दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक संस्कृत का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है, जिसका इस्तेमाल हिंदी और मराठी जैसी दूसरी भारतीय भाषाओं के लिए भी किया जाता है। भाषाई रूप से, संस्कृत इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित है।
यह भाषा लगभग 1500 ईसा पूर्व या उससे पहले उभरी और दक्षिण एशियाई सभ्यताओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समय के साथ, यह पूरे क्षेत्र में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गई, जो धार्मिक प्रवचन, विद्वानों के संचार और साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए एक माध्यम के रूप में काम करती है। संस्कृत में कई धार्मिक ग्रंथो की रचना की गयी है। चार वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद संस्कृत में रचे गए थे।
संस्कृत केवल धार्मिक ग्रंथों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा और साहित्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। महाभारत और रामायण सहित कई शास्त्रीय भारतीय महाकाव्यों की रचना संस्कृत में की गई थी।
इसके अतिरिक्त, संस्कृत विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के विकास में सहायक रही है, क्योंकि हिंदी, बंगाली और मराठी जैसी कई आधुनिक भारतीय भाषा शब्दावली और व्याकरण के मामले में संस्कृत से संबंधित है।
प्रारंभिक मध्ययुगीन युग के दौरान, संस्कृत ने हिंदू और बौद्ध संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। जैसे-जैसे हिंदू और बौद्ध शिक्षाएँ दक्षिण-पूर्व एशिया में फैलीं, संस्कृत धार्मिक और राजनीतिक संचार के लिए प्राथमिक भाषा बन गई। संस्कृत का प्रभाव इंडोनेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, म्यांमार और वियतनाम जैसे देशों तक फैला हुआ था।
जहाँ कई धार्मिक ग्रंथ, मंदिर शिलालेख और शाही फरमान संस्कृत में लिखे गए थे। कंबोडिया में अंगकोर वाट के प्रसिद्ध मंदिर परिसर और इंडोनेशिया में बोरोबुदुर मंदिर में संस्कृत में लिखे शिलालेख स्थित हैं, जो दक्षिण पूर्व एशिया पर इसके गहरे सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाते हैं। पूर्वी एशिया में भी, संस्कृत ने बौद्ध साहित्य और शिक्षाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई बौद्ध ग्रंथों को शुरू में चीनी, तिब्बती और जापानी में अनुवादित किए जाने से पहले संस्कृत में लिखा गया था।
गुप्त, चोल और पल्लव सहित कई भारतीय राजवंशों ने शाही शिलालेखों, आधिकारिक अभिलेखों और राजनयिक पत्राचार के लिए संस्कृत का उपयोग किया जाता था। संस्कृत को अभिजात वर्ग की भाषा माना जाता था और इसे अक्सर विद्वता, शासन और कलात्मक अभिव्यक्ति से जोड़ा जाता था। यह भाषा भारतीय दरबारों में फली-फूली और शासकों द्वारा इसका संरक्षण किया गया जिन्होंने संस्कृत साहित्य, कविता और नाटक को प्रोत्साहित किया हैं।
कालिदास, पाणिनि और आर्यभट्ट जैसे उल्लेखनीय संस्कृत विद्वानों ने साहित्य, भाषा विज्ञान और विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शकुंतला और मेघदूत सहित कालिदास की साहित्यिक कृतियाँ संस्कृत की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। पाणिनि की अष्टाध्यायी, संस्कृत व्याकरण पर एक व्यापक ग्रंथ हैं। आर्यभट्ट के खगोल विज्ञान और गणित के कार्यों में संस्कृत का उपयोग किया था।
भले ही स्थानीय भाषाओं के उदय के कारण अब संस्कृत कम बोली जाती हैं, लेकिन इसका महत्त्व उतना ही हैं। संस्कृत का अभी भी व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है। कई हिंदू अनुष्ठान और मंत्र संस्कृत में ही मौजूद हैं, जो आध्यात्मिक प्रथाओं में इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करते हैं। इसके अलावा, भारत और दुनिया भर के संस्थान इस प्राचीन भाषा को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए संस्कृत में पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।