संयुक्त परिवार भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित एक पारंपरिक परिवार व्यवस्था है। इसमें एक ही घर में रहने वाली कई पीढ़ियाँ शामिल होती हैं, जो आपस में समान रिश्तों से जुड़ी होती हैं।
पारिवारिक संरचना
संयुक्त परिवार में मुखिया, जिसे ‘कर्ता’ कहा जाता है, आमतौर पर सबसे वरिष्ठ पुरुष सदस्य होता है, जो आर्थिक और सामाजिक मामलों में निर्णय लेता है। परिवार की आय एक साझा कोष में जाती है, जहाँ से सभी जरूरतों को पूरा किया जाता है। हालाँकि, 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह माना कि परिवार की सबसे वरिष्ठ महिला भी ‘कर्ता’ हो सकती है।
घटती प्रासंगिकता
शहरीकरण और आर्थिक विकास के कारण संयुक्त परिवारों की परंपरा में गिरावट आई है। पारंपरिक संयुक्त परिवार अब आधुनिक एकल परिवारों में परिवर्तित हो रहे हैं। फिर भी, कुछ समुदायों में यह व्यवस्था आज भी जीवित है।
सामाजिक और व्यक्तिगत संबंध
संयुक्त परिवार में रिश्तों के नाम और व्यवहार के नियम विशिष्ट होते हैं। उदाहरण के लिए, भाइयों की पत्नियों के संबंध में "बड़ी भाभी" को वरिष्ठता और सम्मान दिया जाता है। वह घर के कामकाज और निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
निष्कर्ष - संयुक्त परिवार प्रणाली का न केवल सामाजिक और भावनात्मक महत्व है, बल्कि इसका आर्थिक और कानूनी प्रभाव भी पड़ता है। संयुक्त परिवार आज भी परिवारों को एकजुट रखने और सामूहिकता को बढ़ावा देने का प्रतीक है।