अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं नदी के किनारे इसलिए विकसित हुई हैं क्योंकि नदी के आसपास सिंचाई के लिए पानी, उपजाऊ भूमि, पालतू जानवरों के लिए चारा और यातायात की सुविधा आसानी से उपलब्ध होती थी। लगभग 6000 से 8…
सभ्यता का अर्थ है मानव समाज की वह स्थिति या अवस्था, जिसमें सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और नैतिक उन्नति का समावेश होता है। सभ्यता एक व्यापक शब्द है, जो मानव जाति की भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति क…
लोथल प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे दक्षिणी बस्तियों में से एक थी, जो भारत के गुजरात के भाल जिले में स्थित थी। कहा जाता है कि शहर का निर्माण 2200 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था। भारतीय पुरा…
दुनिया अरबों साल पुरानी है। इतिहासकार मानव सभ्यता का पता लगाने में सफल रहे हैं। हड़प्पा संस्कृति का अस्तित्व इस बात का प्रमाण है कि दुनिया के सबसे पुराने देश बहुत पहले अस्तित्व में आ गए थे। …
पाषाण युग जिसे अंग्रेजी में स्टोन एज कहा जाता हैं। यह मानव इतिहास का वह प्राचीन काल है जब मनुष्य ने पत्थरों के औजारों का उपयोग करना शुरू किया था। यह युग तकनीकी और सामाजिक विकास के शुरुआती चरण का प्रत…
चोरी और प्रायश्चित' शीर्षक निबंध गाँधी जी द्वारा लिखित वह महत्वपूर्ण अनुभव का सार हैं जीवन में घटित घटनाओं का भले ही लघु रूप है किन्तु इन घटनाओं ने उनके भविष्य की दिशा को भी प्रशस्त किया है। '…
निम्नलिखित पद्यांशों की व्याख्या कीजिए 1. कठिनाइयों के मध्य अध्यवसाय का उन्मेष हो, जीवन सरल हो, तन सबल हो, मन विमल सविशेष हो ॥ छूटे कदापि न सत्य पथ निज देश हो कि विदेश हो, अखिलेख का आदेश हो जो बस वह…
वे शब्द होते है जिसका अर्थ सामान या एक जैसे होते है। उदहारण : सूर्य के लिए प्रयोग किये जाने वाले शब्द सूर्य, दिनकर, भानु, सूरज आदि है। अर्थात किसी शब्द-विशेष के लिए प्रयुक्त समानार्थक शब्दों क…
वर दे, वीणावादिनी वर दे ! भारत में भर दे। काट अन्ध उर के बन्धन स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निरक्षर कलुष-भेद, तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे ! प्रिय स्वतन्त्र - रव अमृत मन्त्र नव सन्दर्भ - प्रस्तुत…
सखी, वसंत आया भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-लय लतिका मिली मधुर प्रिय-उत्तर तरु-पतिका मधुप - वृन्द बन्दी पिक स्वर नभ सर आया। संदर्भ - प्रस्तुत पद्यावतरण महाकवि पं. सूर्यकान्त त्रि…
मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, मैं हूँ केवल पदतल-आसन, तुम सहज विराजे महाराज। ईर्ष्या कुछ नहीं, मुझे, यद्यपि, मैं ही बसंत का अग्रदूत, ब्राह्मण समाज में ज्यों अछूत मैं रहा आज यदि पार्श्वच्छवि। तुम स…
वह तोड़ती पत्थर, देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर। वह तोड़ती पत्थर, कोई न छायादार, पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार, श्याम तन, प्रिय-कर्म-रत मन। गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार, सामने तरु-मलिका अ…