संथाली भाषा भारत की एक प्रमुख भाषा है, जिसे संथाल समुदाय के लोग बोलते हैं। यह भाषा मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। इसके अलावा, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान में भी संथाली भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं। यह भारत की उन भाषाओं में से एक है, जिन्हें भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है, जिससे इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है।
यह भाषा अपनी अलग ध्वनियों, व्याकरण और शब्दावली के कारण अन्य भारतीय भाषाओं से अलग पहचान रखती है। इसका विकास प्राचीन काल से ही मौखिक परंपराओं के माध्यम से हुआ और बाद में इसे लिखित रूप में संरक्षित किया गया।
संथाली भाषा की लिपि क्या है
संथाली भाषा को ओल चिकी लिपि में लिखा जाता है, जिसे पंडित रघुनाथ मुर्मू ने 1925 में विकसित किया था। इससे पहले संथाली भाषा को देवनागरी, बांग्ला और ओड़िया लिपियों में लिखा जाता था। ओल चिकी लिपि के आने के बाद संथाली भाषा को अपनी स्वतंत्र पहचान मिली, और इसका साहित्य अधिक संगठित रूप में विकसित हुआ।
संथाली भाषा की समृद्ध साहित्यिक परंपरा रही है। इसमें लोकगीत, लोककथाएँ और धार्मिक ग्रंथों की भरमार है। संथाली गीत और नृत्य, जैसे कि सारहुल, मागे परब और सोहराय , संथाली संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
पंडित रघुनाथ मुर्मू ने न केवल ओल चिकी लिपि विकसित की, बल्कि उन्होंने संथाली भाषा में कई साहित्यिक कृतियाँ भी लिखीं हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में धरमेश सेरें और बिदु चंदन शामिल हैं, जो संथाली समाज में बहुत लोकप्रिय हैं।