साहित्यिक भाषा किसे कहते हैं

साहित्यिक भाषा - जिस भाषा का प्रयोग साहित्यिक रचना के लिए होता है, उसे साहित्यिक भाषा कहा जाता है।

यह बोलचाल की भाषा से सर्वथा भिन्न होती है तथा परिनिष्ठित भाषा के निकट होती है। इसमें परिमार्जित शब्दों के प्रयोग होते हैं जबकि बोल-चाल में अपरिष्कृत एवं अशुद्ध शब्दों के भी प्रयोग होते हैं। कवि और लेखक अपनी-अपनी रचनाएँ साहित्यिक भाषा में रचते हैं। साहित्यिक भाषा में परिवर्तनशीलता सम्भव है। 

उदाहरणार्थ मध्यकालीन साहित्यिक भाषा का स्वरूप कुछ और था और द्विवेदीयुगीन की कुछ और छायावादी युग तक अत्यंत शुद्ध, तत्सम प्रधान एवं परिष्कृत हिन्दी भाषा का प्रयोग होता रहा। प्रगतिवादी युग में आकर साहित्यिक भाषा में परिवर्तन होने लगा । लोकभाषा एवं उर्दू-फारसी के शब्दों का समावेश होना आरम्भ हो गया। 

प्रयोगवादी कवियों ने उसे शुद्ध संस्कृतनिष्ठ बनाये रखने का प्रयास तो किया परन्तु नयी कविता में आकर उस साहित्यिक भाषा का कलेवर विकृत हो गया। अब इसमें अंग्रेजी के शब्दों का भी धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा। इस प्रकार साहित्यिक भाषा में समयानुसार परिवर्तनशीलता आती है तथा इसका क्षेत्र एक भूखण्ड तक सीमित नहीं रहता जाता है।

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