जिस प्रकार एक व्यक्ति अथवा फर्म अपनी व्यावसायिक स्थिति की जानकारी के लिए लेखा-जोखा रखती है। उसी प्रकार एक देश अपनी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की जानकारी के लिए राष्ट्रीय लेखों का निर्माण करता है। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के आर्थिक लेखांकन को राष्ट्रीय आय लेखांकन कहा जाता है। राष्ट्रीय लेखांकन का आधार राष्ट्रीय आय है। इस कारण भी इसे राष्ट्रीय आय लेखांकन कहा जाता है। इसको सामाजिक लेखांकन भी कहा जाता है।
राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्त्व
1. आर्थिक प्रगति का सूचक - किसी भी अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य जानने के लिए अनिवार्य है कि हम उसकी कार्य क्षमता तथा स्थिरता आदि की जानकारी प्राप्त कर सकें। वस्तुतः यह ज्ञान हमें राष्ट्रीय आय लेखांकन से ही प्राप्त होता है।
यदि अर्थव्यवस्था स्वस्थ है तो इससे राष्ट्र में व्यापार, उद्योग तथा अन्य समस्त आर्थिक क्षेत्रों तथा क्रियाओं को बल प्राप्त होता है। राष्ट्रीय आय लेखांकन के द्वारा हमें विभिन्न प्रकार की क्रियाओं और लेन-देनों का विवरण प्राप्त होता है। इससे हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में हमें कितनी सफलता मिल रही है।
2. आर्थिक नीति के निर्धारण में महत्व - राष्ट्रीय आय लेखांकन से केवल इतना ही पता नहीं चलता कि किसी राष्ट्र के आर्थिक जीवन में क्या हो चुका है तथा क्या हो रहा है, बल्कि इसके आधार पर यह भी निर्धारित किया जाता है कि भविष्य में क्या होना है। राष्ट्रीय आय लेखांकन आर्थिक नीति और नियोजन का यंत्र माना जाता है।
3. आर्थिक विकास का माप - सामान्यतया, आर्थिक विकास की माप राष्ट्रीय आय के आकार तथा इसके वितरण के आधार पर की जाती है। राष्ट्रीय आय लेखांकन के अन्तर्गत उपभोग, विनियोग, सरकारी आय-व्यय तथा विदेशी व्यापार से सम्बन्धित वर्गीकरण किया जाता है। इससे यह अनुमान लगाने में सहायता प्राप्त होती है कि जन-साधारण के आर्थिक विकास की स्थिति क्या है और उसमें कितना परिवर्तन हो रहा है।
4. तुलनात्मक अध्ययन में सहायक - विभिन्न समयावधियों के बीच राष्ट्रीय आय लेखांकन की तुलना करके अर्थव्यवस्था की गति के दीर्घकालीन पथ को ज्ञात किया जा सकता है। राष्ट्रीय आय लेखांकन की सहायता से अर्थव्यवस्था में एक वर्ग तथा एक क्षेत्र की तुलना दूसरे वर्ग तथा क्षेत्र से की जा सकती है। विभिन्न राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति की तुलना भी राष्ट्रीय आय लेखांकन द्वारा की जा सकती है।
5. संरचनात्मक परिवर्तनों का ज्ञान - राष्ट्रीय आय लेखांकन एक अर्थव्यवस्था में होने वाले संरचात्मक परिवर्तनों पर भी प्रकाश डालते हैं। इससे विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों के सापेक्षिक महत्व के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है अर्थात् कृषि का योगदान बढ़ रहा है अथवा घट रहा है। उद्योगों के योगदान में पहले की तुलना में कमी आई है अथवा वृद्धि हुई है। इससे यह भी पता लगता है कि अर्थव्यवस्था में आय का वितरण किस प्रकार का है। लोगों का रहन-सहन का स्तर और उपभोग स्वरूप किस प्रकार का है।
6. श्रम - संघों के लिए महत्व - श्रम संघों का श्रम संगठनों के लिए राष्ट्रीय आय लेखांकन महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा उनको इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि राष्ट्रीय आय के निर्माण में श्रमिकों का क्या योगदान है तथा श्रमिकों और कर्मचारियों को पारिश्रमिक के रूप में राष्ट्रीय आय का कितना भाग मिल रहा है।
7. विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर सम्बन्धों की जानकारी - राष्ट्रीय आय लेखांकन में सम्मिलित विभिन्न क्षेत्रों के कार्यकरण के आधार पर यह जानकारी प्राप्त होती है कि इन क्षेत्रों में पारस्परिक-निर्भरता कितनी है। उदाहरण के लिए, हम यह जान सकते हैं कि कृषि तथा उद्योगों के बीच परस्पर निर्भरता कितनी है।
हम यह भी जान सकते हैं कि हमारे निर्यातों में वृद्धि कहाँ तक कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन की वृद्धि पर निर्भर करती है। इस प्रकार की परस्पर-निर्भरता का ज्ञान आर्थिक नियोजन तथा नीति-निर्धारण के लिए अति अनिवार्य होता है।
8. आर्थिक नियोजन में महत्व - उन देशों में जिनमें विकास हेतु आर्थिक नियोजन की नीति अपनाई जाती है, उनके लिए राष्ट्रीय आय लेखांकन का अत्यधिक महत्व होता है। राष्ट्र में विकास के लिए कितनी मात्रा में संसाधन उपलब्ध हैं या हो सकते हैं? किस दर से विकास किया जाए? योजना का आकार क्या हो ? राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न अंगों को किस प्रकार प्राथमिकता दी जाए? आदि अनेक बातों का निर्धारण राष्ट्रीय आय लेखांकन के अभाव में संभव नहीं है।
राष्ट्रीय आय लेखांकन की विधि
1. उत्पादन क्षेत्र - उत्पादन क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में उन सभी व्यक्तियों और संस्थानों को सम्मिलित किया जाता है, जो कि उत्पादन की क्रियाओं में संलग्न होते हैं। इस क्षेत्र में सभी निजी फर्मों, एकाकी व्यापार, साझेदारी फर्मों को सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार उत्पादन क्षेत्र का प्रमुख कार्य उत्पादन करना है।
2. उपभोक्ता क्षेत्र - उपभोक्ता क्षेत्र को गृहस्थ एवं परिवार क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत उन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो कि उपभोक्ता होने के साथ सेवाओं के पूर्तिकर्ता भी हैं। दोनों क्षेत्रों के बीच संस्थागत अन्तर नहीं होता, बल्कि फलनात्मक अन्तर होता है।
फलनात्मक अन्तर का आशय यह है कि आर्थिक क्रियाओं के अनुसार उत्पादन क्षेत्र तथा परिवार क्षेत्र में अन्तर होता है, जबकि उत्पादन क्षेत्र साधन-सेवाएँ प्रदान करता है और दूसरी स्थिति में उपभोक्ता होता है। यह सामान्य अनुभव की बात है कि प्रत्येक उत्पादक निश्चित रूप से उपभोक्ता भी होता है। इसी प्रकार अधिकांश उपभोक्ता उत्पादक होते हैं।
3. सरकारी क्षेत्र - सरकारी क्षेत्र में सरकार की समस्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है अर्थात् इसमें सरकार की आय व व्यय क्रियाओं का अध्ययन होता है। इस क्षेत्र में सरकार की दोहरी भूमिका होती है, एक ओर सरकार उत्पादक की भूमिका अदा करती है। जैसे अस्पताल, बाँधों, सड़क, रेलमार्ग आदि का निर्माण, तो दूसरी ओर, सरकार उपभोक्ता के रूप में उत्पादन क्षेत्र से वस्तुओं व सेवाओं का क्रय करती है। जिसका उपभोग अर्थव्यवस्था में सामूहिक रूप से किया जाता है।
4. विदेशी क्षेत्र - प्रत्येक अर्थव्यवस्था में कुछ फर्मों अथवा उद्योग ऐसे होते हैं जो विदेशों के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पन्न करते हैं और उन्हें विदेशों में निर्यात कर देते हैं। इसी प्रकार विदेशों से कुछ वस्तुओं का आयात भी किया जाता है। इस प्रकार के आयात-निर्यात में शामिल सौदों को विदेशी क्षेत्र के अन्तर्गत रखा जाता है।