्मित मैदान
स्थापक शक्तियाँ काटे गये पदार्थों को बहाकर कहीं-न-कहीं अवश्य जमा करती रहती हैं। जमाव की क्रिया से ही कई प्रकार की आकृतियाँ और समतल क्षेत्रों का निर्माण होता है। नदियों के मुहाने पर मैदान का निर्माण होता हैं। जब ये नदियाँ पहाड़ी भाग से निचले मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं तो नदी अपने साथ कंकड़, पत्थर आदि का जमाव करती हैं। जिसके कारण लहरदार मैदान का निर्माण होता हैं। गंगा और सिंधु के मैदान का निर्माण नदियों द्वारा लाये गए अवसाद से हुआ है।
हिमनद अपने साथ सतह से मोरेन को बहाकर ले जाती है। ये मोरेन बर्फ पिघलने के साथ ही जमा होते जाते हैं। जहाँ बर्फ एवं जल मिलकर जमाव कार्य करते हैं। वहाँ लहरदार मैदान एवं अवसादों के जमा होने से मैदान की रचना होती है। उत्तरी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में हिमाच्छादन के कारण निर्मित मैदान मिलते हैं।
पवन की गति से शुष्क क्षेत्रों में लहरदार बालू के मैदान की रचना होती रहती है। इसी प्रकार जिन क्षेत्रों में छोटे-छोटे टीले पाये जाते हैं वहाँ पर लहरदार टीले युक्त ऊबड़-खाबड़ मैदान पाये जाते हैं। राजस्थान में चुरू व शेखावाटी के क्षेत्र में ऐसे ही रेतीले लहरदार मैदान पाए जाते हैं। मरुस्थलीय क्षेत्रों की सीमा में पवन द्वारा जमा की गई महीन बालू से उपजाऊ मैदान का निर्माण होता है। चीन का पीला मैदान इसका उदाहरण है।
मैदानों का महत्व
मैदान मानव के लिए हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा हैं। विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का विकास नदियों की उपजाऊ व समतल मैदानों में ही हुआ हैं। मानव के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास मैदानी क्षेत्रों में ही आदर्श रूप में मिलते हैं।
मैदान कहीं भी हो तट के निकट, नदी घाटी या डेल्टा क्षेत्र में या महाद्वीपों के मध्य जहाँ भी मैदान है। वह जल की आपूर्ति अधिक है। मैदानों का मानव के लिए विशेष महत्व है। प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के लिए मैदान एक उत्तम स्थान रहा हैं। वर्तमान में भी मानव जनसँख्या सबसे अधिक मैदानी इलाको में पाए जाते हैं।
विश्व के सभी महानगर मैदानी प्रदेशों में ही पाये जाते हैं। 85 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या मैदानों में ही रहती है। जलवायु संसाधन और पानी की आपूर्ति मैदानों में महानगर के विकास का मुख्य कारण हैं। मैदान अपने उपजाऊपन के लिए प्रसिद्ध हैं अतः यहाँ पर कृषि, पशुपालन, बागान एवं व्यवसायों का विकास तेजी से हुआ हैं।
कृषि एवं उद्योगों के विकास, सघन आबादी, बढ़ती हुई वस्तुओं की माँग के कारण मैदानी भागों में रेल, सड़क एवं वायुमार्गों का तेजी से विकास होता रहा है। भारत में भी उत्तरी मैदान में व्यापार की मण्डियाँ एवं आधुनिक परिवहन संचार सेवाओं का जाल बिछा हुआ है। विश्व के सभी उष्ण एवं शीतोष्ण क्षेत्रों में सघन आबाद हैं। यहाँ पर ग्रामीण एवं नगरीय दोनों ही प्रकार की जनसंख्या सबसे अधिक पाई जाती है।
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