व्यष्टि अर्थशास्त्र किसे कहते हैं - micro economics in hindi

अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान का एक भाग है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। सामान्य रूप में अर्थशास्त्र धन का अध्ययन हैं।

व्यष्टि अर्थशास्त्र को सूक्ष्मअर्थशास्त्र भी कहा जाता हैं। यह इस बात का अध्ययन है कि व्यक्ति और व्यवसाय सीमित संसाधनों का उपयोग करने के बारे में कैसे निर्णय लेते हैं। यह देखता है कि ये निर्णय विशिष्ट बाजारों, उद्योगों या क्षेत्रों में कीमतों, आपूर्ति और मांग को कैसे प्रभावित करते हैं। सूक्ष्मअर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था के छोटे हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र किसे कहते हैं

हिन्दी भाषा का शब्द ‘व्यष्टि अर्थशास्त्र' अंग्रेजी भाषा के शब्द माइक्रो, ग्रीक भाषा के शब्द माइक्रोस का हिन्दी रूपान्तरण है। व्यष्टि से अभिप्राय है - अत्यन्त छोटी इकाई, दस लाखवाँ भाग, अर्थात् व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध अध्ययन की सबसे छोटी इकाई से है। 

व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत वैयक्तिक इकाइयों जैसे - व्यक्ति, परिवार, उत्पादक फर्म, उद्योग आदि का अध्ययन किया जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र की इस रीति का प्रयोग किसी विशिष्ट वस्तु के कीमत निर्धारण, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों के व्यवहार एवं आर्थिक नियोजन, व्यक्तिगत फर्म तथा उद्योग के संगठन आदि तथ्यों के अध्ययन हेतु किया जाता है।

परिभाषा - व्यष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट फर्मों, विशिष्ट परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आयों, विशिष्ट उद्योगों और विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है 

व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि उपभोग, उत्पादन एवं वितरण का अधिकांश भाग व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र है। व्यष्टि अर्थशास्त्र में उपभोग के अन्तर्गत 'सीमांत विश्लेषण' का महत्वपूर्ण स्थान है। 

इसलिए उपभोग के अधिकांश नियम जैसे - सीमांत ह्रासमान उपयोगिता नियम, सम-सीमांत उपयोगिता का नियम, उपभोक्ता की बचत, जो कि सीमांत विश्लेषण का अंग है, व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आते हैं।

ठीक इसी प्रकार उत्पादन के क्षेत्र में वैयक्तिक फर्मों और उद्योगों में उत्पादन, आय एवं कीमत निर्धारण व्यष्टि अर्थशास्त्र के विषय हैं। 

उत्पत्ति के पाँचों साधनों में आय का वितरण किस प्रकार किया जाता है, यह भी व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र है। वहीं दूसरी ओर राजस्व, विदेशी विनिमय, बैंकिंग एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार व्यष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आते।

व्यष्टि अर्थशास्त्र की विशेषताएँ

1. वैयक्तिक इकाइयों का अध्ययन – व्यष्टि अर्थशास्त्र की पहली विशेषता यह है कि यह वैयक्तिक इकाइयों का अध्ययन करती है। व्यष्टि अर्थशास्त्र वैयक्तिक आय, वैयक्तिक उत्पादन एवं वैयक्तिक उपभोग आदि की व्याख्या करने में सहायता करता है। यह प्रणाली अपना संबंध समूहों से न रखकर इकाइयों से रखती है। 

2. सूक्ष्म चरों का अध्ययन– सूक्ष्म अर्थशास्त्र की दूसरी विशेषता के रूप में यह छोटे-छोटे चरों का अध्ययन करती है। इन चरों का प्रभाव इतना कम होता है कि इनके परिवर्तनों का प्रभाव सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ता है।

3. कीमत सिद्धांत – व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धान्त अथवा मूल्य सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत वस्तु की माँग एवं पूर्ति की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-ही-साथ माँग एवं पूर्ति के द्वारा विभिन्न वस्तुओं के व्यक्तिगत मूल्य निर्धारण भी किये जाते हैं।

4. पूर्ण रोजगार की मान्यता – व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन करते समय पूर्ण रोजगार की मान्यता को लेकर चला जाता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्व

1. सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक - यदि हम सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्वरूप की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें व्यक्तिगत इकाइयों की जानकारी हासिल करना आवश्यक है। 

क्योंकि व्यक्तिगत माँग के संयोग से ही सामूहिक माँग एवं सामूहिक पूर्ति का रूप सामने आता है। जैसे - यदि हमें यह ज्ञात करना है कि देश की अर्थव्यवस्था में सूती वस्त्र उद्योग की क्या स्थिति है। 

तो इसके लिए हमें सर्वप्रथम सूती वस्त्र उद्योग की फर्मों की जानकारी हासिल करनी होगी तभी हम सूती वस्त्र उद्योग की सही स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार व्यष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

2. आर्थिक समस्याओं के निर्णय में सहायक – व्यष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक समस्याओं के निर्णय में सहायक होता है । आर्थिक समस्याओं मूल्य का निर्धारण एवं वितरण की समस्या प्रमुख होती है। 

उत्पत्ति का प्रत्येक साधन अधिकाधिक पारिश्रमिक प्राप्त करना चाहता है। इन समस्त समस्याओं के निर्णय के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र उपयोगी रहा है। व्यष्टि अर्थशास्त्र में माँग एवं पूर्ति के नियमों, सिद्धान्तों का प्रयोग होता है। 

अतः यह नियम हमें बताता है कि माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के कारण कीमत का निर्धारण होता है। अतः व्यष्टि अर्थशास्त्र हमें साम्य की भी जानकारी देता है। 

3. आर्थिक नीति के निर्धारण में सहायक- व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत सरकार की आर्थिक नीतियों का अध्ययन इस आधार पर किया जाता है कि उनका व्यक्तिगत इकाइयों के कार्यकरण पर कैसा प्रभाव पड़ता है। 

जैसे- हम इस बात का अध्ययन कर सकते हैं कि सरकार की नीतियों का विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों और मजदूरी पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा सरकार की नीतियाँ साधनों के वितरण को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।

4. आर्थिक कल्याण की शर्तों का निरीक्षण – व्यष्टि अर्थशास्त्र में जहाँ व्यक्तिगत उपभोग, व्यक्तिगत रहनसहन के स्तर आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है, वहीं सार्वजनिक व्यय एवं सार्वजनिक आय के प्रभावों की भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। 

यदि समाज को करारोपण की तुलना में सार्वजनिक व्यय से अधिक लाभ प्राप्त होता है। तो यह कहा जाएगा कि समाज के आर्थिक कल्याण में वृद्धि होगी। यदि सार्वजनिक आय-व्यय के प्रभाव से लोगों के रहन-सहन के स्तर में कमी आती है। तो आर्थिक कल्याण घटेगा।

5. व्यक्तिगत इकाइयों के आर्थिक निर्णय में सहायक – व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों की समस्याओं पर उचित निर्णय लेने में सहायता प्रदान करता है। 

जैसे - प्रत्येक उपभोक्ता यह चाहता है कि वह अपने सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करे तथा इसी प्रकार प्रत्येक उत्पादक भी यही चाहता है कि वह कम से कम उत्पादन लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करे। 

आधुनिक समय में प्रत्येक फर्म माँग लागत विश्लेषण और 'रेखीय प्रोग्रामिंग’ का उपयोग करके अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करती है। इन सब बातों का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

6. व्यक्तिगत इकाइयों की समस्याओं के समाधान में उपयोगी–व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों की समस्याओं के समाधान में भी उपयोगी है। जहाँ एक ओर व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों की समस्याओं का अध्ययन करता है। वहीं दूसरी ओर इन इकाइयों की समस्याओं का समाधान भी करता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र के प्रकार

1. व्यष्टि स्थैतिकी - व्यष्टि स्थैतिकी विश्लेषण में किसी दी हुई समयावधि में संतुलन की विभिन्न सूक्ष्म मात्राओं के पारस्परिक संबंधों की व्याख्या की जाती है। इस विश्लेषण में यह मान लिया जाता है कि संतुलन की स्थिति एक निश्चित समय बिन्दु से संबंधित होती है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है ।

2. तुलनात्मक सूक्ष्म स्थैतिकी - तुलनात्मक सूक्ष्म स्थैतिकी विश्लेषण विभिन्न समय बिन्दुओं पर विभिन्न संतुलनों का तुलनात्मक अध्ययन करता है। परन्तु यह नये एवं पुराने संतुलन के बीच के संक्रमण काल पर कुछ भी प्रकाश नहीं डालता है।

सूक्ष्म स्थैतिकी विश्लेषण इन दोनों की आपस में तुलना तो करता है। परन्तु यह नहीं बताता है कि नया संतुलन किस क्रिया स स्थापित हुआ है। इस प्रकार सूक्ष्म स्थैतिकी विश्लेषण में केवल ‘दो स्थिर चित्रों' की तुलना की जाती है। 

3. सूक्ष्म प्रावैगिकी – सूक्ष्म प्रावैगिकी विश्लेषण के माध्यम से हम पुराने संतुलन से नये संतुलन की ओर अग्रसर होते हैं। यह विश्लेषण पुराने और नए संतुलन के संक्रमण काल को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की कीमत माँग और पूर्ति के संतुलन का परिणाम होती है। 

अब मान लीजिए कि बाजार में उस वस्तु की माँग घट जाती है। माँग के घट जाने से बाजार में माँग पूर्ति का संतुलन टूट जाएगा। वस्तु की कम कीमत पर नया संतुलन स्थापित होने से पूर्व असंतुलनों की एक श्रृंखला उत्पन्न हो जाती है, और यह विश्लेषण उन सभी घटनाओं का पूर्ण अध्ययन करता है जो पुराने संतुलन में बाधा डालते हैं और नये संतुलन के स्थापित होने तक के संक्रमण काल में घटित होते हैं।

व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ

1. केवल व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन – व्यष्टि अर्थशास्त्र में केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, इस विश्लेषण में राष्ट्रीय अथवा विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था का सही-सही ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता। अतः व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन एकपक्षीय होता है।

2. अवास्तविक मान्यताएँ - व्यष्टि अर्थशास्त्र अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है, व्यष्टि अर्थशास्त्र केवल रोजगार वाली अर्थव्यवस्था में ही कार्य कर सकता है। जबकि पूर्ण रोजगार की धारणा काल्पनिक है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन में पूर्ण प्रतियोगिता के स्थान पर अपूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। व्यष्टि अर्थशास्त्र की दीर्घकाल की मान्यता भी व्यावहारिक नहीं लगती है।

3. समग्र अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त – व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन के आधार पर निर्णय लेता है। अनेक व्यक्तिगत निर्णयों को सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए सही मान लेता है, लेकिन व्यवहार में कुछ धारणाएँ ऐसी होती हैं।  

जिन्हें समूहों पर लागू करने से निष्कर्ष गलत निकलता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति के लिए बचत करना ठीक है। लेकिन यदि सभी व्यक्ति बचत करने लग जायें। तो इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगेगा।

4. संकुचित अध्ययन – कुछ आर्थिक समस्याएँ ऐसी होती हैं। जिनका अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए, मौद्रिक नीति, राष्ट्रीय आय, रोजगार, राजकोषीय नीति, आय एवं धन का वितरण, विदेशी विनिमय, औद्योगिक नीति इत्यादि। यही कारण है कि आजकल समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व बढ़ता जा रहा है। 

5. अव्यावहारिक –  व्यष्टि अर्थशास्त्र के अधिकांश नियम एवं सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित हैं। लेकिन जब पूर्ण रोजगार की मान्यता ही अवास्तविक है। तो इस पर बने समस्त नियम एवं सिद्धान्त भी अव्यावहारिक ही कहे जायेंगे।

व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर

व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र

व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का एक समग्र इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है। 
व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत फर्म, उद्योग या व्यापारिक इकाई में तेजी व मंदी की विवेचना होती है।  समष्टि अर्थशास्त्र के द्वारा सम्पूर्ण आर्थिक मंदी का तथा आर्थिक तेजी का स्पष्टीकरण किया जाता है। 
उपभोक्ता या फर्म को सर्वोत्तम बिन्दु तक पहुँचाने में व्यष्टि अर्थशास्त्र सहायता पहुँचाता है। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को सर्वोत्तम बिन्दु तक पहुँचाने में समष्टि अर्थशास्त्र विशेष सहायक होता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र सीमान्त विश्लेषण आदि पर आधारित नियमों तक सीमित है। समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र राष्ट्रीय आय, पूर्ण रोजगार, राजस्व आदि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित समस्याओं के विश्लेषण से व्यापक है। 
व्यष्टि अर्थशास्त्र एक मात्र व्यक्तिगत समस्याओं का ही समाधान प्रस्तुत करता है। समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समस्याओं का विश्लेषण कर समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र केवल एक स्थान विशेष के लिए ही उपयोगी है। समष्टि अर्थशास्त्र की अन्तर्राष्ट्रीय उपयोगिता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र कीमत विश्लेषण से सम्बन्ध रखता हैं। समष्टि अर्थशास्त्र का लक्ष्य आय का विश्लेषण करना है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत कीमत, उत्पादन, उपभोग आदि की ओर निर्देश देता है। समष्टि अर्थशास्त्र सामान्य कीमत स्तर, राष्ट्रीय आय और सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की ओर निर्देश देता है।

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