राजभाषा - जब किसी भाषा को राज्य द्वारा अपने कार्यों के सम्पादन के लिए स्वीकृत कर ली जाती है तो वह राजभाषा कहलाती है।
भाषा या विभाषा राजभाषा बन सकती है। बोली में एकरूपता का अभाव होता है और उसकी लिपि भी नहीं होती । अतः बोली राजभाषा नहीं बन सकती। किसी भी राज्य का कार्य एकरूपता के बिना अथवा लिपि के अभाव में सम्भव नहीं है।
इस सम्बन्ध में डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना का मत ध्यातव्य है - जो भाषा किसी राज्य के सरकारी कार्यों में सर्वाधिक प्रयुक्त होती है। उसे राजभाषा कहते हैं।
राजभाषा' में ही केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारें अपने पत्र व्यवहार किया करती हैं। सरकारी आदेश एवं आज्ञाओं का मुद्रण भी इसी भाषा में होता है। राजभाषा से देश में शासनात्मक राज्य की स्थापना में बड़ी सहायता मिलती है।
भारत में पहले संस्कृत को राजभाषा के रूप में मान्यता मिली थी । मुसलमानों के काल में फारसी को राजभाषा का गौरव मिला। अंग्रेजों के आगमन पर अंग्रेजी राजभाषा का गौरव प्राप्त की स्वतंत्रता के पश्चात् हिन्दी को राजभाषा घोषित कर दिया गया। आज भारत के अधिकांश राज्यों का कार्य हिन्दी माध्यम से होता है।
राजभाषा उसी देश अथवा प्रदेश का हो यह आवश्यक नहीं है। राजा अथवा शासक अपनी सुविधानुसार किसी भी भाषा अथवा विभाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकृति दे सकता है। परन्तु हिन्दी भारत के अधिकांश लोगों के द्वारा प्रयोग की जा रही है।
अतः इसे राजभाषा का गौरव प्राप्त है। यह दुर्भाग्य की बात है कि स्वतंत्रता - प्राप्ति के पश्चात् भी अंग्रेजी हिन्दी को दबा रखी है।