राष्ट्रीय आय समष्टि अर्थशास्त्र का मुख्य विषय है। इसका महत्व केवल आर्थिक सिद्धांतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसी देश की आर्थिक स्थिति को समझने के लिए भी जरूरी है।
मनुष्य का सुख-दुख कई चीजों पर निर्भर करता है, लेकिन यह सच है कि जीवन के लिए वस्तुएँ और सेवाएँ बहुत जरूरी होती हैं। इसलिए अर्थशास्त्री यह जानने में रुचि रखते हैं कि किसी देश में एक निश्चित समय में कितनी वस्तुएँ और सेवाएँ बनाई गईं।
राष्ट्रीय आय किसे कहते है
सामान्यतया किसी एक देश में, एक वर्ष के दौरान उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं। कुछ अर्थशास्त्री राष्ट्रीय आय की अवधारणा को 'राष्ट्रीय उत्पाद' 'राष्ट्रीय लाभांश' तथा 'राष्ट्रीय व्यय' के नाम से भी संबोधित करते हैं।
कुल वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध उत्पादन ही राष्ट्रीय आय कहलाता है, जो देश के लोगों में बाँटी जाती है। यदि किसी देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है, तो उसकी आर्थिक स्थिति सुधर रही होती है। लेकिन यदि राष्ट्रीय आय घटती है, तो देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही होती है।
अतः राष्ट्रीय आय के वास्तविक अर्थ को समझना आवश्यक है। राष्ट्रीय आय की परिभाषा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से की है। राष्ट्रीय आय की इन परिभाषाओं को हम मुख्य रूप से दो भागों में बाँट सकते हैं -
- परम्परागत परिभाषाएँ।
- आधुनिक परिभाषाएँ।
1. परम्परागत परिभाषाएँ
परम्परागत परिभाषाओं में प्रो. मार्शल, पीगू तथा फिशर की परिभाषाओं को शामिल किया जाता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “किसी देश का श्रम एवं पूँजी, उस देश के प्राकृतिक साधनों पर कार्य करते हुए प्रतिवर्ष भौतिक एवं अभौतिक वस्तुओं एवं सभी प्रकार की सेवाओं का जो शुद्ध योग उत्पन्न करते हैं। उसे ही उस देश की शुद्ध वार्षिक आय अथवा राष्ट्रीय लाभांश कहते हैं।
इस प्रकार प्रो. मार्शल की परिभाषा से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय की गणना साधारणतया वार्षिक आधार पर की जाती है। कुल उत्पादन में से मशीनों की टूट-फूट एवं घिसावट व्यय घटा देना चाहिए। इसमें विदेशी विनियोगों से प्राप्त विशुद्ध आय जोड़ देनी चाहिए। इसमें उन सेवाओं को सम्मिलित नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों के लिए या मित्रों के लिए नि: शुल्क करता है।
इस प्रकार व्यक्तिगत सम्पत्ति तथा सार्वजनिक सम्पत्ति से प्राप्त लाभों को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करना चाहिए। मार्शल ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उत्पादन के आधार पर की है। मार्शल की परिभाषा सरल एवं व्यापक है।
प्रो. मार्शल की परिभाषा की आलोचनाएँ - आलोचकों ने प्रो. मार्शल द्वारा प्रतिपादित राष्ट्रीय आय की परिभाषा में निम्नांकित दोष बताये हैं -
1. मार्शल के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना करना व्यावहारिक दृष्टिकोण से असंभव है। क्योंकि किसी देश में उत्पादित की जाने वाली सभी वस्तुओं तथा सेवाओं की गणना नहीं की जा सकती है।
2. अर्थव्यवस्था में बहुत सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं। जिनका विनिमय बाजार में नहीं होता। जैसे- कृषक फसल का एक भाग अपने परिवार के प्रयोग के लिए रख लेता है, ऐसी वस्तुओं का मौद्रिक मूल्य ज्ञात नहीं किया जा सकता है। अतः मार्शल की परिभाषा के अनुसार राष्ट्रीय आय की सही गणना संभव नहीं है।
3. मार्शल की परिभाषा के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना करने पर दोहरी गणना की संभावना रहती है। जैसे कृषि उत्पादन में कपास के मूल्य को भी शामिल किया जा सकता है तथा औद्योगिक उत्पादन में उसी कपास से बने कपड़े के उत्पादन मूल्य को भी शामिल किया जा सकता है।
4. मार्शल की उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि प्रो. मार्शल के दृष्टिकोण में सरलता एवं व्यापकता का गुण पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है। वास्तव में, राष्ट्रीय उत्पादन ही राष्ट्रीय आय का उचित एवं तर्कसंगत आधार है।
प्रो. पीगू के अनुसार - राष्ट्रीय आय किसी देश की वस्तुनिष्ठ आय का वह भाग है। जिसे मुद्रा में मापा जा सकता है। इसमें विदेशों से प्राप्त आय भी शामिल रहती है।
इस प्रकार प्रो. पीगू की परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रो. पीगू की परिभाषा सरल एवं स्पष्ट है। क्योंकि राष्ट्रीय आय में केवल उन्हीं वस्तुओं एवं सेवाओं को शामिल किया जायेगा, जिनका मूल्य मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकेगा।
प्रो. पीगू ने मुद्रा रूपी मापदण्ड का प्रयोग कर राष्ट्रीय आय को निश्चितता प्रदान की है। प्रो. पीगू की परिभाषा के अनुसार, राष्ट्रीय आय की गणना सुविधाजनक हो गयी है। क्योंकि दोहरी गणना की कठिनाई को दूर करने के लिए राष्ट्रीय आय में केवल वे ही वस्तुएँ एवं सेवाएँ शामिल की गयी हैं।
जिसके मूल्य को मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है और विनियोजन करने से एक राष्ट्र को जो आय प्राप्त होती है, उन्हें भी राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा। प्रो. पीगू की परिभाषा, प्रो. मार्शल की परिभाषा की तुलना में अधिक व्यावहारिक है, क्योंकि इसमें मुद्रा रूपी मापदण्ड का प्रयोग किया गया है और दूसरे विदेशों से अर्जित आय को भी शामिल किया गया है।
प्रो. पीगू की परिभाषा की आलोचनाएँ - आलोचकों ने प्रो. पीगू की परिभाषा में निम्नांकित दोष बताये हैं -
1. प्रो. पीगू के द्वारा मुद्रा रूपी मापदण्ड का प्रयोग किये जाने से राष्ट्रीय आय में अनिश्चिता बनी रहती है। इसका कारण यह है कि कभी कोई वस्तु या सेवा राष्ट्रीय आय में शामिल की जाती है तो कभी वहीं वस्तु या सेवा राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं की जाती है।
जैसे- एक व्यक्ति अपनी नौकरानी से जो सेवाएँ प्राप्त करता है, वह राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेंगी, क्योंकि उसकी सेवा के बदले मुद्रा दिया जाता है, किन्तु वह व्यक्ति उस नौकरानी से विवाह कर लेता है तो उसकी सेवाएँ निःशुल्क होने के कारण राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं की जायेंगी।
2. प्रो. पीगू ने मुद्रा रूपी मापदण्ड का प्रयोग कर वस्तुओं को विनिमय-योग्य और गैर-विनिमय योग्य के रूप में बाँट दिया है, लेकिन व्यावहारिक जीवन में वस्तुओं में इस प्रकार का कोई विभाजन नहीं होता है, अतः वस्तुओं में कृत्रिम विभाजन उचित नहीं है।
3. प्रो. पीगू की परिभाषा केवल विकसित देशों में ही राष्ट्रीय आय की गणना के लिए उपयुक्त कही जा सकती है, क्योंकि उन देशों में वस्तुओं का लेन-देन मुद्रा के द्वारा किया जाता है।लेकिन पिछड़े हुए अर्द्धविकसित देशों में इसका प्रयोग बहुत कम है, क्योंकि इन देशों में उत्पादन के एक बड़े भाग का तो वस्तु विनिमय किया जाता है। फलस्वरूप, राष्ट्रीय आय की गणना वास्तविकता से कम हो जाती है। इस प्रकार इसका क्षेत्र संकुचित हो जाता है।
फिशर के अनुसार - राष्ट्रीय आय में केवल वे सेवाएँ ही शामिल की जाती हैं। जो अंतिम उपभोक्ताओं को प्राप्त होती हैं। चाहे वे उनके भौतिक अथवा मानवीय वातावरण से प्राप्त हुई हों। इस प्रकार एक पियानो अथवा ओवरकोट जो कि मेरे लिए इस वर्ष बनाया गया है। वह इस वर्ष की आय का भाग नहीं है। बल्कि वह पूँजी में वृद्धि मात्र है। केवल वे सेवाएं आय हैं, जो इन वस्तुओं ने मुझे इस वर्ष प्रदान की है।
इस प्रकार प्रो. फिशर की परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रो. फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा 'उपभोग' के आधार पर की है। प्रो. फिशर के अनुसार राष्ट्रीय आय के अन्तर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल उत्पादन को शामिल नहीं किया जाता है, बल्कि कुल उत्पादन के उसी भाग को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। जिसका उस वर्ष उपभोग किया जाता है।
प्रो. फिशर की परिभाषा आर्थिक कल्याण के विचार के अधिक अनुकूल है, क्योंकि इसके अन्तर्गत उत्पादन को नहीं, बल्कि उपभोग को राष्ट्रीय आय का आधार बनाया गया है। इसका कारण यह है कि लोगों का जीवन स्तर उनके उपभोग पर निर्भर होता है। प्रो. फिशर की परिभाषा तार्किक एवं वैज्ञानिक है।
प्रो. फिशर की परिभाषा की आलोचनाएँ - आलोचकों ने प्रो. फिशर की परिभाषा में निम्नांकित दोष बताये हैं -
1. प्रो. फिशर की परिभाषा व्यावहारिक दृष्टि से दोषपूर्ण है। क्योंकि टिकाऊ वस्तुओं के जीवन का सही-सही अनुमान लगाना कठिन होता है। कई टिकाऊ वस्तुओं के स्वामित्व में भी परिवर्तन हो जाता है। अतः ऐसी दशा में राष्ट्रीय आय की गणना करने में कठिनाई आती है।
2. प्रो. फिशर की परिभाषा के अनुसार किसी वर्ष विशेष में उत्पादित धन का कितना भाग उस वर्ष में उपभोग किया जायेगा। इसका भी ठीक-ठीक अनुमान लगाना भी कठिन होता है।
3. आलोचकों के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना के लिए उपभोग को आधार मानना और उसकी उत्पादन से तुलना करना और भी कठिन है। क्योंकि उत्पादक बहुत थोड़ी संख्या में होते हैं। जबकि उपभोक्ता बहुत बड़ी संख्या में होते हैं। तीनों परिभाषाओं में से कौन-सी परिभाषा सर्वश्रेष्ठ है ?
राष्ट्रीय आय के सन्दर्भ में प्रो. मार्शल, प्रो. पीगू एवं प्रो. फिशर की परिभाषाओं में कौन-सी परिभाषा श्रेष्ठ है यह कहना कठिन है। क्योंकि अपने-अपने दृष्टिकोण से तीनों परिभाषाएँ उपयुक्त हैं।
उदाहरणार्थ
- यदि हमारा उद्देश्य राष्ट्रीय कल्याण का पता लगाना है, तो फिशर की परिभाषा अधिक उपयुक्त है। क्योंकि आर्थिक कल्याण उपभोग के स्तर पर ही निर्भर करता है।
- यदि हमारा उद्देश्य देश में आर्थिक कल्याण उत्पन्न करने वाले घटकों का अध्ययन करना है तो प्रो. मार्शल की परिभाषा श्रेष्ठ है।
- यदि हमारा उद्देश्य राट्रोय आय को मौद्रिक आय में ज्ञात करना है, तो प्रो. पीगू की परिभाषा श्रेष्ठ है।
लेकिन उपर्युक्त तथ्यों के बावजूद भी हमें तीनों में से सर्वश्रेष्ठ परिभाषा ज्ञात करने को कहा जाय तो हम कह सकते हैं कि प्रो. पीगू की परिभाषा तभी श्रेष्ठ होगी, जब सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था मौद्रिक हो तथा दोहरी गणना की संभावना न हो। फिर भी प्रो. पीगू की परिभाषा को एक हद तक व्यावहारिक माना जा सकता है।
क्योंकि मुद्रा राष्ट्रीय आय को मापने का एक सीमा तक उचित साधन है। इसी प्रकार व्यावहारिक दृष्टि से प्रो. फिशर एवं प्रो. मार्शल की परिभाषाओं में भी अधिक अन्तर नहीं है, क्योंकि उत्पादन का अंतिम लक्ष्य उपभोग ही होता है। फिर भी उपभोग की सही-सही जानकारी करना कठिन है।
अतः व्यावहारिक दृष्टि से प्रो. मार्शल की परिभाषा सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि – (1) यह सरल है । (2) इसमें कुल उत्पादन की मात्रा को ज्ञात किया जा सकता है। (3) इसमें एक वर्ष के उत्पादन की गणना की जाती है। (4) विदेशों से प्राप्त आय को भी इसमें शामिल किया जाता है । -
आधुनिक परिभाषाएँ
आधुनिक परिभाषाओं में प्रो. साइमन कुजनेट्स, कोलिन क्लार्क, प्रो. व्ही. के. आर. वी. राव, राष्ट्रीय आय समिति एवं केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन की परिभाषा को शामिल किया जाता है।
1. प्रो. साइमन कुजनेट्स के अनुसार - राष्ट्रीय आय किसी देश की उत्पादन व्यवस्था में एक वर्ष के भीतर प्राप्त होने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं का वह विशुद्ध उत्पादन है। जो अंतिम उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है अथवा देश की पूँजी स्टॉक में वृद्धि करता है।
2. प्रो. कोलिन क्लार्क के अनुसार - किसी विशेष समयावधि में राष्ट्रीय आय को उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य में व्यक्त करते हैं। जो उस अवधि में उपभोग के लिए उपलब्ध रहती हैं। वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य उनकी प्रचलित विक्रय कीमतों पर निकाला जाता है।
3. भारत की राष्ट्रीय आय समिति के अनुसार - एक निश्चित समयावधि में वस्तुओं एवं सेवाओं की बिना दोहरी गणना किये हुये जो योग प्राप्त होता है। उसे राष्ट्रीय आय कहते हैं।
4. केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार - राष्ट्रीय आय किसी देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में अर्जित साधन आय का योग है।
अतः निष्कर्ष रूप में, राष्ट्रीय आय की परिभाषा निम्नानुसार की जा सकती है - किसी देश की राष्ट्रीय आय साधारणतः वहाँ एक वर्ष में उत्पादित समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का योग होती है, जिसमें से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन हेतु प्रयुक्त मशीनों एवं पूँजी की घिसावट को घटा दिया जाता है तथा विदेशों से प्राप्त विशुद्ध आय को जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय में निम्न बातें शामिल होती हैं।
- राष्ट्रीय आय की गणना का संबंध किसी राष्ट्र विशेष से होता है।
- राष्ट्रीय आय की गणना प्रायः एक वर्ष की अवधि से संबंधित होती है।
- राष्ट्रीय आय की गणना में उन सभी वस्तुओं एवं सेवाओं को शामिल किया जाता है, जिनका विनिमय मूल्य
- राष्ट्रीय आय की गणना करते समय पूँजी की घिसावट व्यय को घटा दिया जाता है।
- राष्ट्रीय आय की गणना में विदेशों से अर्जित विशुद्ध आय को जोड़ दिया जाता है।
- राष्ट्रीय आय की गणना में प्रत्येक वस्तु एवं सेवा का मूल्य एक ही बार शामिल किया जाता है।
राष्ट्रीय आय से तात्पर्य किसी देश के निवासियों द्वारा या उसकी सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट अवधि, आमतौर पर एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से है। इसे राष्ट्रीय उत्पादन के रूप में भी जाना जाता है। राष्ट्रीय आय किसी देश के आर्थिक प्रदर्शन के एक महत्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करती है और इसका उपयोग अक्सर विभिन्न देशों की आर्थिक ताकत और विकास की तुलना करने के लिए किया जाता है।
राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए विभिन्न उपायों का उपयोग किया जाता है, जिनमें सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी), और शुद्ध राष्ट्रीय आय (एनएनआई) शामिल हैं।
राष्ट्रीय आय के महत्व
1. आर्थिक नियोजन में सहायक - राष्ट्रीय आय के समंकों की सहायता से नियोजन किया जाता है। आर्थिक नियोजन के लिए उत्पादन, उपभोग, बचत संबंधी समंक राष्ट्रीय आय के विश्लेषण से ही प्राप्त होते हैं। यह समंक इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि पिछली प्रवृत्तियाँ किस प्रकार की रही हैं। अतः ये भविष्य में उचित आर्थिक नियोजन के लिए भी मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।
2. आर्थिक कल्याण का मापक - राष्ट्रीय आय को आर्थिक कल्याण का बैरोमीटर कहा जाता है। यदि अन्य बातें समान रहें तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर आर्थिक कल्याण भी बढ़ जाता तथा राष्ट्रीय आय में कमी होने पर आर्थिक कल्याण भी कम हो जाता है।
3. जीवन स्तर का सूचक - राष्ट्रीय आय के समंकों की सहायता - से देश के जीवन स्तर के बारे में मालूम किया जा सकता है। जिस देश की प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय अधिक होती है, वहाँ के नागरिकों का जीवन स्तर प्रायः उतना ही ऊँचा होता है।
4. तुलनात्मक अध्ययन में सहायक - राष्ट्रीय आय के समंकों की सहायता से विभिन्न देशों की आर्थिक अवस्था की तुलना की जा सकती है। प्रति व्यक्ति आय के आधार पर विभिन्न देशों की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
राष्ट्रीय आय तथा प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर न केवल दो देशों की आर्थिक स्थिति की तुलना की जा सकती है, बल्कि एक ही देश में विभिन्न क्षेत्रों में हो रही आर्थिक प्रगति का भी तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
5. आर्थिक विकास का सूचक - प्रत्येक देश की राष्ट्रीय आय उसकी आर्थिक स्थिति का सूचक होती है। सामान्यता, जिन देशों की राष्ट्रीय आय अधिक होती है, वह आर्थिक दृष्टि से विकसित माने जाते हैं तथा इसके विपरीत जिन देशों की राष्ट्रीय आय कम होती है, वह आर्थिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं।
6. आर्थिक नीति के निर्माण में सहायक - राष्ट्रीय आय के समंक प्रत्येक देश की आर्थिक नीति के निर्माण में भी सहायक होते हैं। इन समंकों से सरकार को रोजगार, साख, बचत तथा विनियोग संबंधी मामलों में आर्थिक नीति बनाने में सहायता मिलती है।
7. आय के समुचित वितरण की जानकारी - राष्ट्रीय आय के समंकों की सहायता से इस बात का पता लगाया जाता है कि राष्ट्रीय आय का आय के विभिन्न रूपों, जैसे- मजदूरी, लगान, ब्याज, लाभ में किस प्रकार वितरण हुआ है। अतः सरकार इस वितरण की जानकारी के आधार पर सामाजिक न्याय के लिए उचित नीतियाँ बना सकती हैं।
राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं
1. सकल घरेलू उत्पाद
सकल घरेलू उत्पाद से अभिप्राय किसी देश में एक निश्चित समयावधि में देश के निवासी अथवा अनिवासी द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों के योग से होता है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र, जैसे- प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में लगे हुए होते हैं। इनके द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
1. बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना - बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद एक देश की घरेलू सीमा में एक लेखा- वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का सकल मूल्य होता है । इसकी गणना करने के लिए उत्पादित वस्तुओं की मात्रा को उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है।
2. साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना - यह सर्वविदित है कि उत्पादित वस्तुएँ एवं सेवाएँ उत्पादन के विभिन्न साधनों भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यम का सामूहिक परिणाम होती हैं। उत्पादन के साधनों को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले प्राप्त होने वाले पुरस्कार को साधन- आय कहते हैं। ये साधन आय लगान, मजदूरी, ब्याज व लाभ उत्पादकों या फर्मों के लिए लागत होती है।
अत: इन साधन आयों का योग करके ही सकल घरेलू उत्पाद की गणना की जा सकती है। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बातें यह है कि विभिन्न साधन के स्वामियों को शुद्ध साधन-आय ही प्राप्त होती है, अतः सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करने के लिए हमें शुद्ध साधन-आय में घिसावट-व्यय को जोड़ना होगा।
पारिभाषिक रूप से, बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद तथा साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य बराबर होने चाहिए, क्योंकि उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य उत्पादन के साधनों में लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के रूप में बँट जाता है। लेकिन व्यवहार में ये मूल्य बराबर नहीं होते।
इन्हें समान बनाने हेतु हमें सरकार द्वारा विभिन्न उत्पादन इकाइयों पर लगाए गए अप्रत्यक्ष कर तथा उनको दी जाने वाली आर्थिक सहायता को ध्यान में रखना होगा। बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में से अप्रत्यक्ष कर घटाकर तथा सहायता राशि जोड़कर ही साधन पर सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य को प्राप्त किया जा सकता है।
2. सकल राष्ट्रीय उत्पाद
सकल राष्ट्रीय उत्पाद एक विस्तृत अवधारणा है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद का संबंध देश की घरेलू सीमा से न होकर उसके सामान्य निवासियों से होता है। देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में देश के अन्दर एवं बाहर सृजित आय का योग सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद में शुद्ध विदेशी साधन आय को जोड़ने से सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य प्राप्त हो जाता है।
देश के निवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय में से विदेशी निवासियों द्वारा देश में अर्जित आय घटाकर विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय प्राप्त हो जाती है। यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय धनात्मक है तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद अधिक होगी सकल घरेलू उत्पाद से। इसके विपरीत, यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक है।
3. शुद्ध घरेलू उत्पाद
शुद्ध घरेलू उत्पाद से अभिप्राय, एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में निवासी एवं गैर-निवासियों द्वारा उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के शुद्ध मौद्रिक के मूल्य से होता है अर्थात् एक देश के सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में से स्थिर पूँजी के उपभोग अथवा मशीनों एवं कल-पुर्जों के घिसावट व्यय को घटाने से जो शेष राशि बचती है, उसे ही शुद्ध घरेलू उत्पाद कहते हैं।
1. बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद - बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद से अभिप्राय, एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा वर्ष के अन्तर्गत उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्य से है। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसका संबंध भी देश की घरेलू सीमा से है। इसमें देश की घरेलू सीमा में रहने वाले विदेशियों के सहयोग को भी शामिल किया जाता है। लेकिन विदेशों में रहने वाले देश के नागरिकों के सहयोग को शामिल नहीं किया जाता है।
2. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद - एक देश में एक लेखा वर्ष में उत्पादन के विभिन्न साधनों को देश की घरेलू सीमाओं के अन्तर्गत जो सकल आय प्राप्त होती है, उसे ही साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद कहा जाता है। उत्पादन के साधनों को यह आय मजदूरी, वेतन, किराया, ब्याज, लाभ एवं स्व-नियोजितों की मिश्रित आय के रूप में प्राप्त होती है।
इसके अन्तर्गत देश की घरेलू सीमा के अन्तर्गत कार्य कर रही विदेशी संस्थाओं एवं फर्मों के द्वारा उत्पादन के साधनों को किये गये भुगतानों को शामिल किया जाता है, लेकिन विदेशों में स्थित संस्थाओं एवं फर्मों के द्वारा किये गये भुगतानों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
4. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
सकल राष्ट्रीय उत्पाद की भाँति राष्ट्रीय उत्पाद भी एक राष्ट्रीय अवधारणा है। वस्तुओं के उत्पादन में लगी हुई मशीनों एवं संयंत्रों को एक निश्चित समयावधि के बाद बदलना पड़ता है। क्योंकि उत्पादन कार्य में इनका लगातार प्रयोग करने से ये मशीन घिस-पिट कर बेकार हो जाती हैं।
अतः उत्पादन कार्य को लगातार जारी रखने के लिए इन मशीनों को बदलना आवश्यक होता है। इसके लिए उत्पादक एक कोष बनाता है। जिसे घिसावट व्यय कोष कहते हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक निश्चित भाग इसमें प्रतिवर्ष जमा किया जाता है।
इसका उत्पादन के साधनों के बीच वितरण नहीं किया जाता है। अतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद के मूल्य में से मशीनों के घिसावट व्यय की राशि को घटाने के बाद जो शेष बचता है, उसे ही शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
5. राष्ट्रीय आय
एक देश की एक वर्ष की अवधि में साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद का जो मूल्य होता है। इसे ही उस देश की राष्ट्रीय आय कहा जाता है। इसके अन्तर्गत एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में उत्पादन के साधनों के द्वारा लगान, मजदूरी, वेतन, ब्याज एवं लाभ के रूप में उपार्जित आय के साथ इन साधनों के द्वारा विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को भी जोड़ा जाता है।
- उत्पादन के साधनों को प्राप्त होने वाली यह आय भूमि के लिए लगान, श्रमिक के लिए मजदूरी, प्रबंधक का वेतन, पूँजी के लिए ब्याज तथा साहसी को लाभ के रूप में होती है।
- विदेशों से उत्पादन के साधनों को प्राप्त शुद्ध आय का अर्थ देश के साधनों को विदेशों से प्राप्त आय एवं विदेशी साधनों को अपने देश में प्राप्त होने वाली आय के अन्तर से है। इसलिए यह धनात्मक अथवा ऋणात्मक भी हो सकती है।
- राष्ट्रीय आय का ही उत्पादन के साधनों के बीच वितरण किया जाता है।
6. निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में घरेलू साधन-आय का सृजन उसके निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में होता है। निजी क्षेत्र के अन्तर्गत उन समस्त संगठित उत्पादन इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है जिनका स्वामित्व निजी लोगों के हाथों में होता है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत सरकार के समस्त प्रशासनिक विभाग, विभागीय उद्यम तथा गैर-विभागीय उद्यम शामिल होते हैं।
किसी अर्थव्यस्था के घरेलू उत्पाद का वह भाग, जो निजी क्षेत्र को प्राप्त होता है, उसे निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, श्रमिकों के पारिश्रमिक, प्रचालन अधिशेष तथा मिश्रित आय के रूप में अर्जित शुद्ध घरेलू साधन- आय का वह भाग, जो निजी क्षेत्र को प्राप्त होता है, निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय कहलाता है।
7. सार्वजनिक क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में घरेलू साधन आय का सृजन उसके निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में होता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत उन समस्त उत्पादन इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है जिनका स्वामित्व सरकार के हाथ में होता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत सरकार के समस्त प्रशासनिक विभाग, विभागीय उद्यम तथा गैर-विभागीय उद्यम शामिल होते हैं।
दूसरे शब्दों में, किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित समस्त आय में निजी क्षेत्र में उपार्जित घरेलू उत्पाद से आय को घटाने पर जो शेष बचता है, वह सार्वजनिक क्षेत्र की आय होती है। सार्वजनिक क्षेत्र में प्रशासनिक विभागों को सम्पत्ति एवं उद्यमशीलता से उपार्जित आय तथा गैर-विभागीय उद्यमों की बचतों को शामिल किया जाता है।
8. निजी आय
निजी आय से अभिप्राय, एक लेखा वर्ष में निजी क्षेत्र को सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय से है। निजी क्षेत्र को साधन-आय (लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ) तथा हस्तांतरण आय के रूप में आय प्राप्त होती है, अतः 'निजी आय साधन आय तथा सरकार और शेष विश्व से प्राप्त समस्त वर्तमान हस्तांतरण का योग है।
केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार - निजी आय वह आय है जो निजी क्षेत्र के सभी स्रोतों से प्राप्त साधन-आय तथा सरकार से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण और शेष विश्व से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण का योग है। स्पष्ट है निजी आय से अभिप्राय निजी क्षेत्र की कुल आय से है चाहे वह अर्जित आय है अथवा अनार्जित आय अर्थात् हस्तांतरण आय है। निजी क्षेत्र में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन-आय भी शामिल होती है। निजी क्षेत्र के प्रमुख घटक निम्नांकित हैं -
- निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय (अर्थात् समस्त आय भुगतान )।
- विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन-आय।
- चालू या वर्तमान हस्तांतरण – निजी क्षेत्र को हस्तांतरण आय भी प्राप्त होती है। यह दो प्रकार की होती है।
सरकार से प्राप्त चालू हस्तांतरण - इससे अभिप्राय सरकार की चालू आय में परिवारों एवं उद्यमों को स्वउपभोग हेतु प्राप्त होने वाली चालू आय से होता है। वृद्धावस्था में पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, छात्रवृत्ति, उपहार आदि जो सरकार से परिवार को प्राप्त होती है।
वह चालू हस्तांतरण ही है। इसी प्रकार सरकार परिवार व उद्यमों को औद्योगिक विकास हेतु आर्थिक सहायता देती है, वह भी चालू हस्तांतरण है। चालू हस्तांतरण सांधन आय से इस बात में भिन्न है कि इसके भुगतान हेतु परिवारों द्वारा सरकार को कोई सेवा प्रदान नहीं करनी पड़ती है।
शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तांतरण - इससे अभिप्राय एक देश को अन्य देशों से दान, उपहार, सहायता के रूप में खाद्यान्न, दवाइयाँ, कपड़े आदि के रूप में प्राप्त चालू हस्तांतरण मूल्य तथा एक देश से दूसरे देशों को इसी प्रकार के दिये गये चालू हस्तांतरण मूल्य का अन्तर होता है। उपहार, दान आदि प्राप्त करने वाले देश को इन वस्तुओं के मूल्य का भुगतान नहीं करना होता है।
9. वैयक्तिक आय
वैयक्तिक आय किसी देश के व्यक्तियों व परिवारों को एक लेखा वर्ष में सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त साधन आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का योग है। पीटरसन के अनुसार - वैयक्तिक आय व्यक्तियों द्वारा सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त साधन आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का योग है।
वैयक्तिक आय के अन्तर्गत व्यक्तियों अथवा परिवारों को सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त होने वाली आय को शामिल किया जाता है। जैसे-फर्मों या निगमों को जो लाभ प्राप्त होते हैं, उसमें से कुछ भाग व्यक्तियों में नहीं बाँटा जाता, बल्कि अवितरित लाभ के रूप में फर्मों के पास रह जाता है। इस प्रकार अवितरित लाभ के दो अंग हैं- 1. निगम कर एवं 2. निगम बचत, अतः निगम कर एवं निगम बचत को वैयक्तिक आय में शामिल नहीं किया जाता है।
10. वैयक्तिक व्यय योग्य आय
वैयक्तिक व्यय योग्य आय का अर्थ उस वास्तविक आय से है, जो व्यक्तियों अथवा परिवारों के द्वारा उपभोग पर वास्तव में व्यय की जाती है। सम्पूर्ण वैयक्तिक आय को उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता है, क्योंकि लोगों को अपनी आय पर 'आयकर' जैसे प्रत्यक्ष कर का भुगतान करना पड़ता है।
अतः वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष कर को घटा देने पर जो शेष आय होती है, वही वैयक्तिक आय योग्य आय होती है। लेकिन ध्यान रहे, पूरी वैयक्तिक व्यय योग्य आय उपभोग पर खर्च नहीं की जाती, बल्कि इसका कुछ भाग बचत के रूप में रख लिया जाता है।
यदि हम वैयक्तिक व्यय योग्य आय को राष्ट्रीय आय में से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें राष्ट्रीय आय में से व्यावसायिक बचत, अप्रत्यक्ष कर, वैयक्तिक आय तथा व्यावसायिक आय पर प्रत्यक्ष करों की राशि को घटाना होता है तथा हस्तांतरण आय को जोड़ना होता है।