भारत, अपनी तीव्र आर्थिक प्रगति और जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ, ऊर्जा क्षेत्र में भी तेजी से विकास कर रहा है। ऊर्जा किसी भी देश की प्रगति की रीढ़ होती है, और भारत ने इस दिशा में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। सितंबर 2013 तक भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 2,28,722 मेगावाट थी, जिससे भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश बन चुका है।
राज्यवार क्षमता की बात करें तो महाराष्ट्र शीर्ष स्थान पर है, जहाँ 31,934 मेगावाट की स्थापित क्षमता है। इसके बाद गुजरात का स्थान आता है, जिसकी उत्पादन क्षमता 26,126 मेगावाट है। अन्य प्रमुख राज्य जिनका योगदान उल्लेखनीय है, उनमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों में तेजी से हो रहे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बढ़ती ऊर्जा मांग ने बिजली उत्पादन के विस्तार को आवश्यक बना दिया है।
भारत की ऊर्जा जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं। पिछले दो दशकों में देश की ऊर्जा माँग में तीव्र वृद्धि हुई है। यह वृद्धि मुख्यतः औद्योगिक विकास, शहरी विस्तार और घरेलू खपत में बढ़ोतरी के कारण हुई है। जैसे-जैसे देश की अर्थव्यवस्था सशक्त होती जा रही है, ऊर्जा की आवश्यकता भी उसी गति से बढ़ रही है।
हालाँकि, भारत में ऊर्जा की आपूर्ति में भी सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी मांग के अनुपात में पर्याप्त नहीं है। कई ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में नियमित बिजली आपूर्ति अब भी एक चुनौती बनी हुई है। बिजली की अनुपलब्धता का असर न केवल घरेलू जीवन पर पड़ता है, बल्कि कृषि और औद्योगिक क्षेत्र की उत्पादकता पर भी पड़ता है।
भारत की बिजली उत्पादन प्रणाली जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भर है। कोयला, इस प्रणाली का सबसे बड़ा स्त्रोत है। लगभग 59 प्रतिशत बिजली कोयले से उत्पन्न होती है, जो कि 20,381 मेगावाट के उत्पादन के बराबर है। कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन सस्ता और प्रभावी होता है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभाव जैसे कि वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन देश के लिए चिंता का विषय हैं।
भारत ने जलविद्युत स्रोतों को भी बड़ी मात्रा में अपनाया है। नदियों पर बने बांध और जलविद्युत परियोजनाएँ, विशेष रूप से हिमालयी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में, एक स्थायी ऊर्जा स्रोत प्रदान करती हैं। इसके अलावा, भारत नवीकरणीय ऊर्जा, जैसे सौर, पवन, और बायोमास ऊर्जा के क्षेत्र में भी सक्रिय रूप से निवेश कर रहा है।
आज भारत का ऊर्जा क्षेत्र एक संक्रमणकाल से गुजर रहा है जहाँ पारंपरिक स्रोतों से हटकर स्वच्छ और सतत ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। ऊर्जा उत्पादन में विविधता, वितरण में दक्षता और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी, यह सभी बिंदु भविष्य की ऊर्जा नीति का आधार बन रहे हैं।