अधिवास किसे कहते हैं - adhivas kise kahate hain

आश्रय मानव की मूलभूत आयकताओं में से एक है, मानव जिस स्थान को अपने आश्रय हेतु चुनकर वहाँ जिन मकानों, घरों, झोपड़ियों आदि का निर्माण करता है, वह उसका आवास या अधिवास कहलाता है।

इन्ही आवासों द्वारा मानवीय बस्तियों का निर्माण होता है। आवास के अन्तर्गत सभी प्रकार के आश्रयों को सम्मिलित किया जाता है, चाहे वे घास-फूस की झोपड़ियाँ हों या वृक्षों की टहनियों एवं पत्तियों से बनी कुटिया, मिटटी या लकड़ी से बना घर हो या ईट, सीमेण्ट, कांकरीट की बनी इमारत हो या कोई आधुनिक बिल्डिंग हो।

सामान्यतः अधिवासों की तीन विशेषताएँ होती हैं

  1. इन अधिवासों में मनुष्य एक सामाजिक प्राणी की भाँति रहता है।
  2. वह आपस में विचारों एवं वस्तओं का आदान-प्रदान करता है।
  3. इन अधिवासों में मकान प्रारम्भिक इकाई होते हैं।
  4. अधिवासों में सम्पर्क हेतु पगडण्डियाँ, गलियाँ एवं सड़कें बनायी जाती हैं।

ग्रामीण अधिवास

गाँवों में निवास करने वाले लोगों के प्रमुख व्यवसाय प्राथमिक व्यवसाय होते हैं, जैसे - कृषि कार्य, पशुपालन, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, शिकार करना, खनन आदि। इन बस्तियों के निवासी अपनी आजिविका हेतु सीधे प्रकृति पर निर्भर रहते हैं।

  • यहाँ के निवासी प्राथमिक व्यवसाय में संलगन रहते हैं।
  • ग्रामीण अधिवास प्रायः नदियों के उपजाऊ मैदानों में मिलता है।
  • ग्रामीण अधिवासों में मकान स्थानीय सामग्रियों से निर्मित होते हैं।
  • मकान का एक भाग पशुओं के लिए होता है।
  • गाँवों में मकान सुविधानुसार बने होते हैं।

ग्रामीण अधिवास के प्रकार

1.सघन बस्ती - इस बस्ती में मकान पास-पास एवं आपस में जुड़े होते हैं। गलियाँ सँकरी होती हैं। ऐसीबस्ती में जनसंख्या का संकेन्द्रण गाँव के केन्द्र की ओर होता है।इनमें मकानों को बनाने की कोई योजना नहीं होती है। इस बस्ती की रचना सुरछा, पर्याप्त ऊपजाऊ कृषि भूमि, भूमिगत जल का अभाव आदि कारणों से होता है।

इन गाँवों की जनसंख्या प्राय: अधिक होती है। सिंधु, गंगा,ब्रम्हपुत्र का मैदान नील नदी की घाटी आदि के उपजाऊ कछारी मैदानों में सघन बस्तियाँ मिलती हैं।

2. संयुक्त बस्ती - इसके अन्तर्गत ऐसी ग्रामीण बस्तियाँ आती है, जिनमें एक मुख्य गाँव होता है और उसके निकट उसके पुरवे बने होते हैं मुख्य बस्ती से अलग एक या एक से अधिक पुरवे या टोला के स्थापित होने का कारण मुख्य बस्ती का ज्यादा बढ़ा आकार, सघन बसाव एवं स्थान का अभाव हो जाना होता है।

ऐसी स्थिति में कुछ लोग गाँव की सीमा पर जाकर मकान बनाकर रहने लगते हैं।धीरे-धीरे वहाँ एक पुरवा का विकास हो जाता है ऐसी ग्रामीण बस्ती गंगा, यमुना के मैदान में हजारों की संख्या में पायी जाती है।

3. अपखण्डित बस्ती - अपखण्डित बस्ती में मकान एक-दूसरे से पृथक-पृथक कुछ दूरियों पर बने होते हैं, किन्तु सभी घर मिलाकर एक बस्ती का निर्माण करते हैं। कहीं-कहीं दो-दो या तीन-तीन मकानों के पुरवे भी पाये जाते हैं। इन सबको मिलाकर एक बस्ती बनती है।

अपखण्डित बस्ती के निर्माण में जाति और धर्म संरचना का विशेष महत्व होता है। गंगा- घाघरा के दोआब, उत्तरी गंगा के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र एवं बंगाल के डेल्टाई क्षेत्र में ऐसी बस्तियाँ मिलती हैं।

4. बिखरी हुई बस्तियाँ - इन्हें एकाकी बस्ती भी कहते हैं। इस प्रकार की बस्ती में घर दूर-दूर बने होते हैं और इनके मध्य में कृषि क्षेत्र होता है। इनबस्तियों का निर्माण बाढ़ के भय,अनुपजाऊ भूमि, सुरक्षा की सुलभता आदि के कारण होता है पर्वतीय क्षेत्रों में प्राय. इसी प्रकार की बस्तियाँ मिलती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि फर्मो पर बने मकान, ‘फार्म स्टेड' इसके अच्छे उदारण हैं।

ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप

1. आयताकार - आयताकार गाँवों का विकास दो मार्गो या सड़कों के चौराहों पर चारों ओर होता है, जिससे गाँव का आकार आयताकार बन जाता है।इन गाँवो में गलियाँ भी प्रायः सीधी होती हैं तथा वे एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। भारत में गंगा के मैदान में अधिकांश गाँव इसी प्रकार के पाये जाते हैं।

2.पंक्तिनुमा - जब किसी गाँव का विकास किसी सड़क, मार्ग, नदी या नहर के किनारे होता है, तो गाँव का आकार एक रेखा के समान होता है। इन गाँवो में समानान्तर गलियां होती हैं और मकान एक-दुसरे से सटे-सटे होते हैं। इन गलियों के दोनों ओर प्रायः: मकानों के द्वार या दुकानें आदि होती हैं। इस प्रकार की रैखिक ग्रामीण बस्तियाँ समुद्री किनारों पर भी पायी जाती हैं।

3. त्रिभूजाकार - सड़कों के मिलन स्थल पर सड़कों के किनारे - किनारे अधिवास विकसित हो जाते हैं अथवा सड़कों के मिलन स्थल में बने त्रिभुजाकार भूखण्ड पर अधिवास विकसत हो जाने पर त्रिभुजाकार गाँब बन जाता है। पर्वतीय प्रदेशो तथा नदी के मध्य त्रिभुजाकार क्षेत्र में ऐसे अनेक गांव मिलते हैं।

4. अरीय प्रतिरूप - जिस स्थान पर कई दिशाओं से कच्ची या पक्की सड़के आकर मिलती हैं तो इस मिलन स्थल को केंद्र बनाकर इससे निकले मार्गो के किनारे -किनारे ,माकन बनते जाते हैं। इससे एक अरीय आकर का गांव बन जाता हैं।

5. चौकोर प्रतिरूप - मरुस्थलों में गाँव के बीच खुली आयताकार भूमि छोड़ दी जाती है और इसके चारों ओर आंधी से उड़ने वाली बालु से बचने हेत गाँव के चारों ओर चारदीवारी बना ली जाती हैं।

शहरी अधिवास

शहरी अधिवास की जनसंख्या द्वितीयक तथा तृतीयक व्यवसायों में लगी होती है जनसंख्या भी अधिक होती है। नगरीय अधिवास के मकान पक्के तथा सुन्दर होते हैं। अधिकांश लोग शिक्षित होते हैं। नगरीय अधिवास का तात्पर्य उस बस्ती से होता है जो अपने क्षेत्र में सबसे बड़ी, क्षेत्र में सबसे अधिक सुविधा संपन्न, सभ्यता तथा संस्कृति में उन्नत और परिवहन-साधनों से युक्त होती है।

नगरीय बस्तियों का वर्गीकरण

1. पल्ली या पुरवा -किसी नगर के सनिनकट सड़क मार्ग के सहारे कुछ उप-बस्तियाँ बस जाती हैं। इस छोटी नगरीय बस्ती की जनसंख्या 20से150 तक होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में इस प्रकार की नगरीय बस्तियाँ पायी जाती हैं।

2, नगरीय गाँव - वे बस्तियाँ जिनकी जनसंख्या150 से 500 तक होती है, उसे नगरीय गाँव कहते हैं। ऐसे गाँवों में नगरों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं जैसे-दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं की दुकानें, स्कुल, डाकघर, चिकित्सालय आदि। इस प्रकार के गाँव सयुंक्त राज्य अमेरिका में पाये जाते हैं।

3. कस्बा - कस्बो की जनसंख्या 500से 10,000 तक होती है,परन्तु कुछ विद्वान 50,000 से कम जनसंख्या वाले नगरीय अधिवासों को कस्बो की श्रेणी में रखते हैं। कस्बा निकटवर्ती गावों का मुख्य केंद्र होता है और अधिकांश प्राथमिक सेवाओं से युक्त होता है।

बैंक, स्कूल, पोस्ट ऑफिस, पुलिस चौकी , चिकित्सालय, पुस्तकालय , प्रशासनिक कार्यालय, संचार एवं मनोरंजन के साधन आदि होते हैं।

4.नगर - सामान्यतः 50 हजार से10 लाख तक की जनसंख्या को नगरों के अंतर्गत रखा जाता है। भारत में एक लाख से अधिक जनसंख्या अधिवास को नगर कहा जाता है। कस्बो एवं नगरों में उनके कार्यो के आधार पर परिलक्षित होता है। नगर अपने समीपवर्ती क्षेत्र के लिए शिक्षा ,उद्योग, व्यापार, परिवहन,प्रशासन चिकित्सा, मनोरंजन आदि सुविधाएं प्रदान करता हैं। जबक़ि कस्बा का कार्य क्षेत्र स्पष्ट नहीं होता।

5. महानगर - 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर महानगर कहलाते हैं। ऐसे नगर प्रदेश की राजधानियां, औद्योगिक नगर या व्यापारिक मण्डी होते हैं।

सन्नगर- जब कोई नगर या महानगर फैलकर अपने समीपवर्ती कस्बो या नगरों से मिल जाती है, तोसन्नगर का निर्माण होता है। से-कोलकाता सन्ननगर में अलीपुर, हावड़ा, दमदम, बराह नगर, रघुनाल, श्रीरामपुर, हुगली, नैहाटी आदि उपनगर सम्मिलित किये गये हैं।

7. विराट नगर - जब कसी नगर की जनसंख्या 50 लाख से अधिक होती है, तो उसे विराट नगर या मेगालोपोलिस कहा जाता है।टोकियो, न्यूयार्क, मैकिसको सिटी, लन्दन, पैरिस, मास्को, मुम्बई, दिल्ली, ब्यून्सआयर्स आदि इसी प्रकार के नगर हैं।

नगरीय संरचना

1. प्राचीन नगर - प्राचीन काल में नगरों का विकास अपने आप बिना किसी पूर्व निर्धरित योजना के होता था। विश्व के कुछ नगर इसके अपवाद हो सकते हैं, परन्तु अधिकांश प्राचीन नगर इसी प्रकार स्वतः विकसित हुए हैं।

2. आधुनिक नगर - आधुनिक काल में नगरों का विकास पूर्व निर्धारित योजना नुसार किया जाता है इससे नगर का सम्भावित आकार, सड़कों एवं रेलमार्गो का जाल, भवनों की बनावट यहाँ तक कि उनकी ऊँचाई तक पूर्व निर्धारित कर ली जाती है।

उदाहरण - दोनों प्रकार के नगरों का एक साथ उदारण पुरानी दिल्ली तथा नई दिल्ली में देखने को मिल जाता है केवल आधुनिक नगर का उदाहरण चण्डीगढ़ है।

वृहद् नगरों का वर्गीकरण

जनसंरखा के आधार पर नगरों का वर्गी करण किया जाता है -

  1. एक लाख से 10 लाख जनसंख्या वाले नगर - महानगर।
  2. 10 लाख से 50 लाख जनसंख्या वाले नगर - विशाल नगर।
  3. 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर - वृहत महानगर।

विरव में एक लाख की जनसंख्या में कल 1785 नगर हैं, जिनमें 1660 एक लाख से 10 लाख तक
जनसंख्या वाले हैं। 10 लाख से अधिक जनसंख्या के कुल 129 नगर हैं, जिनमें 10 महानगरों की जनसंख्या 70
लाख से अधिक है।

दस लाखी नगर - विरश्व में 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले विशालकाय नगरों को दस लाखी नगर की संज्ञा दी जाती है। सन 1970 में इनकी संख्या 10 थी जो 1960 में 61 हो गई और 1970 में 125 हो गई विगत 100 वर्षों में विश्व में नगरीकरण में तीव्र विकास के कारण नगरीय जनसँख्या में पर्याप्त वृदि हुई है।

नगरों का आकार बढ़ा है और इनको संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है साथ ही साथ नगरों के क्षेत्रफ़ल में भी विस्तार हुआ जिससे सन्नगर का अभुदय हुआ है।

नगरों एवं ग्रामों की पारम्परिक निर्भरता

किसी देश के विकास में ग्रामीण एवं नगरीय दोनों क्षेत्रों का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है। कुछ देशों में ग्रामीण जनसंख्या अधिक है, तो विकसित देशों में 90% तक जनसंख्या नगरों में निवास करती है। ऐसे नगरीय प्रधान देश युरोप महाद्वीप के उतरी-पश्चिमी, सयुक्त राज्य अमरीका और आस्ट्रेलिया में हैं।

युरोप के कुछ अति विकसित देशो में केवल 5% जनसंख्या ही ग्रामीण क्षेत्र में रहकर कृषि कार्य करती है। विकासशील देशों में ग्रामीण जनसंख्या अधिक है तथा नगरीय जनसंख्या कम। ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में अन्तसंम्बन्ध पाया जाता है।

ग्रामीण क्षेत्र अपनी विभिन्न आवश्यकताओं, जैसे - र्निर्मित वस्तुएँ, मशीनें, उपकरण, परिवहन इत्यादि के लिए नगरों पर आश्रित होते हैं, वहीं नगर विभिन्न प्रकार के कच्चे पदार्थो जैसे-लकडी , खनिज, वनोपज,दुध इत्यादि के लिए ग्रामो पर आश्रित होते हैं, यही नगरों व ग्रामों के बीच पारस्परिक निर्भरता है। 

नगरों को ग्रामीण क्षेत्रों से मिलने वाली वस्तुएं -

  • ग्रामीण क्षेत्र से नगरों को अनाज, दाले, दुग्ध उत्पाद, सब्जियाँ आदि उपलब्ध होते हैं।
  • नगरों को ग्रामीण-क्षेत्र से कच्चा माल कपास,गन्ना, तम्बाकू, जूट आदि प्राप्त होता हैं।
  • गॉंवो से नगरों को श्रम शक्ति प्राप्त होती है।
नगरों से ग्रामीण क्षेत्रों को मिलने वाली वस्तुएं -
  • निर्मित माल कृषि यंत्र, वस्त्र, बीज, मशीने, व्यापारिक माल आदि।
  • चिकित्सा, कानूनी सेवाए, शिक्षा आदि।
  • प्रशासनिक और परिवहन सेवाएँ।
  • कला, मनोरंजन एवं संचार की सेवाएँ।
  • वित्तीय सेवाएँ, जैसे - बैंकिंग।
  • मशीनों की मरम्मत सम्बन्धी सेवाएँ।

Related Posts